बैल-बकरी, जेवरात बेच व कर्ज ले प्रवासी मजदूर पहुंचे अपने घर

लगातार तीन दिन तक दो हजार किलोमीटर की नॉन स्टॉप यात्रा कर और 6.80 लाख रुपये अपने जेब से खर्च कर आखिरकर करीब 130 प्रवासी मजदूर बेंगलुरु से अपने गृह प्रखंड बुधवार को पहुंचे। सभी प्रवासी मजदूर पश्चिमी सिंहभूम जिला सहित ओडिशा के क्योंझर जिला के विभिन्न प्रखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 May 2020 11:31 PM (IST) Updated:Wed, 20 May 2020 11:31 PM (IST)
बैल-बकरी, जेवरात बेच व कर्ज ले प्रवासी मजदूर पहुंचे अपने घर
बैल-बकरी, जेवरात बेच व कर्ज ले प्रवासी मजदूर पहुंचे अपने घर

बिशाल गोप, जगन्नाथपुर : लगातार तीन दिन तक दो हजार किलोमीटर की नॉन स्टॉप यात्रा कर और 6.80 लाख रुपये अपने जेब से खर्च कर आखिरकर करीब 130 प्रवासी मजदूर बेंगलुरु से अपने गृह प्रखंड बुधवार को पहुंचे। सभी प्रवासी मजदूर पश्चिमी सिंहभूम जिला सहित ओडिशा के क्योंझर जिला के विभिन्न प्रखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं। सभी वर्ष 2013 से 2016 के आसपास बेंगलुरु पलायन कर गए थे। बुधवार अहले सुबह चार बजे बेंगलुरु से जैंतगढ़ पहुंचे मजदूरों ने बताया कि चार बस को रिजर्व कर यहां लौटे हैं। लक्ष्मी देवी ने अपने बेटे के लिए बैल बेच कर पांच हजार रुपये, अमनिका देवी ने बकरी बेच कर अपने बेटे को चार हजार, नोटो कुम्हार ने जेवरात बेच कर अपने बेटे को चार हजार रुपये तथा कियामनी देवी छह हजार, बिलासो देवी छह हजार, सुरेश कुम्हार पांच हजार, इंदु देवी तीन हजार, अर्षूवो देवी पांच हजार व अमनिका देवी ने चार हजार रुपये गांव में अपने संबंधियों से कर्ज लेकर अपने बेटों को फोन पे के माध्यम से भेजवाये। कहा कि भले ही हमारे कलेजा के टुकड़ों को बेंगलुरु से लाने में हम कर्जदार हुए, जेवरात, जानवर बेच दिए, हमे कोई गम नहीं। खुशी इस बात की है कि सभी सही सलामत और अपने गांव लौट आए हैं। अब भगवान से प्रार्थना है कि आगे भी सब ठीक ही हो। अब हमारे बेटे गांव में रहकर हमारे आंखों के सामने यहीं पर मजदुरी करेंगे पर बाहर नही भेजेंगे।

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प्रवासी मजदूर ने साझा किया दर्द : जगन्नाथपुर ढीपासाई के प्रवासी मजदूर सोमनाथ कुम्हार ने बताया कि जब से लॉकडाउन शुरू हुआ, हमारे जीवन की उल्टी गिनती शुरू हो गई। जिस कम्पनी में काम करते थे वहां पर उत्पादन ठप पड़ गया। डेढ़ माह के अंदर जो कमाया था, वो वहीं खर्च हो गया। मकान मालिक किराया मांगने लगा। राशन दुकानदार ने उधारी देना बंद कर दिया। आर्थिक तंगी व अन्य तरह की परेशानियों की वजह से किसी भी तरह घर पहुंचने का फैसला सबने किया। पर सबके पास रुपये की कमी थी। हमने

अपने घरवालों को फोन कर हमारी समस्या बतायी। मेरे माता ने अपने जेवरात गांव में गिरवी रख कर मुझे फोन पे के माध्यम से चार हजार रुपये भेजवाये। तब जाके आज मैं वापस अपने गांव लौट पाया हूं। कमावेश मेरे अधिकतर साथियों की हालत भी मेरे जैसी ही है।

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