मसानजोर का घमासान: सरयू राय ने दी नसीहत, दो राज्यों का मुद्दा है-दोनों सीएम निपटाएं

झारखंड सरकार के मंत्री सरयू राय ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मसले सुलझाने की नसीहत दी है।

By Edited By: Publish:Sun, 12 Aug 2018 02:44 PM (IST) Updated:Sun, 12 Aug 2018 03:07 PM (IST)
मसानजोर का घमासान: सरयू राय ने दी नसीहत, दो राज्यों का मुद्दा है-दोनों सीएम निपटाएं
मसानजोर का घमासान: सरयू राय ने दी नसीहत, दो राज्यों का मुद्दा है-दोनों सीएम निपटाएं

राज्य ब्यूरो, रांची। चाहे वह राज्यस्तरीय मसला हो अथवा अंतरराज्यीय विवाद, हर मसले पर बेबाक टिप्पणी करने वाले राज्य के खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के मंत्री सरयू राय ने मसानजोर डैम विवाद पर अपनी बेबाक राय मुख्यमंत्री रघुवर दास को भेजी है। उन्होंने दो टूक कहा है कि इस विवाद का अंत सिर्फ झारखंड के दुमका जिला और पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिला स्तर पर संभव नहीं है। इस पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और जलसंसाधन मंत्रियों के स्तर पर गंभीर चर्चा होना चाहिए। इसमें 1949 और 1978 में हुए तत्कालीन बिहार राज्य और पश्चिम बंगाल के बीच हुए द्विपक्षीय समझौतों तथा 1994 में द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग के विश्लेषणों एवं सुझावों के महत्वपूर्ण बिंदुओं का संदर्भ लिया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री को भेजे गए अपने पत्र में राय ने कहा है कि मसानजोर डैम के निर्माण के दौरान बिहार और बंगाल के बीच 12 मार्च 1949 को मयूराक्षी जल बंटवारे पर पहला समझौता हुआ था। उन्होंने कहा है कि देवघर की त्रिकुट पहाड़ी से निकलकर करीब 203 किलोमीटर तक बहने वाली मयूराक्षी के कुल जलग्रहण क्षेत्र 8,530 वर्ग किलोमीटर में से 2070 वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र झारखंड में और शेष 6460 वर्ग किलोमीटर बंगाल में है। इसमें मसानजोर जलाशय से तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) में 81,000 हेक्टेयर जमीन की खरीफ और 1050 हेक्टेयर पर रबी फसल तथा पश्चिम बंगाल में 2,26720 हेक्टेयर खरीफ और 20,240 हेक्टेयर रबी फसलों की सिंचाई का प्रावधान किया गया था। समझौते के अनुसार निर्माण, मरम्मत तथा विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को वहन करना है। इतना ही नहीं विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी थी। दूसरा समझौता 19 जुलाई 1978 को हुआ था, जिसमें मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नून बिल के जल बंटवारें को भी शामिल किया गया था।

इस समझौते के अनुसार मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे न आए, इसका ध्यान बंगाल सरकार को पानी लेते समय हर हालत में रखना था, ताकि झारखंड के दुमका जिले की सिंचाई प्रभावित न हो। बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी -नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10,000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रामेश् वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था। सिंचाई आयोग ने पाया था कि मसानजोर डैम के पानी का जलस्तर हर साल 363 फीट से काफी नीचे आ जाता था। इसकी मूल वजह यह थी कि बंगाल डैम से अधिक पानी लेता था। मसानजोर डैम से दुमका जिले की सिंचाई के लिए पंप लगे थे, जो हमेशा खराब रहते थे, जबकि इनकी मरम्मत बंगाल सरकार को करनी है।

आयोग की अनुशंसाओं पर बिहार-झारखंड रहा मौन बकौल सरयू राय, 1991 में गठित द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग की जिस उपसमिति ने तत्कालीन बिहार, उसके पड़ोसी राज्यों तथा नेपाल के बीच हुए समझौतों पर पुनर्विचार किया था और अपने सुझाव दिए थे, मुझे उस उपसमिति का पूर्णकालीन अध्यक्ष होने का अवसर मिला था। हमने वर्तमान झारखंड के जिन जल समझौतों पर गहन अध्ययन के बाद सुझाव दिया था, उनमें दामोदर-बराकर, स्वर्णरेखा-खरकई, अजय और मयूराक्षी-सिद्धेश्वरी- नूनबिल नदियों के जल बंटवारे पर बिहार, बंगाल और ओडिशा सरकारों केबीच हुए समझौते शामिल थे। आयोग ने अपनी अनुशसा में तत्कालीन बिहार, अब झारखंड, सरकार को स्पष्ट सुझाव दिया था कि इन समझौतों में राज्य के हितों की उपेक्षा हुई है और जनहित मे इन पर नए सिरे से विचार होना आवश्यक है। अफसोस यह कि आयोग की रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद छह वर्षो तक बिहार ने और 18 वर्षो तक झारखंड ने आयोग की अनुशसाओं पर अमल करने मे रूचि नहीं दिखाया। अब जब विवाद शुरू हुआ है तो वह जनहित के मुद्दों पर न होकर मसानजोर डैम की दीवार के रंग और सड़क पर खड़ा की जा रही होर्डिग पर केंद्रित हो गया है।

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