Defence Services देश को सलाम

डिफेंस पर्सन की वर्दी उसके लिए उसकी आन, बान और शान होती है, जो उसे हर समय देश के प्रति अपनी ड्यूटी की याद दिलाती रहती है। वर्दी उसे देश के लिए जान न्योछावर करने के लिए इंस्पायर करती है। भले ही आज का युवा मोटे पैकेज के लिए ऊकॉरपोरेट सेक्टर की ओर भाग रहा हो लेकिन आजादी की परेड में भाग लेने वाले जवानों को देख उसके मन में कभी न कभी देश सेवा की दबी टीस उभर कर सामने आ ही जाती है। उसे लगता है कि काश उसे भी सेना में शामिल होकर देश सेवा का मौका मिल पाता। फिर देर किस बात की। एक युवा को जॉब से जो चीजें चाहिए, उससे कहींज्यादा सटिस्फैक्शन और एडवेंचर देती है डिफेंस सर्विस..

By Edited By: Publish:Wed, 14 Aug 2013 10:47 AM (IST) Updated:Wed, 14 Aug 2013 12:00 AM (IST)
Defence Services देश को सलाम

कदम-कदम बढाए जा..

21 साल की उम्र में एक ऐसा जॉब, जिसमें नाइन-टु-नाइन का वर्क प्रेशर न हो। रेस्पेक्टेबल पे-पैकेज, वर्क के साथ एक्साइटमेंट हो, सोशल स्टेटस और सेफ्टी हो, तो क्या आप उसे नजरअंदाज कर पाएंगे। नहीं न। अब सवाल है कि ये सभी चीजें मिलेंगी कहां। जवाब है- इंडियन डिफेंस सर्विसेज में। यहां देश की सेवा के साथ ही हर दिन नए चैलेंज से फाइट करने और एडवेंचर एक्टिविटीज में शामिल होने का मौका मिलेगा। आपकी पहचान इंडिया ही नहीं, व‌र्ल्ड लेवल पर बनेगी, जब आप पीस मिशन पर दुनिया के अलग-अलग कंट्रीज में जाएंगे। इस तरह इंडिया को रिप्रेजेंट करने की जो खुशी मिलेगी, वह बेमिसाल होगी।

स्कोप फॉर ग्रोथ

ऐसा देखा जाता है कि एमएनसी कंपनियां अपने एंप्लाइज से मैक्सिमम आउटपुट लेने के लिए उन्हें फॉरेन असाइनमेंट्स पर भेजती रहती हैं, लेकिन क्या आपको मालूम है कि डिफेंस सर्विसेज में भी डिप्लोमेटिक वीजा रखने वाले ऑफिसर्स को डिफेंस अताशे के तौर पर विदेश भेजा जाता है। ये एक तरह की पीस पोस्टिंग होती है। उन्हें यूएन फोर्सेज के साथ काम करने और दुनिया घूमने का मौका मिलता है। ऑफिसर्स को हायर एजुकेशन के लिए भी विदेश के रेपुटेड डिफेंस कॉलेजेज में भेजा जाता है। नेवी हर साल कुछ सेलेक्टेड ऑफिसर्स को लंदन के रॉयल वॉर कॉलेज, यूएस के मरीन स्टाफ कॉलेज भेजती है। इन्हें जो लग्जरी दी जाती है, वह सचमुच लाजवाब होती है। जो नेवी ऑफिसर्स हायर स्टडीज में जाना चाहते हैं, वे अपने रिटायरमेंट तक कई डिग्रियां हासिल कर सकते हैं, क्योंकि ऑफिसर्स को दो साल की पेड स्टडी लीव मिलती है। इंडियन एयरफोर्स के पीआरओ के मुताबिक उनके यहां प्रोफेशनल ग्रोथ के पूरे मौके मिलते हैं। ऑफिसर्स को सर्विस की हर स्टेज पर अपनी क्वॉलिफिकेशन एनहांस करने की आजादी दी जाती है। जिन ऑफिसर्स को रिसर्च में इंट्रेस्ट होता है, उन्हें रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए एनकरेज किया जाता है।

जॉब सटिस्फैक्शन

नेवी में लेफ्टिनेंट कमोडोर अभिलाष कहते हैं कि मुझसे लोग पूछते हैं किकैसे कोई 17-18 साल एक ही काम करता है और बोर नहीं होता? इस पर मेरा एक ही जवाब होता है- नेवी कोई जॉब नहीं है। कम से कम कनवेंशनल जॉब तो नहींही है। हायर सेकंडरी के बाद मेरे सामने इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे करियर में जाने के ऑप्शन थे, लेकिन मैंने नेवी को चुना। मैं सटिस्फाइड हूं क्योंकि मुझे डेस्टरॉयर्स पर जाने, फ्लाइंग करने, शूटिंग करने और दुनिया की अलग-अलग जगहों को देखने का मौका मिला है। आर्मी में कैप्टन (बदला हुआ नाम) सुमित उपाध्याय कहते हैं कि डिफेंस सर्विसेज में रुटीन ऑफिस वर्क नहीं होता। हर दिन एक नया चैलेंज लेकर आता है। अगर किसी की स्पो‌र्ट्स में खास दिलचस्पी होती है और वह डिफरेंट कॉम्पिटिशंस में एक्सेल करता है, तो उसे प्रमोशन में वेटेज मिलता है।

जॉब सिक्योरिटी

प्राइवेट जॉब को लेकर इंडियन यूथ में एक्साइटमेंट होता है, लेकिन रिसेशन के बाद आए दिन होने वाले ले ऑफ और पिंक स्लिप थमाए जाने से इनसिक्योरिटी की फीलिंग बढने लगी है। ऐसे में जब बात जॉब सिक्योरिटी की हो, तो डिफेंस सर्विसेज से बेहतर कुछ नहीं। एयरफोर्स में सार्जेट के पद पर काम कर रहे हिमांशु (बदला नाम) ने बताया कि यहां करियर बनाने के ढेरों ऑप्शंस तो हैं ही, जॉब को लेकर इनसिक्योरिटी बिल्कुल नहीं। खासकर सिक्सथ पे-कमीशन के इंप्लीमेंशन के बाद से यह एक लुक्रेटिव करियर के रूप में सामने आया है।

इकोनॉमिक स्टैबिलिटी

आज इंडियन मिलिट्री एकेडमी, ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी और दूसरे ऑफिसर रैंक के कैडेट्स को महीने में 21 हजार रुपये का स्टाइपेंड दिया जाता है। पहले यह सिर्फ आठ हजार रुपये था। इसके अलावा डिफेंस फोर्सेज के तीनों विंग (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) के ऑफिसर्स का बेसिक पे 40 परसेंट तक बढ चुका है। आज आर्मी का लेफ्टिनेंट हो, नेवी का सब लेफ्टिनेंट या एयरफोर्स का फ्लाइंग ऑफिसर, इनकी मंथली सैलरी औसतन 35 हजार रुपये तक पहुंच गई है। इसमें अगर अलाउंसेज को जोड लें, तो फिगर 45 हजार के करीब पहुंच जाता है। उन्हें कई तरह के अन्य अलाउंसेज भी मिलते हैं।

क्वॉलिटी ऑफ लाइफ

आर्मी के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल राज कादियान कहते हैं, डिफेंस फोर्सेज अपने ऑफिसर्स की फैमिली का पूरा खयाल रखती है। आर्मी ऑफिसर्स के बच्चों की स्कूलिंग फ्री होती है। फ्री मेडिकल फैसिलिटीज दी जाती हैं। इनकी कैंटीन से सब्सिडाइच्ड रेट पर डेली नीड्स की चीजें ली जा सकती हैं।

इसके अलावा, जैसे-जैसे सर्विस में सीनियर होते जाएंगे, कार और एकोमोडेशन, साल में एक बार देश में कहीं भी फैमिली के साथ जाने के लिए फ्री एयर टिकट्स दिए जाते हैं। इसके अलावा, रीक्रिएशन क्लब्स, जिम और गोल्फ कोर्स क्लब की मेंबरशिप बेहद कम रेट पर दी जाती है। इसी तरह रिटायरमेंट के समय पेंशन के रूप में हैंडसम अमाउंट घर मिलता है। अगर वे प्राइवेट सेक्टर में काम करना चाहें, तो उसके लिए उन्हें अपने स्किल्स को बढाने का मौका दिया जाता है। डिफेंस मिनिस्ट्री के अंतर्गत आने वाला डायरेक्टोरेट जनरल रिसेटलमेंट (डीजीआर) देश के लीडिंग बिजनेस ग्रुप्स के साथ टाई अप कर ऑफिसर्स को आगे बढने का मौका देता है।

आर्मी बनाती है लीडर

-आर्मी किसी यूथ के लिए सूटेबल करियर कैसे हो सकती है?

