Weekly News Roundup Ranchi: नेताजी कर लो अपनी तैयारी...कि आई अब बाबूलाल की बारी

Weekly News Roundup Ranchi 2020 में राजनीतिक उलटफेर की नींव रख दी गई है। भाजपा में झाविमो के विलय के साथ बाबूलाल मरांडी का वनवास खत्‍म हो जाएगा। यहां पढ़ें भाजपा-झाविमो की हलचल...

By Alok ShahiEdited By: Publish:Mon, 20 Jan 2020 01:07 PM (IST) Updated:Mon, 20 Jan 2020 11:23 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: नेताजी कर लो अपनी तैयारी...कि आई अब बाबूलाल की बारी
Weekly News Roundup Ranchi: नेताजी कर लो अपनी तैयारी...कि आई अब बाबूलाल की बारी

रांची, राज्य ब्यूरो। Weekly News Roundup Ranchi  झारखंड में बड़े राजनीतिक उलटफेर की नींव 2020 के शुरूआत में पड़ गई है। इसका प्रभाव आने वाले दिनों में दिखेगा। हालांकि इसकी कवायद पहले भी हो चुकी है, लेकिन पूर्व और वर्तमान में काफी भिन्नता है। पहली बार भाजपा के विस्तार को थामने में क्षेत्रीय पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सफलता पाई है। हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा को पीछे छोड़ते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा जब सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो लगभग 14 साल पहले विपरीत परिस्थितियों में भाजपा छोड़ने वाले बाबूलाल शिद्दत से याद किए गए।

इसके बाद उन्हें हर हाल में भाजपा में वापस लाने की मुहिम शुरू किए जाने के कई कारण हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को आगे कर चुनाव लड़ा था और वे बुरी तरह फेल हुए। वे अपनी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी को भी बचाने में कामयाब नहीं हुए जहां से वे लगातार 1995 से जीत दर्ज करते आ रहे थे। बदली परिस्थिति में भाजपा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रभाव क्षेत्र से जूझना और पस्त भाजपा कैडरों में जोश भरना है।

इसके लिए बाबूलाल मरांडी को भाजपा सबसे मुफीद मान रही है। यही वजह है कि चुनाव में हार के बाद भाजपा डैमेज कंट्रोल के तौर पर बाबूलाल मरांडी की वापसी चाहती है। बाबूलाल मरांडी के लिए भी यह बेहतर मौका है, क्योंकि उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा लगातार सिकुड़ती जा रही है। बाबूलाल मरांडी भी अपनी पार्टी झाविमो का भाजपा में विलय का पूरा मूड बना चुके हैं, लेकिन उनकी राह में दल के दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की रोड़े अटका रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए बाबूलाल ने कमेटी भंग कर नई कमेटी गठित कर ली है और दोनों विधायकों को महत्वपूर्ण पदों से चलता कर दिया है। अब बारी दोनों को दल से निलंबित करने की है, ताकि विलय की राह आसान हो सके। संभावना है कि वसंतपंचमी तक यह कवायद पूरी हो जाएगी।

विलय के बाद भाजपा में अपनी भूमिका के साथ-साथ करीबी नेताओं के लिए जगह सुरक्षित करना बाबूलाल मरांडी की प्राथमिकता होगी ताकि वे मनमुताबिक राजनीतिक कार्यक्रम चलाकर भाजपा को सत्ता के करीब ला सकें। स्वभाव से मृदुभाषी और संकोची बाबूलाल फिलहाल एक-एक कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं। वे इशारों में भाजपा में जाने की बात करते हैं और उनकी पूरी मुहिम को कुछ विश्वस्त नेताओं ने संभाल रखा है।

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