विकास मामले में बोलबा प्रखंड है काफी पीछे

बोलबा कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र और सिमडेगा जिले में सर्वाधिक पिछड़ा है बोलबा प्रखंड। विकास क

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Dec 2019 11:18 PM (IST) Updated:Thu, 05 Dec 2019 06:21 AM (IST)
विकास मामले में बोलबा प्रखंड है काफी पीछे
विकास मामले में बोलबा प्रखंड है काफी पीछे

बोलबा: कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र और सिमडेगा जिले में सर्वाधिक पिछड़ा है बोलबा प्रखंड। विकास के अधिकांश मानकों में यह प्रखंड निचले पायदान पर है। बोलबा प्रखंड को दशकों पूर्व से ही झारखंड का कालापानी कहा जाता है,क्योंकि यहां अब भी कई गांवों में ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं है। बोलबा प्रखंड स्थापना को 57 वर्ष बीत चुके परंतु यहां पर अधिकांश लोगों को आज भी अच्छी सड़क, अबाधित और पर्याप्त बिजली,शुद्ध पेयजल, मोबाईल नेटवर्क,समुचित चिकित्सा सुविधा, बैंकिग सहजता, परिवहन सुविधा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ,रोजगार-स्वरोजगार के समुचित अवसर,जनवितरण प्रणाली का समुचित लाभ,आंगनबाड़ी का समुचित लाभ मयस्सर नहीं है। कई गांवों में हब्बा -डब्बा, ताश जुआ का खेल ,अवैध शराब निर्माण-बिक्री खुलेआम हो रहा है। प्रखंड के 90 से अधिक गांवों में हाथियों की वजह से कृषि और अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। प्रखंड में दर्जनों सुयोग्य और जरूरतमंद विधवाएं, वृद्ध और बुजुर्ग पेंशन से वंचित हैं। नदियों से अवैध बालू उठाव,जंगलों में अंधाधुंध पेड़ कटाई और पहाड़ों को काट- काटकर अपना तिजोरी भरने में कई दबंग लगे हैं। प्रखंड में समस्याओं और असुविधाओं की लंबी फेहरिस्त है।इनसे निजात दिलाने में कोई राजनीतिक दल या प्रत्याशी प्रखंड में सक्रिय नहीं रहता। दशकों से क्षेत्र की समस्याओं पर स्थानीय विधायक- सांसद के उदासीन रवैये से खिन्न हैं। ्र

दैनिक जागरण प्रतिनिधि ने कई गांवों में चुनाव को लेकर ग्रामीणों का मन टटोलने की कोशिश की।अधिकांश गांवों में ग्रामीणों का कहना है चुनाव के समय दल और प्रत्याशी आते हैं, तरह-तरह का प्रलोभन और डर फैलाकर हमें ठग लेते हैं। चुनाव के बाद 5 साल तक कोई हाल चाल पूछने भी नहीं आता। उच्चाधिकारियों से शिकायत करते हैं, परंतु कोई हमारा समुचित साथ नहीं देता। प्रखंड मुख्यालय में ही प्रतिदिन कई घरों और दुकानों में हजारों लीटर शराब बेची जाती है,मगर प्रशासन को दिखाई नहीं देता। पुलिस कार्रवाई के नाम पर छोटी मछलियों को पकड़ती है परंतु बड़े मगरमच्छों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

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