डिफेंस सर्विस ऑफिसर्स में एक सेंस ऑफ प्राइड, फीलिंग ऑफ ऑनर होता है। यहां ऑफिसर्स और उनकी फैमिलीज के बीच डीप बॉन्डिंग होती है। सब कुछ बेहद ऑर्गनाइच्ड मेथड से चलता है। आर्मी में यंग ऑफिसर्स की फिजिकल फिटनेस से लेकर उनकी हॉबीज का पूरा खयाल रखा जाता है, जिससे एक ऑफिसर या जवान ड्यूटी के साथ-साथ स्पो‌र्ट्स और दूसरी एडवेंचरस एक्टिविटीज में पूरे कॉन्फिडेंस के साथ पार्टिसिपेट करता है। एक बात और। आर्मी की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि आपकी पूरी पर्सनैलिटी में चेंज आ जाता है। वहीं, अगर आप इन बॉर्न लीडर हैं या लीड करना अच्छा लगता है, तो डिफेंस सर्विस में आपको इसका पूरा मौका दिया जाता है।

-क्या यूथ का अट्रैक्शन कम हुआ है?

आर्मी च्वाइन करने के लिए एप्लीकेशंस तो बहुत आते हैं, लेकिन राइट पर्सन इज नॉट कमिंग। अच्छे कैंडिडेट्स प्राइवेट सेक्टर या अपने घर के करीब रहने में दिलचस्पी रख रहे हैं।

-कैसे चेंज करेंगे परसेप्शन?

यूथ को मोटिवेट करना होगा। आर्मी को सोसायटी में पॉॅजिटिव इमेज क्रिएट करनी होगी। अपनी विजिबिलिटी सही चीजों में बढानी होगी। कंट्रोवर्सीज से बचना होगा। अमेरिका, यूरोप और इंग्लैंड में शाही खानदानों के राजा-प्रिंस सेना में जिम्मेदारी संभालकर एक एग्जांपल सेट करते हैं, जो इंडिया में नहीं हो पा रहा। गवर्नमेंट के अलावा सोसायटी का भी फर्ज बनता है कि निगेटिव माहौल को खुद पर हावी न होने दें। जब ईमानदार ऑफिसर्स आएंगे तो तस्वीर खुद-ब-खुद बदल जाएगी।

मेजर जनरल (रिटा.) जी.डी.बख्शी

नेवी की सबसे बडी स्पेशिएलिटी है कि ये आपको बडे रिस्क लेने की छूट देती है। हालांकि आपकी सेफ्टी का भी पूरा ख्याल रखा जाता है, जिससे कुछ गलत न हो। नेवी में कुछ लोग ही डेस्क जॉब करते हैं क्योंकि हर दिन एक नए एडवेंचर से सामना होता है। मेरी एक ख्वाहिश थी कि मैं ग्लोब का चक्कर लगाऊं। मुझे सीनियर कमोडोर का असिस्टेंट बनने का मौका मिला और मेरा सपना पूरा हुआ।

ले. कमोडोर अभिलाष

नेवल पायलट

मिलिट्री लाइफ में आपको एक्स्ट्राकरिकुलर एक्टिविटीज में अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है। मैंने नेवी में रहते हुए स्क्वैश, टेनिस, बैडमिंटन, स्वीमिंग, हॉर्स राइडिंग, बिलिय‌र्ड्स और गोल्फ खेलना सीखा। इसका मुझे काफी फायदा हुआ। मुझे नेवी बॉल और नेवी बैंड के कंस‌र्ट्स में शामिल होने का मौका मिला। एक्स कंट्री ड्राइवर के तौर पर मैंने भारत के दुर्गम इलाकों की सैर की है। नेवी में मेरी लाइफ टॉप क्वॉलिटी की है।

कमांडर अरुण ज्योति

इलेक्ट्रिकल ऑफिसर

रैंकिंग एक नजर

आर्मी

लेफ्टिनेंट, कैप्टन, मेजर, ले.कर्नल, कर्नल, ब्रिगेडियर, मेजर जन., ले. जन., जन.

नेवी

सब लेफ्टिनेंट, लेफ्टिनेंट, ले. कमांडर कमांडर, कैप्टन, कमोडोर, रीयर एडमिरल, वाइस एडमिरल, एडमिरल एयरफोर्स फ्लाइंग ऑफिसर, फ्लाइंग लेफ्टिनेंट, स्क्वॉड्रन लीडर, विंग कमांडर, ग्रुप कैप्टन, एयर कमोडोर, एयर वाइस मार्शल, एयर मार्शल, एयर चीफ मार्शल

जियो जिंदगी जी भर के

मोहित साठे (बदला हुआ नाम) ने शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर के तौर पर आर्मी मेडिकल कॉर्प ज्वाइन किया था। डॉक्टर तो वे थे। अपने शहर में रहकर अच्छी प्रैक्टिस भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने आर्मी को चुना। क्योंकि चैलेंजेज फेस करना चाहते थे। आर्मी की लाइफ ही ऐसी होती है जो कैडेट में जोश, जच्बा, जुनून भरने के साथ उनकी पर्सनैलिटी को मोल्ड करती है, जिससे वे हर सिचुएशन में अलर्ट रहते हैं। यही वजह है कि जो युवा हार्डशिप में विश्वास करते हैं, उनके लिए डिफेंस सर्विस इज द बेस्ट प्लेस।

सिविलियन और आर्मी पर्सन की लाइफ में कुछ खास बेसिक डिफरेंसेज भी हैं। उनके कैंटोनमेंट या रेजिडेंशियल सेटलमेंट में एक मिनी इंडिया बसता है। नार्थ, साउथ, ईस्ट, वेस्ट..देश के हर कॉर्नर से आए ऑफिसर्स घुल-मिलकर रहते हैं। सबके बीच एक स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग (कमराडरी) होती है। आप हैरान हो जाएंगे कि आर्मी मेन या उनकी फैमिलीज कितनी सपोर्टिव, और युनाइटेड होती है। यहां आसानी से फ्रेंड्स बनाए जा सकते हैं।

ट्रेनिंग की टफ लाइफ

एक कमीशंड ऑफिसर जब आर्मी च्वाइन करता है, तो उसका रूटीन सुबह पांच बजे से शुरू होता है। छह बजे तक ग्राउंड में फिजिकल ट्रेनिंग स्टार्ट होती है। शाम पांच बजे तक गेम परेड और रात साढे आठ बजे तक ऑफिसर्स मेस में आए दिन होने वाली पार्टीज में शामिल होना इनकी लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा है। इस शिड्यूल को पूरी ट्रेनिंग के दौरान फॉलो करने के बाद एक ऑफिसर इतना टफ हो जाता है कि हालात उसे डिगा नहीं पाते। एक न्यूकमर एक रिस्पॉन्सिबल ऑफिसर बन जाता है। अच्छी बात ये है कि आर्मी में एक डॉक्टर को भी आ‌र्म्स और एम्यूनिशन इस्तेमाल करने, मिलिट्री लॉ स्टडी करने और स्क्वाड्रंस को कमांड करने की ट्रेनिंग दी जाती है। कुल मिलाकर कहें तो डिफेंस सर्विसेज यूथ में पॉजिटिव एटीट्यूड भरता है। आर्मी एक ऐसी जगह है जहां डॉक्टर्स,नर्स, इंजीनियर्स, लॉयर्स, टीचर्स को बडी अपॉ‌र्च्युनिटीज मिलती हैं। अलग-अलग कॉ‌र्प्स में कमीशंड होने के बाद ये प्रोफेशनल्स पूरे पैशन के साथ अपने करियर को आगे बढा सकते हैं।

