पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत ने कहा- खल रहा है युगपुरुष का गुजरना

पूर्व केंद्रीयमंत्री सुबोधकात सहाय ने अटलजी को युगपुरुष की संज्ञा दी है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Aug 2018 10:28 AM (IST) Updated:Sat, 18 Aug 2018 11:38 AM (IST)
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत ने कहा- खल रहा है युगपुरुष का गुजरना
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत ने कहा- खल रहा है युगपुरुष का गुजरना

रांची, राज्य ब्यूरो। पूर्व केंद्रीयमंत्री सुबोधकात सहाय ने पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन को बड़ी क्षति करार दिया है। शोकसभा में उन्होंने कहा कि पूरा देश शोकाकुल है। वे भारतीय राजनीति के युग पुरुष थे।

संसद में जनता की आवाज बनकर मुखर होने वाले राजनेता और महान जननायक का गुजरना खल रहा है। वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से काफी मर्माहत हैं। देश के युग पुरुष के निधन से भारतीय राजनीति को अपूरणीय क्षति हुई है। स्वर्गीय वाजपेयी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं को सम्मान देते थे।

संसद में पक्ष-विपक्ष की राजनीति से परे जनहित के मुद्दों को वे तरजीह देते थे। भारतीय राजनीति को उन्होंने एक नई दिशा दी। पूर्व केंद्रीयमंत्री ने उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किया और उनकी आत्मा की शाति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में झारखंड प्रदेश कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष अनादि ब्रह्म, पूर्व प्रवक्ता राकेश सिन्हा, पूर्व महानगर अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह, विनय सिन्हा दीपू आदि शामिल थे।

अब सिर्फ अपनी पीठ थपथपाने की राजनीति : जलेश्वर

राज्य के पूर्व मंत्री सह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से राजनीति में एक युग का अंत हो गया। राजनीति में गिरावट उसी समय शुरू हो गई थी जब बीमारी के कारण वाजपेयी जैसे नेता राजनीति की मुख्यधारा से कट गए थे। उनके अनुसार अब राजनीति में वह बात नहीं रह गई है जो उनके समय में थी।

बकौल जलेश्वर, अटल बिहारी वाजपेयी दलगत भावना से ऊपर उठकर काम करते थे। समन्वय की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। अब तो स्वार्थ और अपनी पीठ थपथपाने की राजनीति होती है। बेबाक कहते हैं, उनकी जैसी बात अब किसी भी नेता में नहीं रह गई है। उस समय की राजनीति में कथनी और करनी में भी अंतर नहीं होता था। वाजपेयी जी का राष्ट्र के प्रति गहरी सोच थी। उनका अपना नजरिया था। वे बड़े पदों पर रहते हुए भी क्षेत्रों में जाकर किसानों, मजदूरों, गरीबों की समस्याओं को जानते थे। उनका दर्द महसूस करते थे।

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