36 घंटे तक लगाता रहा 5 अस्पतालों का चक्कर, आखिर में एंबुलेंस में ही हो गई मौत Ranchi News

कोडरमा से आए कोरोना संक्रमित मरीज को रांची के अस्पतालों ने भर्ती नहीं किया। डॉ. अमित कुमार के क्लिनिक से मेदांता भेजा। वहां से रिम्स फिर पारस अस्पताल और डोरंडा के बाद फिर दोबारा रिम्स लाते ही मौत हो गई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 01:41 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 01:43 PM (IST)
36 घंटे तक लगाता रहा 5 अस्पतालों का चक्कर, आखिर में एंबुलेंस में ही हो गई मौत Ranchi News
कोरोना मरीज की मौत के शव को ले जाते परिजन। फाइल फोटो

रांची, जासं। एक ओर वैश्विक महामारी कोरोना जहां जानलेवा रूप अख्तियार कर चुकी है, वहीं लापरवाह सिस्टम भी मरीजों की जान ले रहा है। हालत यह है कि कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती करने में भी अस्पताल आनाकानी कर रहे हैं। शुक्रवार को कोडरमा से इलाज कराने आए एक मरीज को अस्पतालों की संवेदनहीन व्यवस्था के बीच अपनी जान गंवानी पड़ी।

किडनी की समस्या से जूझ रहे इस कोरोना पॉजिटिव मरीज को लेकर 36 घंटे तक अस्पताल-दर-अस्पताल भटकते रहे, लेकिन पांच अस्पतालों में दस्तक देने के बाद भी मरीज को इलाज के लिए भर्ती नहीं किया गया। अंतत: रिम्स पहुंचने से पहले ही एंबुलेंस में ही मरीज ने दम तोड़ दिया। इस घटना ने एक बार फिर राजधानी में अस्पतालों की संवेदनहीन व्यवस्था को उजागर किया।

रिम्स में बेड फुल, निजी अस्पतालों ने खर्च ज्यादा बता भेज दिया वापस

बताया जाता है कि कोडरमा जिला निवासी 42 वर्षीय मरीज को किडनी में समस्या थी। यह मरीज कोरोना संक्रमित भी था। परिजन उसे लेकर डॉ. अमित कुमार के पास पहुंचे थे। उनकी सलाह पर परिजन मरीज को लेकर मेदांता अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां मरीज के कोरोना संक्रमित होने का पता चलते ही अस्पताल कर्मियों ने भर्ती लेने से इंकार कर दिया।

परिजनों के अनुसार मेदांता में रोजाना का खर्च 40 से 50 हजार रुपये बताकर उसे रिम्स ले जाने को कहा गया। जब वे मरीज को लेकर रिम्स पहुंचे तो बेड खाली नहीं होने की बात कह वहां से डोरंडा स्थित कोविड सेंटर भेज दिया गया, लेकिन मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए डोरंडा कोविड सेंटर में कार्यरत चिकित्सकों ने भी भर्ती करने से इंकार कर दिया।

इसके बाद यहां से मरीज को पारस अस्पताल ले जाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि यहां भी भर्ती करने की बजाय अस्पतालकर्मियों ने मरीज को वापस  रिम्स ले जाने को कहा। इतने अस्पतालों का चक्कर लगाते-लगाते काफी देर हो चुकी थी। इस बीच मरीज की भी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। इसी क्रम में दोबारा रिम्स ले जाने के दौरान मरीज की एंबुलेंस में ही मौत हो गई।

भर्ती कर इलाज करने से बच सकती थी जान

मरीज के साथ आई उसकी बेटी पूजा ने आरोप लगाया कि अगर समय रहते ही किसी भी अस्पताल में उसके पिता को भर्ती कर इलाज किया जाता तो उनकी जान बच सकती थी। एंबुलेंस में ही 36 घंटे तक वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहे। ऑक्सीजन खत्म होने से पहले उन्हें इलाज की बेहद जरूरत थी। पूजा ने कहा कि रिम्स लाने के बाद नॉर्मल वार्ड में भी जगह दी जाती तो शायद उनकी मौत नहीं होती। मौत के बाद भी उसका शव घंटों रिम्स के ट्रॉमा सेंटर के बाहर ट्रॉली में पड़ा रहा।

परिजनों का आरोप- ड्यूटी रूम में मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं रिम्स के डॉक्टर

शुक्रवार को बेरमो बोकारो की रहने वाली 47 वर्षीया संक्रमित की मौत भी रिम्स के कोविड वार्ड में हो गई। मौत के बाद परिजनों ने यहां जमकर हंगामा किया और चिकित्सकों पर आरोप लगाया कि कोविड वार्ड के डॉक्टर मरीजों का इलाज करने की बजाय ड्यूटी रूम में मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। नर्सो की ड्यूटी भी मरीजों को दवा देने के बाद खत्म हो जाती है। मरीजों को सिर्फ परेशानियों का ही सामना करना पड़ रहा है।

'अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या काफी अधिक है। कोविड वार्ड के बेड भर चुके हैं। हो सकता है बेड उपलब्ध नहीं रहने के कारण मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा गया होगा। जांच कर कारणों का पता लगाया जाएगा।' -डॉ. निशीथ एक्का, सदस्य, कोविड टास्क फोर्स रिम्स।

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