सौ बेड का अस्पताल, पानी को कंगाल

जिले की 12 लाख की आबादी को सेहतमंद रखने के लिए बने सदर अस्पताल में मरीजों व परिजनों की प्यास एक चापाकल के भरोसे बुझ रही है। आदिवासी व आदिम जनजाति बहुल जिले के मरीजों व उनके परिजन प्यास मिटाने को वैकल्पिक व्यवस्था के तहत पानी खरीदकर पीना पड़ रहा हैं। गर्मी के मौसम में मरीजों की संख्या सदर अस्पताल में बढ़ रही है। परंतु यहां गंदगी का भी बुरा हाल है। मरीज एक तरफ बीमारी तो दूसरी तरफ गंदगी की मार झेलने को मजदूर हो रहे हैं। सदर अस्पताल में एक भी स्थायी विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं। यहां कभी कभी घंटों इंतजार के बाद मरीजों को देखने चिकित्सक देखने आते हैं। सदर अस्पताल की सेहत सुधारने के लिए न तो पर्याप्त डाक्टर हैं न ही सुविधाएं अस्पताल में बहाल हो सकी है। सदर अस्पताल में भर्ती मरीज के साथ केवल एक ही व्यक्ति रह सकता है। परिजन सदर अस्पताल में भीड़ नहीं लगा सकते। वरना एक सौ रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। यह फरमान भी सिविल सर्जन ने पिछले दिनों अस्पताल के निरीक्षण के बाद जारी किया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 May 2019 09:44 PM (IST) Updated:Tue, 21 May 2019 06:35 AM (IST)
सौ बेड का अस्पताल, पानी को कंगाल
सौ बेड का अस्पताल, पानी को कंगाल

जासं, साहिबगंज: जिले की 12 लाख की आबादी को सेहतमंद रखने के लिए बने सदर अस्पताल में मरीजों व परिजनों की प्यास एक चापाकल के भरोसे बुझ रही है। आदिवासी व आदिम जनजाति बहुल जिले के मरीजों व उनके परिजन प्यास मिटाने को वैकल्पिक व्यवस्था के तहत पानी खरीदकर पीना पड़ रहा हैं। गर्मी के मौसम में मरीजों की संख्या सदर अस्पताल में बढ़ रही है परंतु यहां गंदगी का भी बुरा हाल है। मरीज एक तरफ बीमारी तो दूसरी तरफ गंदगी की मार झेलने को मजदूर हो रहे हैं। सदर अस्पताल में एक भी स्थायी विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं। यहां कभी कभी घंटों इंतजार के बाद मरीजों को देखने चिकित्सक देखने आते हैं। सदर अस्पताल की सेहत सुधारने के लिए न तो पर्याप्त डाक्टर हैं न ही सुविधाएं अस्पताल में बहाल हो सकी है। सदर अस्पताल में भर्ती मरीज के साथ केवल एक ही व्यक्ति रह सकता है। परिजन सदर अस्पताल में भीड़ नहीं लगा सकते वरना एक सौ रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। यह फरमान भी सिविल सर्जन ने पिछले दिनों अस्पताल के निरीक्षण के बाद जारी किया है।

साहिबगंज जिले के बांसकोला गांव की मरांग कुड़ी मुर्मू सदर अस्पताल में इलाज कराने आई है। उसे पीने का पानी नहीं मिल रहा है। सकरीगली पठानटोला की जीनत खातून अस्पताल में नाला जाम रहने से निकल रहे दुर्गंध से परेशान है। झरना कालोनी की निशा कुमारी ने बताया कि वह नियमित जांच नहीं होने से परेशान है। हबीबपुर साहिबगंज की प्रिया कुमारी का कहना है कि सदर अस्पताल के सटे कचरा का ढेर फैला है जिसके कारण परेशानी हो रही है।

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इनडोर में चलता ओपीडी

कहने के लिए साहिबगंज का सदर अस्पताल एक सौ बेड का है परंतु इसी में ओपीडी भी चलता है। इनडोर को भी इसी में चलाया जाता है। इस कारण मरीजों के लिए बेड कम पड़ जाते हैं तो दो मंजिले भवन पर टूटे बेड पर इलाज कराकर मरीज अपनी जान बचाते हैं। एक्सरे भी इसी में चलता है। अस्पताल में मरीज कई दिनों तक एक ही बेड पर इलाज कराते हैं। गंदे बेड पर इलाज कराकर सेहतमंद होना मजबूरी बन गई है। सदर अस्पताल में मरीजों को मुश्किल से बेड पर चादर नसीब होता है। जबकि प्रत्येक मरीज को बेड पर न केवल चादर देना है रोजाना बेड के चादर की बदली भी करनी है। महिला वार्ड के अलावा अन्य वार्ड में गंदगी पसरी रहती है। सफाई के अभाव में मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं जो रोगों को जन्म देती हैं। सौ बेड वाले सदर अस्पताल में एक पाली में तीन से चार नर्स ही कार्य करती है। बैठने के लिए कुर्सी तक पर्याप्त नहीं है।

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कोट

सदर अस्पताल में साफ सफाई का निर्देश दिया गया है। मरीजों के बेड को रोज बदलने को भी अस्पताल उपाधीक्षक को कहा गया है। गंदगी के कारण मरीजों की परेशानी न हो। सदर अस्पताल में पानी के संकट को दूर करने का प्रयास चल रहा है। विशेषज्ञ चिकित्सक की कमी की वजह से मरीजों का बेहतर इलाज नहीं हो पाता है। जो डाक्टर हैं वे ही कभी कभी 24 घंटे सेवा करते हैं। भवन के अभाव में सदर अस्पताल के बेड वाले रूम में ही कई कार्य संचालित हो रहा है।

डा. अरुण कुमार सिंह, सिविल सर्जन, साहिबगंज

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