झारखंड की सुंदरता को कैमरे में कैद करने की चाहत

आगामी तीन अगस्त को रांची में जागरण फिल्म फेस्टिवल का आगाज हो रहा है। फेस्टिवल तीन दिनों तक चलने वाला हैं, यहां बालीवुड सहित स्थानीय कलाकारों की फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा।

By Edited By: Publish:Wed, 01 Aug 2018 08:58 AM (IST) Updated:Wed, 01 Aug 2018 02:19 PM (IST)
झारखंड की सुंदरता को कैमरे में कैद करने की चाहत
झारखंड की सुंदरता को कैमरे में कैद करने की चाहत

रांची। विश्व का सबसे बड़ा घुमंतू फिल्म फेस्टिवल अब रांची में दस्तक दे चुका है। पिछले आठ साल से चल रहा यह कारवां नौवें साल में प्रवेश कर गया है। तीन से पांच अगस्त तक मेन रोड स्थित जेडी स्ट्रीट के कार्निवाल में तीन दिनों तक फिल्मों का मेला लगेगा। तैयारी पूरी हो चुकी है। दर्शकों में भी खूब उत्साह है। एक से बढ़कर एक फिल्में दिखाई जाएगी। फीचर फिल्मों के अलावा शार्ट फिल्में भी हैं और मास्टर क्लास भी। चार अगस्त को दस बजे एनएसडी थियेअर एक्टिंग क्लास होगी। फिल्म के तकनीकी पक्षों पर चर्चा होगी। रात आठ बजे अतिथियों के साथ बातचीत होगी। फिल्म से जुड़े लोगों से सीधे रूबरू होने का मौका भी मिलेगा। आइए, झारखंड और सिनेमा के रिश्ते पर एक नजर डालते हैं। हमारा शहर सिनेमा से कितने बरसों से जुड़ा है।

शूटिंग करने वाले पहले फिल्मकार ऋत्विक घटक
महान फिल्मकार ऋत्विक घटक ऐसे पहले फिल्मकार थे, जिन्होंने छोटानागपुर में शूटिंग की नींव डाली और आदिवासी जीवन पर पहली बार डाक्यूमेंट्री बनाई। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत 'बेदिनी' फिल्म से की थी। 1952 में फिल्म यूनिट को लेकर घाटशिला आए और स्वर्णरेखा नदी के किनारे 20 दिनों तक रहे और शूटिंग की। इसके बाद उन्होंने 'आदिवासी जीवन के स्त्रोत' एवं 'उराव' जनजाति पर डाक्टयूमेंट्री बनाई। आदिवासी समाज को, उनकी संस्कृति को निकट से देखने की कोशिश की। दोनों डाक्यूमेंट्री की शूटिंग रांची के आस-पास और नेतरहाट क्षेत्र में की थी। घटक ने 'अजात्रिक' फिल्म की शूटिंग रांची, रामगढ़ रोड आदि क्षेत्रों में की। यह फिल्म बांग्ला में है, लेकिन पहली बार उराव यानी कुड़ुख भाषा में संवाद और नृत्य को इस फीचर फिल्म में दिखाया गया है।

ऋत्विक घटक को झारखंड काफी पसंद था। इसे वे कभी भूले नहीं। जब 1962 में सुबर्णरेखा बनाई तब भी नहीं। कहा जाता है कि झारखंड से परिचित कराने वाले कथाकार राधाकृष्ण थे। उन्होंने ही रांची बुलाया और झारखंड पर करीब नौ डाक्यूमेंट्री के लिए पटकथा लिखी और ऋत्विक घटक ने उसे फिल्माया। अरण्येर दिनरात्रि भारतीय सिनेमा के शीर्ष पुरुष, बांग्ला के जाने-माने फिल्मकार सत्यजीत रॉय ने पलामू में अपनी फिल्म 'अरण्येर दिनरात्रि' (जंगल में दिन-रात) की शूटिंग की थी। 1969 में इसकी शूटिंग पलामू प्रमंडल के नेतरहाट, छिपादोहर, केचकी आदि जंगलों में हुई थी। फिल्म में शर्मिला टैगोर व सिमी ग्रेवाल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। सिमी ने आदिवासी लड़की का रोल किया था।

हृषिकेश मुखर्जी की 'सत्यकाम'
प्रसिद्ध निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी ने धर्मेंद्र को लेकर 1969 मे सत्यकाम बनाई, जिसकी शूटिंग भी झारखंड के घाटशिला क्षेत्र में हुई। यहां एक डाक-बंगला भी हैं, जहां 'सत्यकाम' फिल्म की शूटिंग के लिए धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर ठहरी थीं।

