दिव्‍यांगों की बैसाखी है मीना, मकसद है बस दूसरों के लिए जीना

Divyang. राजधानी के खेलगांव इलाके में रहनेवाली मीणा अब तक वह 100 से ज्यादा दिव्यांगों को बैसाखी बांट चुकीं हैं।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sat, 12 Jan 2019 11:10 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jan 2019 11:10 AM (IST)
दिव्‍यांगों की बैसाखी है मीना, मकसद है बस दूसरों के लिए जीना
दिव्‍यांगों की बैसाखी है मीना, मकसद है बस दूसरों के लिए जीना

रांची, सलोनी। सामान्य स्नातक मीना वर्णवाल का अलग जुनून है। गरीब महिलाओं ही नहीं दिव्यांगों के लिए भी वह बैसाखी बनीं हैं। पति बीसीसीएल से रिटायर कर चुके हैं, खुद भी उम्र की लंबी दहलीज पार कर चुकी हैं। बच्चे बाहर , अपने पांव पर खड़े हैं। कुछ साल पहले की बात है, टीवी पर सुन लिया कि सिर्फ अपने लिए जीना क्या जीना है। बस उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया। शिद्दत से दूसरों को स्वावलंबन की राह दिखाने में जुट गईं।

अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी जमाने के लिए। दूसरों के दुख-दर्द को अपना समझना और उनके लिए कुछ कर पाना, ऐसा बहुत लोग नहीं कर पाते। मीना बर्णवाल भी इन्ही कुछ लोगों में से हैं जो दूसरों की मदद करना ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं। शहर के खेलगांव में रहने वाली मीना वहीं के गांव लालखटंगा व टाटीसिलवे में रहने वाली महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण देती हैं, वह टेबल मैट, बेडशीट पर पैच वर्क, कपड़े का बैग, भगवान की पोषाक आदि बनाती हैं और इन्हे बेच कर जो पैसे आते हैं इससे वह बैसाखी खरीद कर दिव्यांगों को देती हैं, अब तक वह 100 से ज्यादा दिव्यांगों को बैसाखी बांट चुकीं हैं।

उन्होने टीवी के एक प्रोग्राम को देखने के दौरान बेसहारा लोगों की मदद करने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। उनके पति बीसीसीएल से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और बेटे दूसरे शहरों में काम करते हैं। उनका पूरा परिवार इस नेक काम में उनका साथ देता है। 9 वर्षो से वे महिलाओं को सिलाई व कढ़ाई जैसे कामों का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वावलंबी बना रही हैं, रांची से पहल वह धनबाद में थीं और वहां भी वह इस काम को कर रहीं थीं। रांची में अब तक वे 25 से अधिक महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा कर चुकी हैं।

मीना के संपर्क में आने से बदल गई महिलाओं की जिंदगी : चारों तरफ से हताश-निराश महिलाओं को कुछ सूझ नहीं रहा था। बाद में महिलाएं मीना के संपर्क में आईं। उनका कहना है कि सबसे पहले उन्होंने इन महिलाओं की काउंसलिंग की। इसके बाद धीरे-धीरे उन्हें सिलाई का प्रशिक्षण देकर योग्य बनाया। धीरे-धीरे उन महिलाओं की जिंदगी में सुधार आता गया। उनके जीवन में आए बदलाव के चलते कुछ और महिलांए उनसे जुड़ीं। उन्हें सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया गया। आज ये महिलाएं न केवल अपने पैरों पर खड़ी हैं, बल्कि परिवार का पालन-पोषण करने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं।

चेन्नई, दिल्ली, पुणे तक में है मांग : मीना ने धीरे-धीरे अपने रिश्तेदार, दोस्तों, परिवार वालों की मदद से खुद के व महिलाओं द्वारा बनाई गई चीजों को अलग-अलग शहरों में भेजना शुरू किया। चेन्नई, दिल्ली, पुणे जैसे शहरों से उन्हे बहुत अच्छा रिस्पांस मिला और अभी भी उन्हे बाहर से ऑर्डर मिल रहे हैं।

भविष्य में क्या है लक्ष्य : आने वाले दिनों के बारे में पूछे जाने पर मीना ने बताया की वह बैसाखी के साथ-साथ व्हीलचेयर खरीद कर भी जरूरतमंदों के बीच बांटने के बारे में पिछले कुछ दिनों से सोच रही हैं और भविष्य में वह ये जरूर करेंगी साथ ही कुछ दिन पूर्व ही उन्होने ज्वेलरी मेकिंग का प्रशिक्षण भी महिलाओं को देना शुरू किया है जिसे वह आगे लेकर जाना चाहती हैं।

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