डिसिप्लिन से परफेक्शन

डिफेंस सर्विसेज में लाइफ डिसिप्लिंड होती है। अलग-अलग स्पो‌र्ट्स इवेंट्स, एक्सपीडिशन्स के जरिए खुद को प्रूव करने का मौका मिलता है। अगर आप किसी स्पो‌र्ट्स में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन ये सोच कर परेशान हो जाते हैं कि जॉब करने के बाद शायद वह छूट जाए तो यू आर वेलकम टू इंडियन डिफेंस फोर्स। यहां ड्यूटी के अलावा एथलेटिक्स, एक्वेटिक, बॉक्सिंग, हैंडबॉल, बॉक्सिंग, शूटिंग, हॉकी और वेट लिफ्टिंग जैसे स्पो‌र्ट्स में अपनी काबिलियत दिखाने का मौका है। इसी तरह एडवेंचर लाइफ लीड करनी हो, तो आर्मी एक बढिया ऑप्शन है। यहां साइक्लिंग, ट्रेकिंग, रॉक क्लाइंबिंग, पैरा ग्लाइडिंग, रॉफ्टिंग जैसे कई ऑप्शंस हैं। यूं कहें कि जमीन से लेकर हवा और समुद्र में एडवेंचरस एक्टिविटीज का मजा ले सकते हैं।

हाई लिविंग स्टैंडर्ड

एक नेवी ऑफिसर को वेल फर्निश्ड फ्लैट रहने के लिए मिलता है। इनके रेजिडेंशियल एरियाज में एटीएम, प्लेग्राउंड, स्वीमिंग पुल, जिमनैजियम जैसी सारी फैसिलिटीज होती हैं। कह सकते हैं कि ऑफिसर चाहे बैरक में रहे या अपार्टमेंट में, उसे हर तरह की एमीनिटीज यानी सुविधाएं मिलती हैं। सेलर को समय-समय पर यूनिफॉर्म स्टिच कराने के लिए अलाउंस मिलता है। नेवी की देश के कई बडे शहरों में हाउसिंग स्कीम्स हैं जिसका फायदा सेलर्स ले सकते हैं। यहां फिटनेस और टीम वर्क पर काफी फोकस किया जाता है। इसलिए शिप पर फ्री में हाई क्वॉलिटी स्पो‌र्ट्स फैसिलिटीज प्रोवाइड की जाती है। इसी तरह नेवल बेस स्टेशंस पर स्टेट ऑफ द आर्ट फिटनेस और वर्कआउट सेंटर्स बने हैं, जो व‌र्ल्ड लेवल के कहे जा सकते हैं। इनसे सेलर और नेवी के दूसरे ऑफिसर्स को पॉजिटिव हैबिट्स डेवलप करने का मौका मिलता है। वे पर्सनल, फिजिकल और मेंटल लेवल पर स्ट्रॉन्ग बनने में उनकी मदद करते हैं। सेलर्स और ऑफिसर्स के बीच गेट टु गेदर होना भी यहां आम चलन है।

एक्साइटमेंट नहीं है कम

एक एयरफोर्स ऑफिसर को कई तरह के रोमांचकारी गेम्स में हाथ आजमाने का मौका मिलता है। जैसे कि गहरे समंदर में डाइविंग करना, पैराग्लाइडिंग करना, हॉट एयर बलून से ऊंचे आकाश में उडना, माउंनटेनियरिंग के जरिए पहाडों की खाक छानना, कार रैली, मोटर साइकिल एक्सपीडिशन आदि एक्टीविटीज में अपना दम-खम दिखाता है। विंड सर्फिंग और स्कूबा डाइविंग जैसे स्पो‌र्ट्स में इंट्रेस्ट रखने वालों के लिए ये बेस्ट प्लेस है।

हालांकि इसका ये मतलब कतई नहीं है कि वर्क रिस्पॉन्सिबिलिटीज कहीं से कम है, बल्कि यहां जिंदगी को पूरे जोश से जीने का मंत्र दिया जाता है। ट्रांसफर्स होते हैं, लेकिन इसका भी अपना मजा है। शॉर्ट नोटिस पर सारा सामान समेटकर दूसरे स्टेशन पर जाना पडता है। जगह कोई भी हो सकती है लद्दाख, राजस्थान या असम। कई बार मेस में या दूसरे के साथ कमरा शेयर करके भी रहना होता है, लेकिन इससे आपस की बॉन्डिंग ही बढती है। एक बात और। डिफेंस ऑफिसर्स की पोस्टिंग्स की वजह से उनके बच्चों को साल में दो-तीन स्कूल बदलने पडते हैं लेकिन इससे काफी कुछ सीखने को भी मिलता है।

सेंस ऑफ प्राइड

डिफेंस सर्विसेज में जाना आसान नहीं है, लेकिन एक बार अगर मन में ठान लें कि कुछ करना है, तो मुश्किलों पर भी जीत हासिल की जा सकती है। ये सही है कि यहां कई तरह के खतरे हैं, लेकिन ऐसा कहां नहीं हैं? ऐसे में अगर आप चैलेंजिंग करियर की ख्वाहिश रखते हैं, तो डिफेंस सर्विसेज में आकर अपने सपनों को हकीकत में तब्दील कर सकते हैं। बस एक कदम बढाने की जरूरत है।

सेलर का एक्साइटिंग जॉब

हर यंगस्टर का कोई न कोई ड्रीम होता है। एक ड्रीम करियर होता है, जो उसे एडवेंचर, सटिस्फैक्शन, मनी, फेम और एक सेंस ऑफ अचीवमेंट दे। इंडियन नेवी युवाओं को ऐसी ही अपॉ‌र्च्युनिटी देती है। आप सेलर बनकर समंदर की गहराइयों में जा सकते हैं या ऑफिसर बनकर दूसरी रिस्पॉन्सिबिलिटीज निभा सकते हैं। समंदर में ड्यूटी करने वालों को भारत के अलावा विदेशों के पो‌र्ट्स (बंदरगाहों) को करीब से देखने का मौका मिलता है। शिप या सबमरीन में लाइफ गुजारने का एक अलग एक्साइटमेंट होता है। यहां हर सेलर के लिए एक जगह निर्धारित होती है, जहां पर सामान रखने से लेकर सोने तक का इंतजाम होता है। शिप पर रहने वाले जवानों और ऑफिसर्स को यहां बने किचन से टाइम पर क्वॉलिटी फूड मिलता रहता है। खाना-खाने के लिए बाकायदा एक डाइनिंग हॉल होता है, जहां सभी साथ बैठकर खाते हैं। मेस डेक का यूज सिर्फ सोने के लिए नहीं, बल्कि रिक्रिएशनल एक्टिविटीज के लिए भी होता है। यहां ऑफिसर्स गेम खेलने से लेकर टेलीविजन तक देख सकते हैं।

एयरफोर्स संग फ्लाई हाई

एक कैडेट जब इंडियन एयरफोर्स च्वाइन करता है तो उसके सामने एक ही मंत्र होता है- स्काई इज द लिमिट। इस फोर्स का ट्रेडिशन ही रहा है एडवेंचर। यहां आप हिमालय की ऊंचाइयों पर यूं पहुंच जाते हैं, वहीं दूसरे ही पल समुद्र की गहराइयों में। कहते हैं कि इस एडवेंचर से ही ऑफिसर्स में साहस, दृढ निश्चय और चैलेंजेज को फेस करने का हौसला आता है। एयरफोर्स में एक न्यूकमर जब ग्राउंड ट्रेनिंग के बाद अपनी पहली सॉर्टी पर जाता है, उसका रोमांच बिल्कुल अलग होता है। एयरफोर्स के पीआरओ ने बताया कि इस सर्विस में एक्साइटमेंट तो है ही, यह काफी डायनामिक भी है। यहां डिसिप्लिन के साथ कम्युनिटी फीलिंग भी है। एक रिमार्केबल बात ये भी है कि डिफेंस सर्विस के साथ जुडने पर एडप्टेशन लेवल काफी बढ जाता है।