चासनाला दुर्घटना और 'काला पत्थर' दुनिया का सर्वाधिक बड़ा हादसा 27 दिसंबर,1975 के दिन चासनाला हादसा हुआ। इस हादसे में कुछ मिनटों में 375 से ज्यादा लोग डूब कर मर गए। चासनाला खदान में हुए हादसे को यश चोपड़ा ने काला पत्थर फिल्म बनाई। फिल्म 24 अगस्त, 1979 में रिलीज हुई। झारखंड के गिद्दी वाशरी में इसकी शूटिंग के दौरान यश चोपड़ा, शत्रुघ्न सिन्हा के साथ आए थे। वे यहां गिद्दी रेस्ट हाउस में ठहरे थे। प्रकाश झा ने शुरुआत की रांची से एक लंबे अंतराल के बाद रांची फिर सूर्खियों में आया। झारखंड के सैनिक स्कूल में पढ़े प्रकाश झा ने अपनी पहली फिल्म 'हिप हिप हुर्रे' की शूटिंग रांची में की थी। विकास विद्यालय एवं बिशप बेस्टकॉट (लड़के) में शूटिंग हुई थी। मोरहाबादी मैदान फुटबाल मैच की शूटिंग हुई। यह जमाना 1983 का था।

फिल्म 1984 में पर्दे पर आई। फिल्म में दीप्ति नवल और राजकिरण ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म बनने के बाद मेन रोड स्थित सुजाता सिनेमा हॉल में इसका प्रीमियर हुआ था। आक्रांत में दिखी आदिवासी समस्याएं रांची के रंगकर्मी-लेखक व अंग्रेजी के प्रोफेसर विनोद कुमार ने 1986 में 'आक्रांत' नाम से फिल्म बनाई। रांची से 165 किमी दूर, गुमला के राजाडेरा जंगल में 24 दिन शूटिंग की गई। चार दिन रांची में और चार दिन मुंबई में। 1988 में सेंसर से सर्टिफिकेट मिला, लेकिन दूरदर्शन पर इसका प्रीमियर हुआ 1990 के दिसंबर में। सदाशिव अमरापुरकर, शीला मजूमदार, सीएस दुबे के अलावा दर्जनों आदिवासी युवक-युवतियों ने अभिनय किया था। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक डा. रामदयाल मुंडा ने दिया था। इस फिल्म में पहली आदिवासी वाद्य और संगीत का प्रयोग किया गया था।

'बेगम जान' के साथ बढ़ रहा कारवां
फिल्म नीति बनने के बाद यहां शूटिंग का दौर एक बार फिर शुरू हुआ। इसने रफ्तार को बढ़ा दिया और सरकार भी हर स्तर पर सहयोग कर रही है। महेश भट्ट निर्मित बेगम जान की शूटिंग 2016 में दुमका में हुई। फिल्म की करीब 90 प्रतिशत शूटिंग दुमका जिले के रनेश्वर, पाटजोर और नंदिनी गाव में हुई थी। गांव में पहाड़ की खूबसूरत वादियों में 'बेगम जान' के कोठे का जो सेट बना था, वह मुख्य रूप से प्लाई का था। इस सेट को बनाने में करीब 20 दिन लगे थे। करीब डेढ़ माह तक विद्या बालन, नसीरुद्दीन शाह, आशीष विद्यार्थी, चंकी पांडेय जैसे कलाकार यहां ठहरे थे। मैकलुस्कीगंज पसंदीदा जगह मैकलुस्कीगंज में कोंकणा सेन शर्मा का बचपन बीता है। उन्होंने पिछले साल अपनी फिल्म 'अ डेथ इन द गंज' की शूटिंग यहां कीं।

'अ डेथ इन द गंज' से अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा ने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। इस फिल्म के लिए उन्हें न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड भी मिला। रांची के करीब मैक्लुस्कीगंज की एक आपराधिक घटना को लेकर बनी इस फिल्म की प्रमुख भूमिकाओं में विक्रात मैसी, कल्की कोचलीन, गुलशन, रणबीर शौरी और दिवंगत ओम पुरी ने भूमिका निभाई। फिल्म फेस्टिवल ने बनाया माहौल आठ साल पहले दैनिक जागरण ने फिल्मोत्सव की शुरुआत की। इसका एक पड़ाव रांची भी रहा। इसके बाद हर साल इसका आयोजन होता रहा। अब झारखंड में हिंदी-बांग्ला ही नहीं, यहां की स्थानीय भाषाओं नागपुरी, खोरठा, संताली के साथ-साथ अब पंजाबी फिल्में भी बन रही हैं। दक्षिण भारत के निर्देशक भी यहां शूटिंग के लिए आवेदन दिए हुए हैं। इस तरह फिल्म को लेकर माहौल बनाने में दैनिक जागरण के इस घुमंतू फिल्मोत्सव की बड़ी भूमिका है।

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