अमनपसंद लोग भीड़ के मनसूबों को कर सकते नाकाम

रांची : भीड़ की ¨हसा समाज और कुछ व्यक्तिगत लोगों की सोच पर निर्भर करती है। मौजूदा समय में समाज में बुत विविधता है। ऐसे में यह जानना मुश्किल है कि कौन क्या सोचता है। समाज में अमनपसंद लेाग ही भीने के मनसूबों को नाकाम कर सकते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 24 Jul 2018 09:55 AM (IST) Updated:Tue, 24 Jul 2018 09:55 AM (IST)
अमनपसंद लोग भीड़ के मनसूबों को कर सकते नाकाम
अमनपसंद लोग भीड़ के मनसूबों को कर सकते नाकाम

रांची : भीड़ की ¨हसा समाज और कुछ व्यक्तिगत लोगों की सोच पर निर्भर करती है। मौजूदा समय में समाज में इतनी विविधता आ गई है कि यह सोचना काफी मुश्किल है कि कौन क्या सोच रहा है। आप हर चीज का अनुमान नहीं लगा सकते। प्राथमिक स्तर पर आसपास के लोग ही भीड़ की ¨हसा पर नियंत्रण कर सकते हैं। इसमें जागरूक व अमनपसंद लोग भीड़ की उपद्रव की मंशा को नाकाम कर सकते हैं। यह कहना है रांची के सिटी एसपी अमन कुमार का। वे सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में संपादकीय टीम के साथ जागरण विमर्श में भीड़ की ¨हसा पर कैसे लगे लगाम विषय पर चर्चा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि भीड़ और एक अकेले व्यक्ति की सोच अलग-अलग होती है। लोग यह सोचते हैं कि भीड़ कर रही है तो हम भी कर लेते हैं। जहां कहीं भी भीड़ ¨हसा करने पर उतारू होती है, वहां सबसे पहले आसपास के सजग व जागरुक लोगों का कर्तव्य बनता है कि वे उसे रोकें। पुलिस को सूचित करें। पुलिस के पहुंचने तक लोगों को उग्र न होने दें। भीड़ की सोच इतनी क्रूर नहीं होती है कि वह किसी को जान से मार दे। वह पत्थर चला सकते है। ऐसे मामलों में बाहरी तत्व का भी हाथ होता है। कई बार बाहर से लोगों को ¨हसा फैलाने के लिए बुलाया जाता है। यह गलत मकसद से होता है। ऐसे में इन्हें रोकना आसान नहीं होता।

भीड़ की ¨हसा के कई कारक

भीड़ की ¨हसा में आर्थिक और राजनीतिक कारक भी काम करते हैं। आक्रोश में भी ऐसी घटनाएं होती हैं। इनमें बंदी, हड़ताल व जुलूस शामिल हैं। लोगों के अंदर गुस्सा होता है कि सरकार अच्छा नहीं कर रही है, कुछ नहीं कर रही है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को नियमित पानी नहीं मिल रहा है तो हो सकता है कि वह नगर निगम अधिकारियों पर हमला कर दे। भीड़ की ¨हसा के बहुत-से कारक हैं, जिस पर पुलिस का नियंत्रण नहीं होता है। इसके अलावा कभी-कभी घटना अचानक हो जाती है। इसका पता नहीं होता। इसमें पुलिस कितने समय के अंदर घटनास्थल पर पहुंच पाती है और उसे नियंत्रित कर पाती है, यह निर्भर करता है। यदि पुलिस बल की संख्या ज्यादा हो तो भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे किसी भी अनहोनी की आशंका कम हो जाती है। सूचना तंत्र मजबूत हो तो तैयारी हो पाती है। लेकिन सूचना तंत्र की भी सीमा होती है।

भड़काने वालों पर होती है सख्त कार्रवाई

पुलिस भीड़ को भड़काने वालों पर कार्रवाई करती है। उन्हें कोर्ट की ओर से सजा भी मिलता है। कार्रवाई समाज को संदेश देती है कि गलत करने पर सजा जरूर मिलेगी। आप बच नहीं सकते। पुलिस संवेदना के साथ काम कर रही है। पहले किसी भी घटना में कार्रवाई करने में दिक्कत होती थी। लेकिन अब तो वीडियोग्राफी के माध्यम से उपद्रवियों को पहचानना आसान हो गया है। जो भी वीडियो फुटेज में नजर आता है, उस पर कार्रवाई होती है। ऐसी घटनाओं में कोर्ट का फैसला भी अहम होता है।

सोशल मीडिया पर रखी जाती है निगरानी

पुलिस भीड़ को भड़काने में हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने वाली सोशल मीडिया पर भी निगरानी रखती है। भड़काऊ पोस्ट करने वालों को कई बार जेल भेजा गया है। कई को चेतावनी देकर छोड़ा गया है। ऐसा करने वालों से पुलिस सख्ती से निबटेगी। मौजूदा समय में सोशल मीडिया भी भीड़ ला रही है। पुलिस विभाग भी सोशल मीडिया के जरिये इन पर नजर रखती है। सामान्य रूप से इनकी निगरानी होती है। गलत लोगों पर कार्रवाई होती है। भीड़ की ¨हसा जैसे मामलों में मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। खासकर प्रिंट मीडिया किसी भी मामले में आम जन को सही दिशा में लेकर जाता है।

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