तालाब, पोखर के अस्तित्व पर खतरा, उपेक्षाओं से तालाबों के विरासत पर संकट

हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा तालाब या पोखर अब अपने अस्तित्व की विरासत पर रो रहा है सरकारी उपेक्षाओं और निजी स्वार्थ ने आज तालाबों की ऐसी हालत कर दी है अब तालाब में पानी नहीं होता बल्कि बच्चे क्रिकेट खेलते हैं।

By Madhukar KumarEdited By: Publish:Fri, 28 Jan 2022 02:34 PM (IST) Updated:Fri, 28 Jan 2022 02:34 PM (IST)
तालाब, पोखर के अस्तित्व पर खतरा, उपेक्षाओं से तालाबों के विरासत पर संकट
अगर ऐसे ही चलता रहा, तो मानकर चलिए कि तालाबों के असित्व को खत्म होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

पलामू, जागरण संवाददाता। तालाबों का धार्मिक व रस्मों से संबंध बहुत पुराना है। हाल के जमाने तक पीने के लिए पानी कुएं से निकाला जाता था। इसके जलस्तर को कायम रखने के लिए तालाब होते थे। ये तालाब आज भी जलसंचयन का बड़ा व सरल माध्यम है। धार्मिक आयोजनों के साथ सिंचाई का महत्वपूर्ण साधन तालाब हुआ करता है।

तालाबों के अस्तित्व पर संकट

वर्तमान परिवेश में तालाबों पर संकट छाता जा रहा है। कुछ तो सरकारी स्तर पर उपेक्षा का कुछ वातावरण व कुछ आम लोगों की उदासीनता के कारण तालाब का अस्तित्व संकट में हैं। तालाब क्या सूख रहे, हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत सूख रही है। शादी विवाह में तालाब पूजन की सदियों पुरानी परंपरा तालाबों के सूखने के कारण विलुप्त होती जा रही है। लोक आस्था का महत्वपूर्ण पर्व छठ पर सूखे तालाब में पंप सेट से पानी देना अब रस्मों का निर्वहन लगता है।

तालाब के सही रख-रखाव की जरूरत

बारिश अच्छी होने के बावजूद साफ सफाई नहीं होने के कारण भी तालाब सूख रहे हैं। सरकारी पोखरों पर अतिक्रमण से भी तालाबों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। निजी तालाबों की भी स्थिति नाजुक ही होती जा रही है। सरकार व जिला प्रशासन समेत पंचायती राज व्यवस्था के तहत निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया है। डोभा व आहर पोखर निर्माण के साथ-साथ, यदि पुराने तालाबों की उड़ाही कर दी जाती तो धार्मिक विरासत की रक्षा स्वयं होने लगेगी। इसके लिए सामूहिक रूप से जनसहयोग की जरूरत है। बावजूद तालाब अतिक्रमित हो रहे हैं। इससे शहर ,गांव व पंचायत का जलस्तर नींचे गिरता जा रहा है। जाड़ा में पानी से भरे रहने वाले तालाब जनवरी में ही सूखे-सूखे से दिखने लगे है। इधर तालाबों के अतिक्रमण को रोकने का भी स्थानीय स्तर से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। नतीजतन धार्मिक विरासत की रक्षा नहीं हो पा रही है।

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