जिस दिन मैंने पहली बार अपनी यूनिफॉर्म पहनी, वह मेरी लाइफ का सबसे प्राउडेस्ट मोमेंट था। इसी तरह ट्रेनिंग के दौरान स्वीमिंग, राइफल ट्रेनिंग, रूफ क्लाइंबिंग और सोर्टी पर जाना एक्साइटिंग और थ्रिलिंग था।

नेहा शर्मा, इंडियन एयरफोर्स

एंजॉयमेंट इन एयर

एयरफोर्स ऑफिसर्स रोज खतरों का सामना करते हैं और रोज जीतते भी हैं। ये हर दिन सेलिब्रेट भी करते हैं। इसी से उनका जोश बना रहता है। एयरफोर्स स्टेशंस सिविल एरियाज से अमूमन दूरी पर ही रहते हैं लेकिन इनकी खुद की दुनिया काफी रोमांचकारी है।

स्क्वॉड्रन लीडर नेहा शर्मा (बदला हुआ नाम) ने बताया कि सुबह की शुरुआत सुबह साढे बजे ड्रिल से होती है। फिर रनिंग, क्लासेज, फिजिकल ट्रेनिंग, ग्राउंड ट्रेनिंग का पूरा सेशन चलता है। नेहा कहती हैं, एयरफोर्स में 52 वीक की ट्रेनिंग काफी हार्ड होती है, लेकिन इससे आप मेंटली रोबस्ट बनते हैं। सुबह से शाम तक की ट्रेनिंग आपको इतना ग्रूम कर देती है कि लाइफ में कुछ टफ नहीं लगता। उन्होंने बताया कि क्योंकि एकेडमी में सिविल बैकग्राउंड से भी काफी कैडेट्स आते हैं, इसलिए यूनिट का हर दिन डिफरेंट होता है। सभी साथ मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। सबकी फिजिकल फिटनेस एक जैसी नहीं होती इसलिए दो-तीन किलोमीटर दौडने में ही पसीने छूट जाते हैं लेकिन ट्रेनिंग के बाद वही कैडेट 13-14 किलोमीटर दौडने लगता है। यहां एक अच्छी बात ये भी है कि कुछ अपना नहीं होता, बल्कि पूरे ग्रुप को लेकर चलना होता है। इससे टीम स्पिरिट डेवलप होती है। छह महीने की ट्रेनिंग पूरी होने पर जूनियर और सीनियर दो तरह के ट‌र्म्स होते हैं। इसी तरह पासिंग-डे परेड भी काफी मेमोरेबल होता है। एक प्राइड फीलिंग आती है कि अब हम इस फ्रेटरनिटी का एक हिस्सा बन चुके हैं।

मेरी फैमिली के कई लोग डिफेंस में रहे हैं, लेकिन मुझे अब्रॉड भेजा जा रहा था हायर स्टडीज के लिए। मेरा मन नहींमाना और मैंने एयरफोर्स ज्वाइन करने का फैसला ले लिया। यहां की लाइफ पहले दिन से ही काफी एक्साइटिंग थी। मैं फ्लाइंग स्ट्रीम में नहींथी। फिर भी मुझे इसकी ट्रेनिंग दी गई। हवा में उडना बहुत ही रोमांचकारी था। इसी तरह रूफ क्लांबिंग, राइफल ट्रेनिंग से मैं मेंटली और फिजिकली बहुत स्ट्रॉन्ग बन गई। आज मुझे दौडने से डर नहींलगता है। मैं 12 से 13 किलोमीटर तक वॉक कर सकती हूं। यही यहां की लाइफ की खासियत है।

- सीमा, स्क्वॉड्रन लीडर

करियर फॉर ट्रू नेशन सर्विस

अट्रैक्टिव लाइफस्टाइल, प्रॉइड, ऑनर, नाइस सैलरी पैकेज, डायरेक्ट नेशन सर्विस यह सब एक ही मेगा पैकेज में चाहिए, तो इंडियन डिफेंस सर्विस से बेटर कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है..

NDA

नेशनल डिफेंस एकेडमी से इंडियन आर्मी, एयरफोर्स और नेवी किसी में भी ऑफिसर बन कर एंट्री की जा सकती है।

एलिजिबिलिटी

एनडीए के लिए वही अप्लॉई कर सकते हैं, जो अनमैरिड हैं और जिनकी एज साढे 16 साल से 19 साल के बीच है। एजुकेशनल क्वॉॅलिफिकेशन के लिए सीनियर सेकंडरी अच्छे मॉ‌र्क्स के साथ पास होना जरूरी है। एयर फोर्स और नेवी के लिए फिजिक्स और मैथ्स सब्जेक्ट कम्पल्सरी है।

एग्जाम

यह एग्जाम कई पा‌र्ट्स में होता है, जिसमें कैंडिडेट की पर्सनैलिटी और प्रेजेंस ऑफ माइंड को परखा जाता है। सबसे पहले कैंडिडेट का सामना यूपीएससी द्वारा आयोजित रिटेन टेस्ट से होता है। इसके बाद सर्विस सेलेक्शन बोर्ड यानी एसएसबी के अंतर्गत उसका इंटरव्यू लिया जाता है और फिर मेडिकल बोर्ड मेडिकल एग्जाम में कैंडिडेट की फिजिकल फिटनेस को जांचता है।

ट्रेनिंग

जिन कैंडिडेट्स को अंतिम रूप से सेलेक्ट किया जाता है, उन्हें नेशनल डिफेंस एकेडमी, खडगवासला, पुणे में तीन साल की ट्रेनिंग दी जाती है। इस ट्रेनिंग के दौरान वे अपनी स्ट्रीम के अनुसार पढाई भी पूरी करते हैं। एनडीए की तीन साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें उनकी चुनी गई विंग में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है। इसके तहत आर्मी के लिए चुने गए कैंडिडेट्स को इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून, एयरफोर्स के लिए एयरफोर्स एकेडमी, हाकिमपेट और नेवी के लिए नेवल एकेडमी, लोनावाला भेजा जाता है।

जो कैंडिडेट ट्रेनिंग के सभी पा‌र्ट्स को सक्सेसफुली पूरा कर लेते हैं, उन्हें उनकी चुनी गई विंग्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर अप्वाइंट कर लिया जाता है।

UES

यूनिवर्सिटी एंट्री स्कीम के अंतर्गत गवर्नमेंट इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स को इंडियन आ‌र्म्ड फोर्सेज से जोडने का काम कर रही है। इस स्पेशल एंट्री स्कीम में इंजीनियरिंग फाइनल इयर और प्री फाइनल इयर के स्टूडेंट्स को एक सेलेक्शन प्रॉसेस से चुना जाता है। इसका लक्ष्य डिफेंस से रिलेटेड सभी सेक्टर्स को टेक्निकल नॉलेज रखने वाले काबिल युवाओं से भरना है।

आर्मी

आर्मी के लिए प्री फाइनल इयर के स्टूडेंट जिनकी एज 19 से 25 साल के बीच है, को एक निश्चित एग्जाम पैटर्न से सेलेक्ट किया जाता है।

एग्जाम

इसमें आर्मी के लोग खुद कैंपस में जाकर जीडी और इंटरव्यू लेते हैं और इसमें चुने गए कैंडिडेट्स को एसएसबी एग्जाम के लिए बुलाया जाता है।

नेवी

फाइनल इयर इंजीनियरिंग के स्टूडेंट इस स्कीम से शार्ट सर्विस कमीशंड आफिसर के रूप में नेवी की टेक्निकल और एग्जिक्यूटिव ब्रांच से जुड सकते हैं। नेवी के लिए एज 19 से 24 वर्ष डिसाइड है।

