सीएम हेमंत सोरेन की तमाम कोशिशें नाकाम, नौकरशाही की सुस्ती के चलते विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे आम लोग

Jharkhand Politics सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को गति देने की मुख्यमंत्री की तमाम कोशिशें भी नौकरशाही की लापरवाही से परवान नहीं चढ़ पा रही है। इसमें सबसे अधिक अड़चन नियुक्ति नियमावली की है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 30 Oct 2021 09:53 AM (IST) Updated:Sat, 30 Oct 2021 10:09 AM (IST)
सीएम हेमंत सोरेन की तमाम कोशिशें नाकाम, नौकरशाही की सुस्ती के चलते विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे आम लोग
भविष्य का बेहतर झारखंड बनाने का सभी का सपना फलीभूत हो सके।

रांची, प्रदीप शुक्ला। Jharkhand Politics राज्य में दो करोड़ से ज्यादा वयस्कों को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज मिलने के बाद धीरे-धीरे सामान्य हो रहे जनजीवन के बीच अब गठबंधन सरकार तत्परता से आम लोगों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गई है। सत्तारूढ़ होने के बाद से ही कोरोना वायरस से जूझती आ रही गठबंधन सरकार को शायद इसका बाखूबी अंदाजा हो चुका है कि महामारी के नाम पर कार्यालयों तक सिमट चुकी नौकरशाही की सुस्ती के चलते जन सामान्य को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।

राज्य में दूरदराज के गांवों-जंगलों में रह रहे लोगों के जीवन में दुश्वारियां काफी बढ़ गई हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसे लेकर खासे चिंतित और संजीदा हैं। उन्होंने विभागीय समीक्षाओं में राज्य की आला नौकरशाही को अपनी चिंता से अवगत करा दिया है। उन्होंने तय किया है कि राज्य गठन समारोह के अगले दिन से ही प्रदेश स्तर पर सरकार आपके द्वार कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। इस दौरान विभिन्न विभागों के अफसरों के साथ सरकार गांव-गांव पहुंचेगी। वैसे यह कोई नई सोच नहीं है। पहले भी सरकारें ऐसा करती रही हैं। बस देखना यह होगा कि क्या वाकई इस बार नौकरशाही की तंद्रा टूटेगी? क्या सरकार की सोच को धरातल पर उतारने के लिए ईमानदारी से सार्थक कोशिशें होंगी? जनप्रतिनिधियों को इस पर कड़ी नजर रखनी होगी। कहीं ऐसा न हो कि पहले चले तमाम अभियानों की तरह इसका भी हश्र कुछ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने तक सिमट जाए।

आगामी 15 नवंबर को झारखंड गठन के 21 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। यह राज्य बिहार से अलग हुआ था। एक ही वक्त में झारखंड के साथ देश के नक्शे पर दो अन्य राज्यों छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का भी उदय हुआ था। इस दरम्यान झारखंड जहां राजनीतिक अस्थिरता की प्रयोगशाला बना, वहीं अन्य दोनों राज्यों में कमोबेश स्थिर सरकारें रहीं। इसका असर भी साफ दिखता है। बुनियादी सुविधाओं से लेकर विकास के अन्य पैमाने पर देखें तो झारखंड तमाम संसाधनों से संपन्न होने के बावजूद अपेक्षित प्रगति नहीं कर पाया है।

छत्तीसगढ़ की नई राजधानी की चर्चा देश के बाहर-भीतर होती है, लेकिन झारखंड में अभी यह फाइलों में ही उलझा पड़ा है। इसकी वजह की पड़ताल करने पर एकबारगी राजनीतिक नेतृत्व की तरफ ऊंगली उठती है, लेकिन जरा गंभीरता से सोचें। राज्य में भले ही राजनीतिक नेतृत्व में उलटफेर होता रहा है, लेकिन नौकरशाहों की कोई भूमिका या जवाबदेही कभी चिन्हित नहीं की गई। यही कारण है कि बुनियादी सुविधाओं की मांग से लेकर, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन और दिव्यांग पेंशन तक के लिए आम आदमी राजधानी रांची आकर फरियाद करने को मजबूर होता है। निचले स्तर से लेकर ऊपर तक नौकरशाही का यही हाल है। इसके लिए सरकार के साथ-साथ अफसरों की भूमिका भी तय करनी होगी।

अब स्थापना दिवस समारोह के अगले दिन से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ‘सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया है। मुख्य सचिव समेत तमाम विभागीय प्रमुखों की बैठक में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा, खुद को जनता का सेवक कहने वाले अधिकारी वातानुकूलित कक्ष से बाहर निकलना नहीं चाहते। सुदूर प्रखंडों और गांवों में जाकर यह नहीं देखना चाहते कि लोगों की आवश्यकताएं क्या हैं और उसकी पूर्ति के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। कभी-कभार रस्मी तौर पर ऐसे कार्यक्रम याद आते हैं, जब राजनीतिक नेतृत्व के दबाव में अधिकारियों ने रात में किसी सुदूर इलाके में कैंप किया है।

इसी प्रकार सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को गति देने की मुख्यमंत्री की तमाम कोशिशें भी नौकरशाही की लापरवाही से परवान नहीं चढ़ पा रही है। इसमें सबसे अधिक अड़चन नियुक्ति नियमावली की है। विभागीय अधिकारियों ने इसपर ध्यान ही नहीं दिया। जब नियुक्ति की प्रक्रिया अदालती पेच में उलझने लगी तो इस ओर ध्यान दिया गया। अधिकारियों ने इस मामले में भी उदासीनता बरती और अब नियुक्ति नियमावली में भी संशोधन की कवायद की जा रही है। आखिरकार ऐसी स्थिति में अधिकारी अपनी जवाबदेही से मुंह कैसे मोड़ सकते हैं।

अपने नैसर्गिक सौंदर्य से पर्यटन के मानचित्र पर छाप छोड़ने में सक्षम है झारखंड। फाइल

कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ विकास योजनाओं को गति देना आवश्यक है। निवेश लाने की कोशिशों के बावजूद अगर कोई बदलाव नहीं आ रहा है तो अधिकारियों को संबंधित खामियों को समझना होगा। झारखंड के पास प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं। झारखंड की प्राकृतिक छटा विश्व के पर्यटन मानचित्र पर उभरने के योग्य है। खूबसूरत नेतरहाट देश के प्रमुख हिल स्टेशनों को टक्कर देता है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कभी इसकी ब्रांडिंग की जरूरत ही महसूस नहीं की गई। कभी-कभार प्रयास हुआ तो वह भी आधे-अधूरे मन से।

अगर इमानदारी से समेकित प्रयास हों तो झारखंड विकसित प्रदेशों के समकक्ष खड़ा हो सकता है। इसके लिए सजगता और संवेदनशीलता आवश्यक है। कहते हैं, जब जागे तभी सवेरा। अभी भी देर नहीं हुई है। अपनी पूरी क्षमता के साथ उठ खड़ा होने के लिए यह आवश्यक भी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की परिकल्पना है कि नौकरशाही अगले 25 वर्षो का लक्ष्य लेकर आधारभूत संरचना तैयार करे। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि अब तक सत्ता में रहे दलों के साथ-साथ नौकरशाही को यह आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर चूक कहां रह गई? ताकि भविष्य का बेहतर झारखंड बनाने का सभी का सपना फलीभूत हो सके।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]

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