दोपहर 12 बजे के बाद अचानक शोर होने लगा, देखा, ढांचे पर चढ़ कर कुछ लोग फावडे़ चला रहे थे

विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्र मंत्री वीरेंद्र विमल ने उस समय का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि दोपहर 12 बजे के बाद अचानक शोर होने लगा ढांचे पर चढ कुछ लोग फावड़े चला रहे थे

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 02:07 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 05:06 AM (IST)
दोपहर 12 बजे के बाद अचानक शोर होने लगा, देखा, ढांचे पर चढ़ कर कुछ लोग फावडे़ चला रहे थे
दोपहर 12 बजे के बाद अचानक शोर होने लगा, देखा, ढांचे पर चढ़ कर कुछ लोग फावडे़ चला रहे थे

जागरण संवाददाता, रांची : विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्र मंत्री वीरेंद्र विमल ने उस समय का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि 6 दिसंबर 92 के अयोध्या ढांचा ध्वंस मामले के मुकदमे का बुधवार को फैसला आया। न्यायालय ने सभी 32 लोगों को आरोपमुक्त कर दिया है। न्यायालय का यह स्वागतयोग्य निर्णय है। मैं स्वयं उस ऐतिहासिक दिवस को रामजन्मभूमि परिसर में उपस्थित था। रांची से मेरे साथ 100 से अधिक कारसेवक 4 दिसंबर को ही अयोध्या पहुंच चुके थे। पांच दिसंबर को ही बताया गया था कि प्रतिकात्मक कारसेवा करनी है। 6 दिसंबर को प्रात: 9.00 बजे के लगभग हमलोग पंक्तिबद्ध होकर सरयूजी के तट पर गए। वहां स्नान कर सरयू का जल एवं रेत संग्रह कर शिलान्यास स्थल पर आए। जल एवं रेत अíपत कर अपनी कारसेवा पूरी की। इसके बाद सभास्थल पर पदाधिकारियों का उद्बोधन सुनने लगा। दोपहर 12.00 बजे के बाद अचानक शोर मचा। ढांचे की ओर देखा, तो कुछ लोग गुंबद पर चढ़कर गैंता और फावड़ा चला रहे थे। मंच से उनको गुंबद से उतरने एवं ढांचा से दूर हटने का निर्देश दिया जाने लगा। कठोर शब्दों में माइक से चेतावनी दी जा रही थी। उन्हें बताया जा रहा था कि मामला न्यायालय में है। ढांचे को किसी भी प्रकार से क्षति पहुंचाना गैरकानूनी है। अनुशासन की दुहाई दी जा रही थी। यहां तक कहा गया कि संगठन का निर्देश नहीं मानने वाला कार्यकर्ता नहीं हो सकता। पर वे रोष में थे। उस समय की कांग्रेस की केंद्र सरकार के टाल-मटोल रवैए के कारण रामभक्तों का धैर्य टूट गया था।

जितना रोका जा रहा था, उतने ही अधिक लोग ढांचे के पास एकत्र हो गए थे। लोहे का मजबूत घेरा हजारो हाथों से झकझोरने के कारण टूट कर बिखर गया। दीवारों पर लोहे की पाइपों से सैकड़ो लोग मिलकर चोट करने लगे। किसी को ध्यान आया, तो रामलला का श्रीविग्रह वहां से निकाल कर हटा दिया। फिर तो एक-एक कर गुंबद धराशाई होने लगे। चार-साढ़े चार बजते-बजते तीनों गुंबद धूल धूसरित हो गए। रोकनेवाले नेतृत्व ने भी इसे नियति की इच्छा मानकर हृदय से स्वीकार किया।

इसके बाद सारा मलबा हटाकर वहीं पर अस्थायी मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ।

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