एग्जाम

इस मीडियम से नेवी में एंट्री करना चाहते हैं तो आपको पहले कैंपस इंटरव्यू देना होगा और उसके बाद एसएसबी इंटरव्यू और अन्य प्रॉसेस। इसके अंतर्गत कैंडिडेट्स नेवी से रिलेटेड विभिन्न टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल जॉब्स च्वॉइन कर सकते हैं।

एयरफोर्स

यूनिवर्सिटी एंट्री स्कीम के अंतर्गत स्टूडेंट इंडियन एयरफोर्स के साथ भी जुड सकते हैं। इसके लिए इंजीनियरिंग के प्री-फाइनल इयर के स्टूडेंट्स को निश्चित क्राइटेरिया के अंतर्गत सेलेक्ट किया जाता है। इसमें वही स्टूडेंट चुने जाते हैं जिनकी एज 18 से 28 साल के बीच होती है।

एग्जाम

सेलेक्शन प्रक्रिया इसी स्कीम के तहत होने वाली आर्मी और नेवी की प्रक्रिया से बहुत ज्यादा डिफरेंट नहीं है। इसमें भी कैंडिडेट को कई प्रॉसेस से गुजरना पडता है।

NCC से राह आसान

डिफेंस सर्विसेज में जाना चाहते हैं, तो एनसीसी यानी नेशनल कैडेट कॉ‌र्प्स बेटर ऑप्शन है। एनसीसी से अगर डिफेंस सर्विसेज में एंट्री करनी है, तो आपके पास सी-सर्टिफिकेट होना चाहिए।

आर्मी में एंट्री

एनसीसी सी-सर्टिफिकेट होल्डर आर्मी में परमानेंट कमीशन और शार्ट सर्विस कमीशन दोनों ही तौर पर एंट्री कर सकते हैं। परमानेंट कमीशन के लिए इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून और आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, चेन्नई में हर साल दो कोर्स चलाए जाते हैं। इनमें प्रति कोर्स 32 सीटें एनसीसी सी-सर्टिफिकेट वालों के लिए रिजर्व हैं। इसमें एंट्री के लिए कैंडिडेट्स को यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन का एग्जाम और उसके बाद एसएसबी का इंटरव्यू पास करना पडता है।

शार्ट सर्विस कमीशन के लिए साल में दो कोर्स होते हैं, जिसमें नॉन टेक्निकल फील्ड में 50 सीटें एनसीसी के लिए रिजर्व हैं। इसमें उन्हें यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन का एग्जाम नहीं देना पडता। केवल एसएसबी इंटरव्यू क्लीयर करना होता है। इसके लिए कैंडिडेट को अपने कमांडिंग आफिसर्स के द्वारा एप्लीकेशन युनिट के जरिए डायरेक्टोरेट जनरल एनसीसी हेडक्वॉर्टर के पास भेजनी होती है, जहां से इसे आर्मी, नेवी और इंडियन एयरफोर्स के पास भेजा जाता है।

नेवी

नेवी में 6 वैकेंसीज पर सी-सर्टिफिकेट होल्डर्स के लिए रिजर्व हैं। इसमें भी कैंडिडेट्स को यूपीएससी का एग्जाम नहीं देना पडता है। कई कोर्सेज में तो कैंडिडेट्स को एज भी में दो साल की छूट भी दी जाती है।

एयरफोर्स

इंडियन एयरफोर्स की फ्लाइंग ब्रांच में पायलट के लिए 10 परसेंट सीटें एनसीसी सी सर्टिफिकेट होल्डर्स के लिए रिजर्व रहती हैं। इसमें कैंडिडेट्स को यूपीएससी एग्जाम नहीं देना पडता है। उन्हें एसएसबी इंटरव्यू पास करना पडता है।

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रतीक सक्सेना

एनसीसी के प्रवक्ता, पीआरओ

हेड क्वॉर्टर, एनसीसी

CDS

ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज एग्जामिनेशन के जरिए स्टूडेंट इंडियन डिफेंस सर्विस से जुड सकते हैं। यह एग्जाम भी साल में दो बार होता है।

एलिजिबिलिटी

इसके लिए ग्रेजुएट कैंडिडेट ही अप्लाई कर सकते हैं। नेवल एकेडमी के लिए इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री और एयरफोर्स एकेडमी के लिए ग्रेजुएशन के साथ-साथ सीनियर सेकंडरी में मैथ और फिजिक्स सब्जेक्ट कंपल्सरी है। कैंडिडेट की एज इंडियन मिलिट्री एकेडमी के लिए 19 से 24 साल, नेवल एकेडमी के लिए 19 से 22 साल और एयरफोर्स एकेडमी के लिए 19 से 23 साल होनी चाहिए। कैंडिडेट को फिजिकल लेवल पर भी डिसाइड किए गए पैमानों पर खरा उतरना होगा।

एग्जाम

एग्जाम में कैंडिडेट की रीजनिंग पॉवर, उसकी डिसीजन क्वॉॅलिटी, प्रेजेंस ऑफ माइंड आदि की जांच की जाती है। बेसिक एग्जामिनेशन क्लियर करने के बाद एसएसबी इंटरव्यू फेस करना होता है। इंटरव्यू में भी उनकी प्रेजेंस ऑफ माइंड की ही टेस्टिंग की जाती है। आगे के कई प्रॉसेस के बाद ही फाइनली कैंडिडेट को डिफेंस सर्विस के लिए सेलेक्ट किया जाता है।

TA

डिफेंस सर्विस अट्रैक्ट करती है, लेकिन जाने का मौका नहीं मिल रहा, तो आप टेरिटोरियल आर्मी के साथ जुड सकते हैं। कपिल देव, महेन्द्र सिंह धौनी, सचिन पायलट, अभिनव बिन्द्रा जैसे कई जाने-पहचाने नाम अपने प्रोफेशन में रहकर टेरिटोरियल आर्मी के साथ काम कर रहे हैं। जाहिर है, इसमें अपॉच्र्युनिटीज हैं, एडवेंचर है और एक रेगुलर जॉब। टेरिटोरियल आर्मी में एक्स सर्विसमेन के अलावा यंगस्टर्स के लिए काफी अच्छे करियर ऑप्शंस हैं।

क्वॉलिफिकेशन : किसी भी स्ट्रीम में ग्रेजुएट होना जरूरी।

एज लिमिट : 18 से 42 साल।

ट‌र्म्स एंड कंडीशन्स: लेफ्टिनेंट रैंक में कमीशन। आर्मी ऑफिसर की तर्ज पर पे और अलाउंस।

-कमीशन के पहले साल में एक महीने की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है। दो महीने की सालाना ट्रेनिंग होती है।

-देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी में पहले दो साल के अंदर तीन महीने की पोस्ट कमीशनिंग ट्रेनिंग होती है।

सेलेक्शन मेथड

सिविलियन कैंडीडेट्स : कैंडिडेट की प्रिलिमनरी इंटरव्यू बोर्ड द्वारा स्क्रीनिंग की जाएगी। इसमें सक्सेस मिलने के बाद कैंडिडेट को सर्विस सेलेक्शन बोर्ड और मेडिकल बोर्ड से गुजरना होता है।

दिखने लगा है वूमन पावर

वूमन के लिए अब डिफेंस सेक्टर में जॉब के काफी चांस हैं। मेडिकल कोर या मिलिट्री नर्सिग सर्विसेज के अलावा, आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डिनेंस कोर, एजुकेशन कोर, आर्मी इंटेलिजेंस आदि में भी इनकी जरूरत है। ग‌र्ल्स डिफेंस सेक्टर में एनसीसी के जरिए भी एंट्री कर सकती हैं।

आर्मी

ग्रेजुएशन अथवा पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी ग‌र्ल्स, जिनकी एज 19 से 25 साल के बीच है, यूपीएससी के जरिए आर्मी की नॉन-टेक्निकल ब्रांच के साथ शार्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर के रूप में जुड सकती हैं।

