Weekly News Roundup Jharkhand: साहब के शौक पर आफत, गुटखा ने सरेआम जलील किया

Weekly News Roundup Jharkhand पहली धार की पीक से धरती को लाल करने का सुख ही कुछ और है। लंबी चौड़ी नेम प्लेट वाला मोटर साथ हो तो शौक शान में तब्दील हो जाता है लेकिन यहां आफत आ पड़ी है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 19 Oct 2020 12:58 PM (IST) Updated:Mon, 19 Oct 2020 05:03 PM (IST)
Weekly News Roundup Jharkhand: साहब के शौक पर आफत, गुटखा ने सरेआम जलील किया
बाबुओं का सब धान बाइस पसेरी ही रह जा रहा है।

रांची, [आनंद मिश्र]। शौक बड़ी चीज है जनाब। मुंह में गुटखा दबा कर पहली धार की पीक से धरती को लाल करने का सुख ही कुछ और है। लंबी चौड़ी नेम प्लेट वाला मोटर साथ हो, तो शौक शान में तब्दील हो जाता है और ऐसे शानदार लोगों से गुस्ताखी करने की बेअदबी कोई नहीं जुटा पाता। लेकिन, यहां तो आफत आई पड़ी है, तमाम शौक पर। लाल-पीली बत्ती पहले ही आधा रुतबा साथ ले गई थी, अब बचे-खुचे शौक से भी हुजूर खफा हुए जाते हैं। गुटखा पर सरेआम जलील किया और अब कहते हैं कि पहली फुरसत में वाहन पर लगी नेमप्लेट से मुक्ति पा लो। ट्रांसपोर्ट वाले साहब इसी सिलसिले में तलब किए गए हैं। नेमप्लेट भी गई, तो अब कहां के रहेंगे। कलफ लगा कुर्ता टांगने की नौबत आ जाएगी। फिर, काहे की विधायकी और काहे की कलेक्टरी। सब धान बाइस पसेरी, ही रह जाएगा।

तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय

अटैक इज द बेस्ट डिफेंस। सियासत में यह फार्मूला खासा हिट है। यह मूल मुद्दों से भटकाता है और पालिटिकल माइलेज भी दिलाता है। इसे और स्पष्ट समझते हैं। यदि कोई आपको हाथरस दिखाए, तो आप उसे दुमका बरहेट दिखाएं। जख्मों को बार-बार कुरेदें। संवेदनशील मुद्दों पर चिंता जताएं और उसकी मार्केटिंग का कोई मौका न छोड़ें। चुनाव या उपचुनाव हो, तो इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। बाकी काम सोशल मीडिया सेल कर देगा। ऐसे प्रयासों से दंगे तक हालात पहुंच जाएं, तो समझ लो लग गए पार। जाने के बाद भी माला पहनाने वालों की कमी नहीं रहेगी। मौजूदा सियासत का यही सिद्धांत हिट है। तुम मेरी पीठ खुजाओ, मै तुम्हारी। तुम्हारी भी दुकान चलती रहे और हमारी भी। तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय।

बंद आंखें खुल गईं

लालटेन छोड़, कमल थामा तो मैडम के दिन बहुरे। कोडरमा से सीधे दिल्ली पहुंचीं, वो भी नॉन स्टाप। अब कर्ज तो अदा करना ही होगा। सो, पुरानी पार्टी के तेवर के साथ, नई पार्टी की विचारधारा के एजेंडे को साथ लेकर हुक्म की तामील कर रही हैं। चुनावी मौका है, भावुकता में कुछ निकल गया। धृतराष्ट्र की उपाधि दे दी हुजूर को। तंज तीखा था, सरकार की बंद आंखें खुल गईं। खुलीं तो वह सब कुछ दिखने लगा, जो अब तक नजरअंदाज था। तमाम सरकारी महकमों के करमचंद लेंस लेकर खोजबीन में जुट गए। कल तक जिन्हें झाडिय़ां भी नहीं दिख रहीं थीं, उन्हें आंगन में जंगल नजर आने लगे। कौड़ी का अभ्रक भी हीरा बन गया। ठंडे में भी खोट नजर आ रहा है और शुरू हो गया है जवाब-तलब। कमल दल में चुप्पी है। मैडम हैरान हैं। पूछ रहीं हैं कि हमसे क्या भूल हुई।

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। दिल्ली वाले अपनी ठसक में हैं, तो रांची भी दबने को तैयार नहीं हैं। मुकाबला बराबरी का तनिक भी नहीं हैं, लेकिन ठसक भी कोई चीज है। पाई-पाई पर छिड़ी है जंग। ऐसे कैसे दब जाएंगे, बहीखाता खोल हक की बात उठाई है। हल्ला बोल, तान दिए हैं तीर-कमान। छीन कर लेंगे अधिकार। आर्थिक नाकेबंदी करेंगे। अब यह कहां तक संभव है, पता नहीं। लेकिन, वीर रस की कविताओं का पाठ ऐसे संजीदा मौके पर भी न किया जाए, तो लोग कमजोर आंक लेंगे। भले ही इस जंग में खेत रहें, लेकिन यह इल्जाम तो सिर माथे न आएगा कि चुप्पी साध ली। इधर, कमल दल वाले बाबा ने भी अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाया है। कहते हैं ये तेवर ठीक नहीं। कुछ न पाओगे और कोयले से भी जाओगे।

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