हादसा होने पर मदद के लिए हाजिर है ऑटो एंबुलेंस

राची : इंसानियत और सेवा के प्रति समर्पण ऑटो चालक अल्लाउद्दीन की फितरत है। अल्लाउद्दीन अपने ऑटो से सडक हादसे में घायल लोगों को तत्काल इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाते हैं और इसके लिए जरूरतमंदों से पेसे भी नहीं लेते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Jul 2018 10:10 AM (IST) Updated:Thu, 05 Jul 2018 10:10 AM (IST)
हादसा होने पर मदद के लिए हाजिर है ऑटो एंबुलेंस
हादसा होने पर मदद के लिए हाजिर है ऑटो एंबुलेंस

राची : इंसानियत और सेवा के प्रति समर्पण ऑटो चालक अल्लाउद्दीन की फितरत है। ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण तो लाखों लोग करते हैं, लेकिन अपने ऑटो को औरों की भलाई के लिए ऑटो एंबुलेंस के रूप निश्शुल्क प्रयोग तो विरले ही करते होंगे। रांची के अल्लाउद्दीन इस प्रकार की सेवा कर समाज में एक मिसाल कायम कर रहे हैं, जो प्रेरक है।

अल्लाउद्दीन के ऑटोरिक्शा के पीछे लिखा है एंबुलेंस यानी शहर का ऐसा ऑटो, जो पैसेंजर को ढोने के साथ सड़क हादसे में घायल जरूरतमंद लोगों को निश्शुल्क अस्पताल तक भी पहुंचाता है। वह कहते हैं, आजकल सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और बहुत बार घायलों की मौत तत्काल उपचार की कमी के कारण हो जाती है। कैसे मिली प्रेरणा

अल्लाउद्दीन ने बताया कि वह टीवी पर आमीर खान का 'सत्यमेव जयते' और अन्य प्रोग्राम देखते थे। इस क्रम में उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में पता चला कि हादसे में घायलों की मदद करने वालों पर कोई कारवाई नहीं की जाएगी। इस फैसले के पहले बहुत लोग चाहते हुए भी मदद करने से कतराते थे। बस तभी उन्होंने यह फैसला किया कि उनकी मदद से अगर किसी की जान बच जाती है, तो इससे बड़ी बात और क्या होगी।

कैसे निकलता है खर्च

यह पूछे जाने पर की वह इतनी महंगाई में पेट्रोल का खर्च कैसे निकालते हैं, इस पर उन्होंने कहा, मैं जो कमाता हूं, उसी से यह काम करता हूं। यह काम कर मन को जो शांति मिलती है, वह पैसे से कभी नहीं मिल सकती।

चार साल से कर रहे यह काम

निश्शुल्क ऑटो एंबुलेंस सेवा अल्लाउद्दीन पिछले चार साल से लोगों को दे रहे हैं। वह कहते हैं कि छोटी-छोटी दुर्घटनाएं होती रहती हैं और यह लोगों को पता भी नहीं चल पाता। बहुत बार दिन में दो से तीन लोगों को वह अस्पताल पहुंचाते हैं।

कई ने सराहा, कुछ ने नहीं दिया कोई रिस्पांस

अल्लाउद्दीन ने बताया कि इस काम के दौरान उन्हें कई बार मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। समाज की भलाई के लिए कोई भी काम अगर आप शुरू करते हैं, तो उसमें मुश्किलें भी आती हैं, पर जज्बात सच्चा है, तो मान्यता मिलती है। एक बार वह पैसेंजर को लेकर जा रहे थे, तभी उन्हें हादसे की सूचना मिली, उन्होंने पैसेंजर से मंजिल से पहले उतरने की गुजारिश की। वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। दूसरी ओर एक बार एक बाइक सवार युवक उनके पास आया और कहा कि आप पुण्य का काम कर रहे हैं और इसमें मुझे भी भागीदार बनने का मौका दें। यह कहते हुए उसने दो सौ रुपये दिए। रुपये लेने से मना करने के बाद भी वह नहीं माना। तब उसकी भावना का ख्याल रखते हुए रुपये रख लिए।

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