लॉ ग्रेजुएट के रूप में भी वे आर्मी के साथ काम कर सकती हैं। इसके लिए एज लिमिट 21 से 27 साल रखी गई है। मिनिमम क्वॉॅलिफिकेशन एलएलबी या एलएलएम मिनिमम 55 परसेंट मॉ‌र्क्स के साथ। कैंडिडेट का बार काउंसिल ऑफ इंडिया या स्टेट में रजिस्ट्रेशन हो।

शार्ट सर्विस कमीशन के तौर पर वूमन कैंडिडेट एंट्री कर सकती हैं, जिनकी एज 19 से 25 साल है और जो ग्रेजुएशन कर चुकी हैं या फाइनल इयर में हैं। मिनिमम मा‌र्क्स 50 परसेंट हैं और एनसीसी का सी-सर्टिफिकेट जरूरी है।

एयरफोर्स

एयरफोर्स की ग्राउंड ड्यूटी ब्रांचेज में ग‌र्ल्स एंट्री ले सकती हैं। ग्रेजुएट्स के लिए एज 20 से 23 साल और पोस्ट ग्रेजुएट्स के लिए 20 से 25 साल डिसाइड है। कुछ कंडीशंस में एज लिमिट में छूट भी दी गई है।

ग्राउंड ड्यूटी ब्रांच की एडमिनिस्ट्रेशन यूनिट में भी शार्ट सर्विस कमीशन आफिसर के तौर पर एंट्री की जा सकती है। इसके लिए ग‌र्ल्स के पास ग्रेजुएशन की डिग्री मिनिमम 60 परसेंट मा‌र्क्स के साथ होनी चाहिए।

लॉजिस्टिक ब्रांच से शार्ट सर्विस कमीशन ऑॅफिसर के तौर पर जुडने के लिए मिनिमम 60 परसेंट मॉ‌र्क्स के साथ ग्रेजुएशन जरूरी है। इसके अलावा भी कई और ऑप्शन्स हैं।

नेवी

नेवी में शार्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर एटीसी के रूप में जुडा जा सकता है। इसके लिए एज लिमिट साढे 19 साल से 25 साल है। निर्धारित सब्जेक्ट्स के साथ फ‌र्स्ट क्लास साइंस ग्रेजुएट और फिक्स्ड सब्जेक्ट्स के साथ एमएससी होल्डर मिनिमम 50 परसेंट मॉ‌र्क्स के साथ इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं।

इसके अलावा शार्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर के रूप में लॉजिस्टिक, लॉ, एजुकेशन में भी जुडा जा सकता है। अन्य ऑप्शन भी खुले हैं।

वूमन स्पेशल एंट्री स्कीम

इस स्कीम का बेनिफिट उठाकर भी वूमेन इंडियन डिफेंस सेक्टर के साथ विभिन्न रूपों में जुड सकती हैं। इस स्कीम में कई प्रोग्राम्स चलाए जा रहे हैं।

देश सेवा की बात

लडकी बाइक चलाएगी? शर्मा अंकल ने यह बात आठ साल पहले हंसते हुए कही थी। मैंने जवाब दिया था, आखिर क्यों नहीं। लडकी जब प्लेन उडा सकती है, तो फिर बाइक क्यों नहीं चला सकती। उस समय मेरी कही गई बात शायद उन्हें अच्छी न लगी हो, लेकिन आज लडकियां डिफेंस सेक्टर में भी आगे आ रही हैं। मुझे अगर चांस मिलता है, तो मैं भी डिफेंस सेक्टर के साथ जुडकर देश सेवा का लाभ उठाना चाहूंगी।

दीपांशी, टेक्निकल स्टूडेंट

SSB से एंट्री

एसएसबी से डिफेंस सेक्टर में एंट्री के लिए कैंडिडेट को कठिन एग्जाम पैटर्न से गुजरना पडता है। जिसमें उसकी मैच्योरिटी और नेचुरलिटी को देखा जाता है। उसके हार्ट और ब्रेन की क्वॉलिटी को परखा जाता है।

इसमें सबसे पहले सभी कैंडिडेट्स का स्क्रीनिंग टेस्ट लिया जाता है। उसके बाद रिटेन साइकोलॉजी फिर ग्रुप टेस्टिंग ऑफिसर्स टेस्ट और अंत में इंटरव्यू होता है। जो कैंडिडेट इन सभी फेजेज का सफलता से सामना कर लेते हैं, उनकी लास्ट में कान्फ्रेंसिंग की जाती है।

एग्जाम में टाइमिंग से कंप्रोमाइज नहीं किया जाता। डिफेंस सेक्टर में एंट्री देने से पहले कई चीजों को बारीक तरीके से परखा जाता है। इसमें से एक है साइकोलॉजी। जिस कैंडिडेट में निगेटिवनेस और तुरंत डिसीजन लेने की क्वॉॅलिटी नहीं है, उसे डिफेंस फील्ड में एंट्री नहीं मिलती है।

कैप्टन प्रतीक राजा, एसएसबी

एयरमैन

स्टूडेंट एयरमैन के रूप में भी इंडियन एयरफोर्स का हिस्सा बन सकते हैं। इसके लिए ऑल इंडिया लेवल पर उनका सेलेक्शन टेस्ट लिया जाता है। यह टेस्ट एयरमैन सेलेक्शन सेंटर्स पर ही होता है। इस टेस्ट में टेक्निकल ट्रेड, एजुकेशनल इंस्ट्रक्टर ट्रेड, नॉन-टेक्निकल ट्रेड, म्यूजिशियन ट्रेड सभी के लिए रिटेन टेस्ट लिया जाता है। रिटेन टेस्ट ऑब्जेक्टिव टाइप का होता है और इसमें हिंदी और इंग्लिश दोनों ही लैंग्वेजेज में क्वैश्चंस आते हैं।

रिटेन टेस्ट के बाद फिजिकल फिटनेस टेस्ट और इसके बाद सक्सेस होने वाले कैंडिडेट्स को इंटरव्यू के लिए कॉल किया जाता है। इंटरव्यू नॉर्मली इंग्लिश लैंग्वेज में ही होता है। इंटरव्यू में जो कैंडिडेट सक्सेस होते हैं, उन्हें मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाते हैं। सभी पैमाने पर सक्सेस हासिल करने वाले कैंडिडेट्स का ही फाइनली सेलेक्शन किया जाता है।

एलिजिबिलिटी : एयरमैन के लिए सभी ट्रेड्स के हिसाब से एज लिमिट और एजुकेशन क्वॉलिफिकेशन अलग-अलग होती है। इंडियन एयरफोर्स की वेबसाइट पर इसकी इन्फॉर्मेशन डिटेल में मौजूद है।

अन्य आप्शंस जिनसे कर सकते हैं एंट्री

इसके अलावा और भी बहुत से फील्ड हैं, जिनमें आप डिफेंस के साथ काम कर सकते हैं।

मेडिकल स्ट्रीम के ऐसे स्टूडेंट्स, जो डिफेंस सेक्टर से जुडना चाहते हैं, वे डायरेक्टर जनरल ऑफ द आ‌र्म्ड फोर्स मेडिकल सर्विस द्वारा ऑल इंडिया लेवल पर कराए जाने वाले कॉम्पिटिटिव एग्जाम से एंट्री कर सकते हैं।

सीनियर सेकंडरी एंट्री स्कीम में एसएसबी के जरिए एंट्री होती है। जो कैंडिडेट इसमें सेलेक्ट किए जाते हैं, उन्हें आईएमए और द कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग, पूना में ट्रेनिंग दी जाती है। ओपन रिक्रूटमेंट रैली से भी आप इस फील्ड में एंट्री कर सकते हैं। इसके तहत आर्मी में जवानों की भर्ती की जाती है। इस तरह की रैलियां कैंडिडेट्स को आर्मी की ओर आकर्षित करने में काफी सफल हो रही हैं।

टेक्निकल फील्ड में ऑप्शन

डिफेंस ऑफिसर्स की लाइफ टफ और चैलेंजिंग होती है। बैटलफ्रंट, फॉरवर्ड पोस्ट्स, इनसरजेंसी वाले एरियाज में जाना पड सकता है, लेकिन अगर आप बैटलफील्ड में नहीं जाना चाहते, तो इंजीनियरिंग या दूसरे टेक्निकल विंग्स में एक्साइटिंग करियर बना सकते हैं।

आर्मी इंजीनियरिंग कॉर्प में एंट्री

आर्मी इंजीनियरिंग कॉर्प में इंजीनियरिंग के अलग-अलग ब्रांचेज में एक्सीलेंट अपॉच्र्युनिटीज हैं। आर्मी कॉर्प में दो तरीके से एंट्री ले सकते हैं..

