लॉकडाउन के बहाने घर वापस आ रहीं लड़कियां, कहीं दोबारा न बिक जाएं? शुरू हुई निगहबानी

Human Trafficking. झारखंड लौटने वालों में मानव तस्करी की शिकार लड़कियों की भी खासी तादाद है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग राज्यों के साथ मिलकर एक्शन प्लान बनाएगा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 11 May 2020 09:35 AM (IST) Updated:Tue, 12 May 2020 12:12 AM (IST)
लॉकडाउन के बहाने घर वापस आ रहीं लड़कियां, कहीं दोबारा न बिक जाएं? शुरू हुई निगहबानी
लॉकडाउन के बहाने घर वापस आ रहीं लड़कियां, कहीं दोबारा न बिक जाएं? शुरू हुई निगहबानी

रांची, [विनोद श्रीवास्तव]। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बाहर के प्रदेशों में हजारों की संख्या में फंसी मानव तस्करी की शिकार किशोरियों को लेकर चिंता जताई है। झारखंड के संदर्भ में एक सर्वे के हवाले से उन्होंने बताया कि हर साल यहां से तकरीबन 30 हजार किशोरियों और बच्चियों का असुरक्षित पलायन होता है। मानव तस्कर उन्हें बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर बहला-फुसलाकर बाहर ले जाते हैं। महामारी के इस दौर में दूसरे प्रदेशों से लौट रहे श्रमिकों में इनकी भी बड़ी तादाद है। कोशिश की जा रही है कि वे फिर से तस्करों के जाल में न फंसें।

एनसीपीसीआर राज्य सरकार की मदद से उनके लिए एक्शन प्लान तैयार करेगा। इस बाबत देश के सभी राज्यों के बाल संरक्षण आयोगों के अध्यक्ष, सदस्य, पुलिस अधिकारी और समाज कल्याण विभाग के पदाधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में की गई चर्चा के दौरान कानूनगो ने एक्शन प्लान बनाए जाने के संकेत दिए। झारखंड से एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन (एटसेक), इंडिया के सचिव संजय कुमार मिश्र ने भी वीडियो कांफ्रेंसिंग में शिरकत की।

एटसेक इंडिया के सचिव ने झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि झारखंड सरकार द्वारा मानव तस्करी को लेकर हाल ही में एक अध्ययन कराया है, जिसमें मानव तस्करी को रोकने की दिशा में कई सुझाव दिए गए हैं। इसके अनुपालन से मानव तस्करी के साथ-साथ बाल विवाह पर भी बहुत हद तक प्रतिबंध लग सकेगा। झारखंड जैसे राज्य के लिए यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऐसे में इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि आर्थिक विपन्नता का दंश झेल रही किशोरियां और युवतियां एक बार फिर तस्करों के चंगुल में फंसकर महानगर पहुंच जाए। इन्हें रोकने के लिए ठोस नीति का होना निहायत जरूरी है।

अध्ययन में निकल कर आए सुझाव

बाहर जाने वाली किशोरियों व युवतियों का पंजीकरण अनिवार्य हो। ग्राम बाल संरक्षण समिति को मजबूती प्रदान की जाए। पुलिस पदाधिकारी, बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण यूनिट एवं  एवं गैरसरकारी संस्था के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जाए। ग्राम बाल संरक्षण समिति के माध्यम से वैसे परिवार को चिह्नित कर परामर्श दिया जाए, जहां पलायन की संभावना अधिक हो। बाहर के प्रदेशों से लौटने वाली किशोरियों व युवतियों के लिए आफ्टर केयर यूनिट की स्थापना हो। उन्हें सरकार की विविध योजनाओं से जोड़ा जाए। पुनर्वास की हो बेहतर पहल। बालिकाओं को तेजस्विनी क्लब से जोड़कर कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाए। यूथ क्लब का निर्माण सभी गांवों में हो। मानव तस्करी और बाल विवाह को रोकने में चेंज एजेंट के रूप में ग्रामीणों की भूमिका सुनिश्चित हो।

सर्वाधिक तस्करी इन जिलों से

सरकार द्वारा कराए गए अध्ययन में दुमका, पाकुड, साहिबगंज, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी और पश्चिम सिंहभूम जिले को बालिकाओं की तस्करी के मामले में रेड जोन में रखा गया है। एनसीपीसीआर ने राज्य सरकार को इन जिलों पर खास फोकस करने की नसीहत दी है। कहा है कि एक्शन प्लान तैयार होने के बाद सरकार एनसीपीसीआर के दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए झारखंड को मानव तस्करी के कलंक से मुक्त कराए।

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