कब बजेगा खांची, इंतजार में है रांची

जागरण संवाददाता रांची रांची विश्वविद्यालय के रेडियो खांची को तैयार होने में ही 9 वर्ष लग ग

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 09:38 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 09:38 PM (IST)
कब बजेगा खांची, इंतजार में है रांची
कब बजेगा खांची, इंतजार में है रांची

जागरण संवाददाता, रांची : रांची विश्वविद्यालय के रेडियो खांची को तैयार होने में ही 9 वर्ष लग गए। अब जबकि टावर लगने से लेकर स्टूडियो तब सब कुछ बनकर तैयार है, लेकिन अभी तक ऑन एयर नहीं हो पाया है। रांची को इंतजार है, रेडियो खांची के आवाज का। रेडियो खांची का स्टूडियो मोरहाबादी के बेसिक साइंस भवन में बनकर तैयार है। ट्रायल भी हो गया है, लेकिन शुरू नहीं हो सका है। खांची के सेटअप को दिल्ली के ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी इंडिया लिमिटेड (बेसिल) ने तैयार किया है। स्थापना में 40 लाख व अन्य खर्च 36 लाख। यानी कुल 76 लाख रुपये खाची की आवाज 90.4 एफएम पर 12 से 15 किलोमीटर तक सुनाई पड़ेगी। 30 सितंबर तक रहेगा वेलिड

भारत सरकार के डिपार्टमेंट आफ टेलीकम्यूनिकेशन से 21 अक्टूबर 2019 को वायरलेस स्टेशन लाइसेंस नंबर मिल चुका है। यह 30 सितंबर 2020 तक वेलिड रहेगा। इसके बाद फिर लाइसेंस शुल्क जमा करना पड़ेगा। रेडियो खांची का स्टूडियो सेटअप तो तैयार है। लेकिन रेडियो जॉकी सहित अन्य टेक्निकल लोगों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हो सकी है। इस संबंध में विवि प्रशासन मौन है। घर बैठे मिलेगी सारी सूचनाएं

कम्यूनिटी रेडियो का सबसे बड़ा फायदा छात्र-छात्राओं को मिलेगा। विवि की सारी महत्वपूर्ण सूचनाएं रेडियो खाची से घर बैठे मिल जाएगी। अक्सर विद्यार्थियों को शिकायत रहती है कि सूचना नहीं मिलने के कारण परीक्षा शुरू होने या तिथि बदलने की जानकारी नहीं मिली और परीक्षा छूट गयी। रेडियो शुरू होने से इस समस्या का समाधान हो जाएगा। शैक्षणिक के साथ अन्य गतिविधियों की भी जानकारी रेडियो खांची से मिलेगी। विवि में होने वाली खेलकूद, सास्कृतिक कार्यक्रमों सहित कैंपस की अन्य सूचनाएं रेडियो खाची से मिलती रहेगी। इसके अलावा वैसे विद्यार्थी जिन्हें कला में रुचि है, उन्हें अपनी प्रतिभा निखारने का भी मौका मिलेगा। वर्ष 2010 में बनी थी योजना

रांची विवि में वर्ष 2010 में रेडियो खाची स्थापित करने की योजना बनी थी। उस समय डॉ. एए खान कुलपति थे। इसके बाद डॉ. एलएन भगत के समय में इस पर विवि प्रशासन मौन रहा। फाइल ही बंद कर दी गई। इसके बाद वर्तमान कुलपति डॉ. रमेश कुमार पाडेय ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसे शुरू कराने की पहल की।

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