टीजीसी (टेक्निकल ग्रेजुएट कोर्स) : इंजीनियरिंग ग्रेजुएट आर्मी के टेक्निकल आ‌र्म्स एंड सर्विसेज, कॉर्प ऑफ इंजीनियर्स, कॉर्प ऑफ सिग्नल्स, कॉर्प ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स, आर्टिलरी, इंफैन्ट्री और इंटेलिजेंस कॉर्प में करियर बना सकते हैं।

एलिजिबिलिटी : टीजीसी कोर्स में एडमिशन के लिए 20 से 27 साल की एज होनी चाहिए। साथ ही कैंडीडेट के पास इंजीनियर्स की नोटिफाइड स्ट्रीम में बीई या बीटेक की डिग्री होनी चाहिए। इस कोर्स में एडमिशन के लिए एसएसबी एग्जाम पास करना जरूरी होता है।

आईएएफ टेक्निकल विंग में मौके

इंडियन एयरफोर्स के टेक्निकल ब्रांच में एयरोनॉटिकल इंजीनियर के तौर पर शानदार करियर बना सकते हैं।

एयरोनॉटिकल इंजीनियर

एजुकेशन क्वॉलिफिकेशन : चार साल का डिग्री कोर्स या एसोसिएट मेंबरशिप ऑफ इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा सेक्शन ए और बी एग्जाम क्लियर करना।

एज लिमिट : 18 से 28 साल

एयरोनॉटिकल इंजीनियर (मैकेनिकल) के लिए भी यही क्वॉलिफिकेशन्स चाहिए।

नेवी की इंजीनियरिंग ब्रांच : इस ब्रांच में दो तरह के ऑप्शन हैं। पहला इंजीनियरिंग और दूसरा नेवल आर्किटेक्ट। इसमें पांच तरीके से एंट्री हो सकती है। नेशनल डिफेंस एकेडमी में कैडेट या हायर सेकंडरी (बी.टेक) से कैडेट के रूप में एंट्री या यूनिवर्सिटी एंट्री स्कीम (एसएससी), एसएससी (जीएस) या एसएससी (सबमरीन इंजीनियरिंग) से एंट्री।

बस चांस चाहिए

मैं अपनी बीटेक डिग्री पूरी करने के बाद डिफेंस सर्विस से जुडना चाहती हूं। ग‌र्ल्स कंट्री के लिए ओलंपिक में मैडल जीत सकती हैं, तो फिर डिफेंस में जाकर देश सेवा का काम क्यों नहीं कर सकतीं।

इशिता, इंजीनियरिंग स्टूडेंट

टॉप मिथ्स अबाउट डिफेंस

देश के लिए मर-मिटने का जच्बा रखने वाले युवा डिफेंस सर्विसेज में आता है उम्मीदों के साथ, लेकिन कई बार सिचुएशंस ऐसी बन जाती हैं कि सेना को लेकर उसकी गलतफहमियां बढने लगती हैं। आमतौर पर ये कम्प्लेंट रहती है कि आर्मी में हाई एल्टीट्यूड या दुर्गम इलाकों में लंबी पोस्टिंग होती है। इससे महीनों फैमिली से दूर रहना पड सकता है। उस पर से अगर छुट्टी मंजूर नहीं हुई, तो उसका गहरा अफसोस रहता है सो अलग। इसी तरह एमरजेंसी ड्यूटी के लिए कभी भी छुट्टी कैंसिल कर बुला लेना यहां बडी बात नहीं है। कुछ युवाओं की ये भी सोच है कि डिफेंस सर्विसेज में बार-बार ट्रांसफर होते हैं। प्रमोशन लेट से मिलता है। वहीं, तमाम पे-कमीशन्स की सिफारिशें लागू होने के बावजूद ये शिकायत बनी हुई है कि ऑफिसर्स के पे-पैकेज या प‌र्क्स में खास चेंज नहीं आया है। उसमें और भी सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। इसके अलावा, सबसे बडा डर ये है कि डिफेंस सर्विस में जाना यानी लाइफ को खतरे में डालना है। इन तमाम बातों में कितनी वास्तविकता है और कितना प्रोपेगैंडा, इस पर डिफेंस ऑफिसर्स और रिटायर्ड ऑफिसर्स की अपनी-अपनी राय है।

दुर्गम इलाकों में तैनाती?

हाई एल्टीट्यूड और डिफिकल्ट टेरेन्स पोस्टिंग होती है, लेकिन वह जरूरत के हिसाब से बदलती रहती है। देश की सिक्योरिटी से जुडा मसला होने के कारण कोई रिस्क नहीं लिया जा सकता, इसीलिए जोशीले, स्ट्रॉन्ग बॉडी और माइंड वाले युवाओं को ही सेलेक्ट किया जाता है। इसके अलावा ऐसे इलाकों में कैसे सर्वाइव किया जाए, इसकी पूरी ट्रेनिंग दी जाती है। दुर्गम इलाकों में तैनाती के दौरान अलग से अलाउंस मिलता है।

जल्दी-जल्दी ट्रांसफर्स

डिफेंस सर्विस में ट्रासंफर होते हैं, वह हर गवर्नमेंट जॉब में होता है। क्योंकि डिफेंस फोर्सेज पर नेशनल सिक्योरिटी की जिम्मेदारी है, इसलिए कई बार ऑपरेशनल वजहों से जल्दी ट्रांसफर हो जाते हैं। आर्मी ऑफिसर्स का कहना है कि एक ऑफिसर को पूरी स्टैबिलिटी देने की कोशिश की जाती है।

लेट प्रमोशन?

सेना से रिटायर्ड ऑफिसरों का कहना है कि आर्मी में टाइमली प्रमोशन्स होते हैं, लेकिन प्रमोशन के लिए एलिजिबिल ऑफिसर्स की संख्या ज्यादा होने से थोडी परेशानी आती है।

कम पे-पैकेज?

कॉरपोरेट सेक्टर या कुछ दूसरे गवर्नमेंट सर्विसेज की तरह पे-पैकेज बेशक न हो, लेकिन ऑफिसर्स और उनकी फैमिली कंफर्टेबली रह सके, उनके बच्चों को अच्छी एजुकेशन मिले, ऑफिसर्स अपना घर बना सकें, सब्सिडाइच्ड रेट पर सामान ले सकें और फैमिली के साथ अपने फेवरेट डेस्टिनेशन पर छुट्टियां मना सकें, इसके लिए पर्याप्त सैलरी, अलाउंस, लोन आदि दिए जाते हैं।

डिफेंस सर्विस में ग्लैमर, रेस्पेक्ट और मनी तीनों हैं, लेकिन यहां अर्ली रिटायरमेंट भी होते हैं और लेट प्रमोशंस इसकी वजह है। डिफेंस फोर्सेज की स्ट्रेंथ तो बीते सालों में कई गुना बढी है, लेकिन ये करियर ग्रोथ रेक्टैंगुलर न होकर पिरामिडिकल है, जिससे नौ-दस ऑफिसर्स में कोई एक ही लेफ्टिनेंट जनरल और इसी तरह करीब तीन हजार लेफ्टिनेंट जनरल रैंक ऑफिसर्स में से कोई एक ही आर्मी चीफ बन पाता है।

-ले. जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान

आज के यंगस्टर्स को लगता है कि मिलिट्री एक जानलेवा प्रोफेशन है, लेकिन अगर आर्मी, नेवी या एयरफोर्स में मॉडर्नाइजेशन होगा, नए वेपंस आएंगे, तो आए दिन होने वाली कैजुअल्टीज में कमी आएगी। इससे यंग जेनरेशन के बीच डिफेंस सर्विस को च्वाइन करने का कॉन्फिडेंस बढेगा। इसके अलावा अट्रैक्टिव पैकेजेज देकर युवाओं को इंस्पायर करना होगा क्योंकि प्राइवेट सेक्टर में बेस्ट जॉब्स की कमी नहीं है।

-भरत वर्मा, डिफेंस एक्सपर्ट

छुट्टियों को लेकर प्रॉब्लम?

