तबादले का श्राप फलीभूत हो गया, कुर्सी गंवानी पड़ गई... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर DIAL 100
Jharkhand Bureaucracy News. पाकुड़ से रांची आने के दौरान झा जी ने पूरे रास्ते खाकी वाले साहब को खूब कोसा। श्राप भी दिया कि एक न एक दिन करनी का फल जरूर मिलेगा।
रांची, [दिलीप कुमार]। खाकी वाले विभाग के एक साहब को झा जी का श्राप लग गया। पाकुड़ में थे तो खूब लड़ते थे। वैचारिक लड़ाई इस कदर बढ़ी कि अपने झा जी को पाकुड़ वाली कुर्सी गंवानी पड़ी। राजधानी से कोसों दूर वाले उस जिले में किसने क्या गुल खिलाया, यह पता तो नहीं चला, लेकिन बेचारे झा जी का रांची तबादला हो गया। पाकुड़ से रांची आने के दौरान झा जी ने पूरे रास्ते खाकी वाले साहब को खूब कोसा। श्राप भी दिया कि एक न एक दिन करनी का फल जरूर मिलेगा। कुछ दिनों के बाद खाकी वाले साहब भी पाकुड़ से गोड्डा के रास्ते रांची पहुंच गए। इस साहब ने अब राजधानी में ही फर्जीवाड़े की कोशिश कर डाली। आतंकी पकडऩे चले थे, खुद पकड़े गए। फिर क्या था, कुर्सी तो गंवानी ही पड़ी, कानूनी कार्रवाई भी झेलनी पड़ेगी। झा जी का वह श्राप फलीभूत हो गया।
साहब का राजनीति प्रेम
खाकी वाले विभाग में वर्षों बाद एक ठीकठाक अफसर मिला, तो उसने पुलिस को सही दिशा देने की कोशिश की। इससे कुछ लोगों के पेट में दर्द तेज हो गया है। इस अफसर के पीछे राजनीति के माहिर शिकारी भी दौड़ पड़े हैं। अब यह अफसर उग्रवादियों-अपराधियों से ज्यादा राजनीति से परेशान है। महकमे में चर्चा है कि इस राजनीति के पीछे भी बिरादरी के ही एक साहब का ब्रेन काम कर रहा है। उस साहब को पुलिङ्क्षसग से ज्यादा राजनीति पसंद है। लोग यह भी चर्चा करते हैं कि वे पुलिस में नहीं रहते, तो एक सफल राजनेता तो एक जरूर रहते। कई राजनीतिक मौकों पर खाकी को खूंटे पर टांग देने वाले वे साहब कई गंभीर आरोप भी झेल रहे हैं। न्याय की चौखट पर नए साहब के विरुद्ध मामला पहुंचने से वे खुश हैं कि बहुत जांच करते थे, अब अपनी कुर्सी बचाकर तो दिखाएं।
पाठक जी पावरफुल
खाकी वाले विभाग के एक कनीय अधिकारी हैं पाठक जी। कहने को तो छोटे अधिकारी हैं, लेकिन हैं बड़े पावरफुल। अपने काम से विभाग पर कई बार धब्बा लगा चुके हैं। इसके बावजूद उनका आज तक बाल भी बांका नहीं हुआ। गुनाह करते रहे, लेकिन सजा नहीं हुई। हल्की-फुल्की घटनाओं में दूसरों को लालघर दिखा चुके पाठक जी को बड़े से बड़े गुनाहों में किसी ने अब तक सलाखों तक पहुंचाने की हिम्मत नहीं जुटाई। पर्दे के पीछे भी कोई न कोई तो जरूर है, जो पाठक जी की गुनाहों को छुपाने में मदद कर रहा है। एक को हिरासत में मार डाला, दूसरे को थाने में बुलाकर गाली-गलौज व थप्पड़ जड़ दिया। तब सीन कुछ और था, अब सीन कुछ और है। पाठक जी होशियार, नए साहब पारखी नजरों वाले हैं, छोड़ेंगे नहीं। पर्दे के पीछे से पावर देने वाले भी दुबके नजर आएंगे।
दहशत की हाजिरी
सरकार की मशीनरी को ईंधन देने वाले विभागों में इन दिनों दहशत की हाजिरी बन रही है। चीन से चली महामारी ने अपना जाल इस कदर बिछाया कि बड़े-बड़े विभागों की फाइलों में ब्रेक लगा डाला। सरकार के घर को संभालने वाले विभाग के बड़े से लेकर छोटे साहब तक परेशान हैं। काम हो या न हो, राजा का आदेश है तो हाजिरी बनानी ही पड़ेगी न। वे किसी तरह डरते-डरते अपनी कुर्सी पर पहुंचते हैं, सरकार को कोसते हैं, भुनभुनाकर भड़ास निकालते हैं और पूरा दिन काटकर घर पहुंच जाते हैं। कोई कामधाम भी तो हो नहीं रहा, फिर कुछ दिनों के लिए छुट्टी क्यों नहीं दे रही है सरकार। विवशता है, इस उम्र में दूसरी नौकरी मिलेगी नहीं। जो है उसे बचाने के लिए खतरा तो उठाना पड़ेगा न। आखिर अपना व परिवार का पेट जो पालना है, दहशत की हाजिरी बनानी पड़ेगी।