शहरनामा : मातृभूमि पर बलिदान होने वालों की होती रही चर्चा

दिन भर चीन सीमा पर शहीद हुए लोगों की चर्चा होती रही।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Jun 2020 01:28 AM (IST) Updated:Thu, 18 Jun 2020 01:28 AM (IST)
शहरनामा : मातृभूमि पर बलिदान होने वालों की होती रही चर्चा
शहरनामा : मातृभूमि पर बलिदान होने वालों की होती रही चर्चा

ब्रजेश मिश्र, रांची कितने आदमी थे

फिल्म शोले याद होगी। गब्बर का वह चर्चित डायलॉग। अरे ओ कालिया.. कितने आदमी थे। उत्तर, सरदार दो आदमी। यह संवाद फिर फिजा में गूंज रहा है। पात्र बदले हैं, परिस्थितियां भी। झारखंड का लाल भारत-चीन सीमा पर शहीद हो गया है। राजधानी रांची गम में डूबी है। मन भारी है, मस्तिष्क बेचैन। हर तरफ शोक है, तनाव है और गुस्सा भी। सवाल, साथ-साथ बड़ा हो रहा। सीमा पर क्या हो रहा है? हमारे कितने आदमी हैं? कितने लोग मातृभूमि पर बलिदान हुए हैं? क्या हुआ वहां? कैसे हुआ? उनके कितने मरे? सारे प्रश्न अपने उत्तर खोज रहे हैं। टीवी चैनलों पर निगाहें लगी हैं। पल-पल के घटनाक्रम को जानने की प्रबल इच्छा है। चर्चा के केंद्र में देश की एकता और अखंडता है। महामारी की चिंता पीछे छूट गई है। राष्ट्र पर विपत्ति की आशंका है। हर शख्स अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य के लिए तैयार है।

------

कुर्बानी याद रहे

झारखंड की माटी कुर्बानी देना जानती है। इसका लंबा इतिहास रहा है। देश में जब-जब संकट के हालात पैदा हुए, हमारे जवानों ने अपना सीना आगे कर गोलियां खाई। सीमा पर एक बार फिर झारखंड ने बलिदान दिया है। चीन की चालाकियों के जख्म हमने अपने शरीर पर सहे हैं। हो सकता है, कुछ दिनों में यादों पर गहरी धूल जम जाए। स्मृतियां धुंधली पड़ने लगें। वादा है हमारा, हम इसे भूलेंगे नहीं। हमने परमवीर अलबर्ट एक्का को याद रखा है। हम कुंदन का बलिदान भी याद रखेंगे। रांची में स्थापित वार मेमोरियल स्मृति स्थल होगा। शहीदों की याद में मेले लगते हैं। आगे भी लगेंगे। जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी के शब्दों में कहें तो.. वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है, सुना है आज मकतल में हमारा इम्तिहां होगा, शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही..।

----

ये रक्षा शक्ति

एक पुरानी कहावत थी। आग लगने पर कुआं खोदना। देश व राज्य ने विकास की सीढि़यां चढ़ीं। हम कहावत से एक कदम आगे आ गए। हम कुआं भी पहले खोदने लगे। अब बस उसमें पानी नहीं रहता। कुआं खोदा जाता है। योजना का चेक कटकर बैंक अकाउंट में पहुंच जाता है। पानी की चिंता न खोदने वाले को होती है, न खुदवाने वाले को। सुरक्षा के मोर्चे पर भी यही कहानी दोहराई जाती है। झारखंड में भी एक प्रयोग हुआ। बकायदा विवि बनाया गया। लगा, बड़ा चमत्कार होगा। देश व राज्य की रक्षा होगी। नई शक्ति मिलेगी। मिली कितनी? इस पर सबसे बड़ी चुप्पी वह विभाग साधे है, जिसने पूरे गाजे-बाजे के साथ इसकी आधारशिला रखी। साल दर साल गुजर गए। विवि के लिए एक अदद कुलपति की नियुक्ति नहीं हो सकी। तत्कालीन सचिव ने आगे बढ़कर जिम्मेदारी संभाली। अब भी संभाल रहे। पूरे मनोयोग से।

------

हैं तैयार हम

लॉकडाउन ने थोड़ी मुश्किल पैदा कर दी। इसके बावजूद, चुनौतियों से हम पीछे हटने वाले नहीं। मैदान छोड़कर भागने वाले नहीं। सेना में भर्ती के लिए अब भी हजारों युवाओं की कतार है। मोरहाबादी मैदान तैयार है। महामारी के ठीक पहले सेना में भर्ती के लिए कैंप लगने वाला था। युवाओं के बैग बंध चुके थे। महामारी के कारण अचानक सब कुछ रोकना पड़ा। भरोसा दिलाया गया, हालात सुधरते ही बहाली शुरू होगा। रांची से लेकर राज्य के विभिन्न हिस्सों में बैठी युवाओं की टोली को बस बुलावे का इंतजार है। पूरी परीक्षा से गुजरेंगे, कठिन प्रशिक्षण को पार करेंगे। मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करने को मैदान में उतरेंगे। यह चीन की चुनौती है। यह वर्ष 2020 का हिदुस्तान है। सन 1962 से अब तक स्वर्णरेखा में बहुत पानी बह चुका है। ना अब हिन्दुस्तान कमजोर है, ना झारखंड गर्भ में है। हम युवा तैयार हैं।

chat bot
आपका साथी