डिफेंस सर्विस के तीनों अंगों, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में जवान से लेकर ऑफिसर्स को साल की छुट्टियां निर्धारित हैं। आर्मी में ऑफिसर और जूनियर कमीशंड ऑफिसर को सालाना 60 छुट्टियां मिलती हैं। इसी तरह ऑफिसर को 20 दिन की कैजुअल लीव और जेसीओ को 30 दिन का सीएल मिलता है। अगर नेवी की बात करें, तो एक सेलर को सालाना 60 और कैजुअल 30 छुट्टी मिलती है। कोई चाहे, तो साल की 30 छुट्टियां बचाकर रिटायरमेंट के समय उन्हें कैश करा सकता है। इसी तरह नेवी ऑफिसर को सालाना 60 और 20 कैजुअल छुट्टियां मिलती हैं। एयरफोर्स में भी यही रूल फॉलो किया जाता है।

वन डे इन सोल्जर्स लाइफ

पीसटाइम में एक जवान या ऑफिसर की नॉर्मल डे सूर्योदय के साथ ही शुरू हो जाती है। 6 बजे फॉल इन होता है, जहां वे ग्राउंड फील्ड पर पहुंचते हैं।

पीटी से शुरू होता दिन

एक जवान जब ग्राउंड पहुंचता है, तो प्लाटून कमांडर देखता है कि इन्होंने सही तरीके से शेविंग की है कि नहीं। ड्रेस में तो कोई कमी नहीं। प्रॉपर ड्रेस, मस्टीन और वॉटर बॉटल एक जवान को साथ रखना होता है। इसके अलावा राइफल और रकसक बैग आदि के साथ उनकी कठिन फिजिकल ट्रेनिंग शुरू होती है। रात में ट्रेंच खोदकर ही सोना होता है। मच्छरदानी लगानी भी जरूरी होती है।

मेस में साथ-साथ लंच

पीटी के बाद सारे सोल्जर ब्रेकफास्ट के लिए जाते हैं। फिर दूसरी ट्रेनिंग, परेड आदि शुरू हो जाती है। यह क्रम लगभग दोपहर 12 बजे तक चलता है। दोपहर एक बजे के करीब मेस में सभी साथ में लंच करते हैं। ऑफिसर्स और जेसीओ ऑफिस एडमिनिस्ट्रेशन से रिलेटेड वर्क करते हैं।

शाम को रोल कॉल

ऑफ्टरनून गेम्स तक जवानों को रेस्ट दिया जाता है। सेट टाइम पर वे स्पो‌र्ट्स ग्राउंड पर आते हैं और अपनी पसंद के खेल में हाथ आजमाते हैं। सनसेट के पहले रिट्रीट की सीटी बजती है। शाम को ही उन्हें रोल कॉल के दौरान अगले दिन के प्रोग्राम्स के बारे में बता दिया जाता है।

ट्रेनिंग के फायदे

आर्मी के वैसे तो दो ही तरह के रोल हैं कॉम्बैट या ट्रेनिंग। यहां एक कहावत भी पॉपुलर है कि आप पीसटाइम में जितना ट्रेनिंग करेंगे, जंग के समय उतना ही कम खून बहेगा। शांतिकाल में आर्मी पर्सनल के पास डिजास्टर मैनेजमेंट, इंटरनल सिक्योरिटी संभालने की बडी जिम्मेदारी होती है। देश में जब कभी, जहां जरूरत होती है सेना सिविल एडमिनिस्ट्रेशन की मदद के लिए तैयार रहती है। इसकी ड्यूटी चौबीस घंटे चलती है।

रिटा. ब्रिगेडियर (डॉ. बी.डी. मिश्रा)

पीसटाइम में भी मुस्तैद

डिफेंस सेक्टर से जुडे लोग वॉर टाइम हो या फिर पीस, अपने डेली शिड्यूल में किसी तरह का चेंज नहीं करते। वे पीस पीरियड में भी खुद को पूरी तरह वैसे ही बिजी रखते हैं जैसे वॉर टाइम में, ताकि सिचुएशन कभी भी कैसी भी हो, वे उसे फेस करने को तैयार रहें। एयरफोर्स के पीआरओ कहते हैं कि पीस टाइम में भी पायलट्स रोजाना सुबह सॉर्टी पर जाते हैं। वक्त रहने पर नाइट में भी सॉर्टी पर जाना होता है। इसके अलावा, एयरक्राफ्ट की मेंटिनेंस और ऑफिसर्स का ट्रेनिंग प्रोग्राम चलता रहता है। फिर भी आम लोगों के मन में एक क्वैश्चन तो उठता ही है कि सेना पीसटाइम में क्या करती है?

अधिकतर लोग यही कहेंगे कि वे आराम करते हैं। खेलते-कूदते हैं और मौज करते हैं। पर आपको बता दें कि सेना कभी आराम नहीं करती है क्योंकि उन्हें रुकना और बैठना सिखाया ही नहीं जाता है। पीस टाइम में कई तरह की एक्टिविटीज सेना चलाती रहती है, जिसका बेनिफिट न केवल उसके जवानों को मिलता है, बल्कि उनके फैमिली मैंबर्स और आम जनता को भी।

डिजास्टर मैनेजमेंट

डिफेंस सेक्टर के लोगों को किसी भी तरह की सिचुएशन को फेस करने के काबिल बनाया जाता है। इसके लिए उन्हें कठिन ट्रेनिंग लगातार दी जाती है। पीसटाइम में भी इसमें किसी भी तरह का कंप्रोमाइज नहीं किया जाता है। रेगुलर ट्रेनिंग का ही कमाल होता है कि डिफेंस में आने से पहले जिसने कभी स्वीमिंग नहीं की होती है वह भी कुछ ही दिनों की प्रैक्टिस के बाद उफान मारते दरिया में किसी को भी बचाने के लिए कूद जाता है और उसे बचा भी लाता है। जो कभी पहाड पर नहीं चढा होता है, वह भी बिना रुके चढ जाता है। उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के प्रिंसिपल कर्नल अजय कोठियाल इस बारे में कहते हैं कि सबसे बडी चीज प्रैक्टिस है। इसमें किसी भी तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए। कुछ दिन का गैप हुआ नहीं कि काम में कमियां आ सकती हैं।

फैमिली वेलफेयर

सेना की सभी यूनिट्स में सोल्जर्स की वाइव्स के लिए वेलफेयर सेंटर होते हैं। ऑफिसर्स की वाइव्स यहां एजुकेशनल प्रोग्राम्स चलाती हैं। हेल्थ और फैमिली प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन निकाला जाता है। इस तरह की एक्टिविटीज सबको जोडते हैं।

सोशल वर्क

डिफेंस की अपनी मेडिकल कोर, इंजीनियरिंग कोर आदि होती है। पीसटाइम में ये पब्लिक के बीच जाकर वर्क करते हैं। मेडिकल कोर मेडिकल कैंप लगाती है, वहीं इंजीनियरिंग कोर डेवलपमेंट से जुडे कामों में लोगों की हेल्प करती है।

अंशु सिंह

इनपुट : शरद अग्निहोत्री

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