Weekly News Roundup Ranchi: कॉलेजों-विश्‍वविद्यालयों में हफ्तेभर मची रही हलचल; पढ़ें कैंपस कथा

Weekly News Roundup Ranchi राज्य में सरकार बदली तो दबाव भी कई तरह के बन रहे हैं। अब कैंपस के बॉस इसे कैसे झेलते हैं यह देखना मजेदार होगा।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Mon, 13 Jan 2020 10:43 AM (IST) Updated:Mon, 13 Jan 2020 10:43 AM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: कॉलेजों-विश्‍वविद्यालयों में हफ्तेभर मची रही हलचल; पढ़ें कैंपस कथा
Weekly News Roundup Ranchi: कॉलेजों-विश्‍वविद्यालयों में हफ्तेभर मची रही हलचल; पढ़ें कैंपस कथा

रांची, [प्रणय कुमार सिंह]। Weekly News Roundup Ranchi बीते सप्‍ताह रांची में छात्र-छात्राओं के बीच नए साल की खुमारी थोड़ी खत्‍म होती नजर आई। कॉलेज-विश्‍वविद्यालय के कैंपस में अब परीक्षाओं की सरगर्मी तेज हो गई है। छात्र अपने पढ़ाई को लेकर जहां संजीदा दिख रहे हैं। वहीं झारखंड की नई सरकार काे लेकर प्रशासनिक महकमे में भी चुस्‍ती का आलम है। आगे की अनसुनी-अंजानी बा‍तें यहां जानें साप्ताहिक कॉलम कैंपस कथा में...

जिससे भागे वही पल्ले पड़ा

रांची विश्वविद्यालय के बॉस जिस काम से भाग रहे थे, वही अब उनके पल्ले पड़ गया है। बॉस ने किसी भी तरह की नियुक्ति से पल्ला झाड़ लिया था। उनका कहना था कि नियुक्ति किसी एजेंसी से टेस्ट लेकर ही की जाए। यहां तक कि सिलेबस बनाकर सरकार के पास भेज भी दिया। इधर बॉस ने नियुक्ति से पल्ला झाड़ा तो उधर कर्मचारी ने अदालत में गुहार लगा दी कि नियुक्ति की जिम्मेदारी बॉस के पास ही रहे। नियुक्ति को लेकर खींचतान चल ही रही थी कि दो दिन पहले निदेशक ने बैठक कर स्पष्ट कर दिया कि नियुक्ति बॉस ही करेंगे। अब बॉस की परेशानी बढ़ गई है। वे इस बात से परेशान हैं कि अब सैकड़ों पैरवी आएंगे तो वे किसकी सुनेंगे और किसकी नहीं। राज्य में सरकार बदली तो दबाव भी कई तरह के होंगे। अब बॉस इसे कैसे झेलते हैं, यह देखना मजेदार होगा।

बदलने लगी ठेकेदारी भी

सरकार बदली तो उच्च शिक्षण संस्थानों पर भी इसका प्रभाव दिखने लगा। बात पढ़ाई की नहीं ठेकेदारी की हो रही है। पूर्व की सरकार थी तो उच्च शिक्षण संस्थान में मरम्मती की बात हो या नई बिल्डिंग की फर्निशिंग की या फिर किसी आयोजन में खान-पान की, सत्ताधारी दल से जुड़े छात्र खूब टेंडर डालते थे। सत्ता क्या बदली, अब इनसे जुड़े छात्र ठेकेदारी को लेकर उतावले हो गए हैं। पुराने वाले ने महिला कॉलेज में डेंटिंग-पेंटिंग का ठेका ले रखा था। लेकिन उन्हें सुकून इस बात का है कि सत्ता बदलने के साथ-साथ उनका काम भी अंतिम चरण में है। लेकिन जिनका काम लटका है उनका क्या? मोरहाबादी में नई-नई बिल्ंिडग बनी है। पुरानी सरकार से जुड़े एक छात्र ने कई बिल्डिंग की फर्निशिंग कर लाखों कमाए। उन्हें उम्मीद थी कि लखपति से आगे बढ़ेंगे, लेकिन सरकार क्या बदली इनकी किस्मत का सितारा भी अस्त होने लगा।

सभी की जांच हो गई तो

दशकों पहले चौथे चरण में कई कॉलेजों को सरकार ने अपना तो लिया। लेकिन उस समय वहां पढ़ाने वाले की जांच-परख नहीं की। अब यहां खूब हेराफेरी दिख रही है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की जांच हुई तो छह की नौकरी चली गई। अब सोचिए सभी के कागजातों की जांच हो जाए तो भूचाल आना तय है। प्रोफेसर साहबों की असलियत सामने आ जाएगी। ऐसा इसलिए कि कई प्रोफेसर साहब तो ऐसे हैं जो एक ही समय कॉलेज में भी थे और दूसरी जगह सरकारी नौकरी भी कर रहे थे। अब जरूरत है कि मुखिया जी एक बार सभी की जांच करा दें। वैसे एक बार मुखिया जी विजिलेंस जांच की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन इस ओर कदम आगे बढ़े तभी न। अब सबकी नजर नई सरकार पर भी है। आखिर पैसा तो वहीं से आता है। और सरकार किसी भी गलत आदमी को पैसा नहीं देना चाहेगी।

बजट बनाने में चूक कहां

राजधानी के एक उच्च शिक्षण संस्थान में बजट से अधिक खर्च हो रहा है। एक दिन पहले अधिकारी सब बैठे तो बताया कि दीक्षा समारोह में बजट से 17.90 लाख अधिक खर्च हो गए। 33वां दीक्षा में 13 लाख 55 हजार तो इससे पहले 32वां में चार लाख 35 हजार अधिक खर्च हो चुका है। बजट बनाने, पैसे का हिसाब-किताब रखने के लिए एक पूरा विभाग ही है। यहां बड़े-बड़े साहब बैठे हैं जिन्हें लाखों वेतन मिलते हैं। फिर भी गड़बड़ी कर ही देते हैं। बजट बनाने में कहां चूक होती है, इसकी पड़ताल मुखिया करवाते नहीं और अधिकारी लापरवाह बने रहते हैं। ठेकेदार दो साल तक पैसे के लिए बाबुओं के दरवाजे पर चक्कर लगाते रहते हैं। इसी बीच कमीशन का धंधा भी फलते-फूलते जाता है। सब अपने-अपने में मस्त रहते हैं, पैसा तो जनता का ही जा रहा है। इंतजार है मुखिया के रुख का।

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