सहमति से मजदूरों की वापसी हो तो कांग्रेस को नहीं एतराज

रांची लॉकडाउन की घोषणा के बाद सरकारी और गैर सरकारी माध्यमों से लगभग सात लाख प्रवासी मजदूर वापस झारखंड आए हैं जिनमें से हजारों की संख्या में कुशल कामगार भी हैं। इनके बगैर जहां दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ हो गई है वहीं दूसरी ओर झारखंड के बजट में इतनी क्षमता नहीं है कि इतने लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था कर सके। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने इस संदर्भ में कहा है कि जैसे बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) झारखंड के श्रमिकों को दोगुना वेतन देकर ले गई है वैसे ही अन्य कंपनियां भी ले जाती हैं तो कोई आपत्ति नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 10 Jun 2020 01:40 AM (IST) Updated:Wed, 10 Jun 2020 01:40 AM (IST)
सहमति से मजदूरों की वापसी हो तो कांग्रेस को नहीं एतराज
सहमति से मजदूरों की वापसी हो तो कांग्रेस को नहीं एतराज

रांची, आशीष झा : लॉकडाउन की घोषणा के बाद सरकारी और गैर सरकारी माध्यमों से लगभग सात लाख प्रवासी मजदूर वापस झारखंड आए हैं, जिनमें से हजारों की संख्या में कुशल कामगार भी हैं। इनके बगैर जहां दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ हो गई है, वहीं दूसरी ओर झारखंड के बजट में इतनी क्षमता नहीं है कि इतने लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था कर सके। बहुत मामूली संख्या में अकुशल कामगारों को मनरेगा के तहत काम मिला है, लेकिन आगे काम मिलते रहने में संशय है। मानसून के बाद सबको रोजगार की जरूरत होगी। सरकार अभी तक लोगों को झारखंड में रोकने की बात कह रही है, लेकिन कहीं ना कहीं सत्ता में पार्टनर कांग्रेस नैतिक रूप से मजदूरों की वापसी के लिए नैतिक तौर पर तैयार होती दिख रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने इस संदर्भ में संकेत भी दिए हैं। उन्होंने कहा कि जैसे बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) झारखंड के श्रमिकों को दोगुना वेतन देकर ले गई है, वैसे ही अन्य कंपनियां भी ले जाती हैं तो कोई आपत्ति नहीं है।

प्रवासी मजदूरों की वापसी और इनके काम पर वापस जाने की बातों को लेकर देशभर में राजनीति चरम पर है। झारखंड उन राज्यों में शामिल है, जहां से सर्वाधिक कामगार दूसरे प्रांतों में जाते हैं और कुशल कामगारों के तौर पर अच्छी पहचान बना चुके हैं। ऐसे मजदूरों की वापसी के लिए दूसरे राज्य पूरा जोर लगा रहे हैं। गुजरात, राजस्थान, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु से लेकर गोवा तक से कंपनियों के संदेश आ रहे हैं, ताकि मजदूर वापस आ सकें। इस संदर्भ में पूछे जाने पर वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा कि सर्वेक्षण कराकर यह जानकारी ली जाएगी कि किस तरह के मजदूर वापस आए हैं। उनसे संबंधित कंपनियों की जानकारी रखी जाएगी। कुशल और अकुशल कामगारों की पूरी सूची सरकार के पास होगी। इसके बावजूद मजदूर वापस जाना चाहेंगे, तब ही उन्हें ले जाने की अनुमति कंपनियों को दी जा सकती है। डॉ. उरांव ने कहा कि फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि परेशानियों के कारण मजदूर ट्रॉमा में हैं और उन्हें निर्णय लेने के लिए वक्त चाहिए।

---------------

सेरामिक और टाइल्स के गढ़ मोरवी से 20 हजार मजदूर लौटे, काम ठप :

गुजरात के मोरवी जिले की भारत ही नहीं, पूरे एशिया में टाइल्स और सेरामिक के लिए होती है। यहां से लगभग 20 हजार मजदूर वापस झारखंड लौट आए हैं और इनमें से अधिसंख्य कुशल कामगार हैं। ऐसे श्रमिकों की कमी से परेशान कई कंपनियों के प्रतिनिधियों ने झारखंड में विभिन्न स्तरों पर संपर्क साधा है। सूत्रों के अनुसार रिलायंस कंपनी को भी मजदूरों की कमी खल रही है। कई कंपनियों का काम ठप पड़ गया है।

---------

मजदूर तैयार हों और कंपनियां उन्हें आकर ले जाने का मन बना लें, तो कोई परेशानी नहीं है। कांग्रेस चाहेगी कि मजदूरों को पूरा सम्मान मिले, उनके परिवारों को सम्मान मिले और कार्यक्षेत्र के इर्द-गिर्द शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं बहाल हों।

- डॉ. रामेश्वर उरांव, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व वित्त मंत्री, झारखंड।

--------------- बदलना होगा बजट का मसौदा, अब सबको रोजगार देना आसान नहीं

रांची : राज्य के लिए सबको रोजगार मुहैया कराना आसान नहीं है। दरअसल, ऐसी किसी स्थिति के लिए बजट में प्रावधान ही नहीं किया गया था। बदले हालात में बजट का पूरा मसौदा या फिर एक बड़ा हिस्सा बदलने की जरूरत होगी। विशेषज्ञों के अनुसार राज्य का बजट विकासोन्मुखी और कल्याणकारी है, जिसमें रोजगार को तीसरे-चौथे पायदान पर रखा गया है। इसका स्वरूप बदले बगैर कोई बदलाव आसान नहीं होगा।

बजट में रोजगार के प्रावधान हैं, लेकिन उस अनुपात में नहीं जितने की जरूरत अब महसूस हो रही है। नतीजा यह होगा कि कुछ ही दिनों में हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार दिखेंगे। वित्त विभाग इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलाव कर सकता है। सूत्रों के अनुसार कुछ योजनाओं को रोका गया है, उनकी राशि लेकर ऐसी योजनाओं में डाली जाएगी जहां रोजगार की संभावनाएं अधिक हों। फिलहाल शिक्षा क्षेत्र में 15.64 प्रतिशत बजट खर्च करने की योजना थी, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा बच सकता है और इसे किसी रोजगार कार्यक्रम में लगाया जा सकता है। कृषि में 7.26 प्रतिशत और ग्रामीण विकास में 13.72 प्रतिशत राशि खर्च करने के बजट प्रावधान में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी होगी। श्रम एवं रोजगार विभाग को महज सौ करोड़ का बजट प्राप्त हुआ था जिसे बढ़ाने की आवश्यकता होगी। सूत्रों की मानें तो एमएसएमई सेक्टर में भी बजट प्रावधान किया जाएगा। इसके अलावा स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार नई योजनाओं पर विचार कर सकती है।

-------------------

chat bot
आपका साथी