वालिद की जिद ने बनाई इंजीनियरिंग की राह

रविवार विशेष के लिए फोटो - डेट पिक्चर में 23 आरिफ12 रायडर ---टैक्सी ड्राइवर मो. आरिफ ने तीन बेट

By Edited By: Publish:Sat, 23 Jul 2016 05:49 PM (IST) Updated:Sat, 23 Jul 2016 05:49 PM (IST)
वालिद की जिद ने बनाई इंजीनियरिंग की राह

रविवार विशेष के लिए

फोटो - डेट पिक्चर में 23 आरिफ12

रायडर ---टैक्सी ड्राइवर मो. आरिफ ने तीन बेटों को बनाया इंजीनियर

कैच वर्ड-- वेल डन अब्बा

क्रासर

मो. शहबाज और मो. शहनवाज बेंग्लोर और पुणे में कर रहें है नौकरी

चौथा बेटा कर रहा है इंजीनिय¨रग की कोचिंग

नवीन शर्मा, रांची

पचास साल के मोहम्मद आरिफ अली 25 साल से टैक्सी चलाने जैसा मामूली सा काम कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने दिन में खुली आंखों से गैरमामूली सा ख्वाब देखा। बेहद कम पढ़े लिखे आरिफ ने चार बेटों को इंजीनियर बनाने की ठानी। अब धीरे-धीरे उनके सपने साकार होने लगे हैं। उनके दो बेटे इंजीनिय¨रग की पढ़ाई पूरी कर नौकरी कर रहे हैं। तीसरा बेटा इंजीनिय¨रग कॉलेज में पढ़ रहा है। वहीं चौथा बेटा इंजीनिय¨रग की कोचिंग कर रहा है।

बीआइटी, मेसरा को देख आया बेटों को इंजीनियर बनाने का ख्याल

रांच के पहाड़ी टोला निवासी आरिफ अपनी टैक्सी लेकर अक्सर बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(बीआइटी) मेसरा कैंपस जाते थे। वहां के विद्यार्थियों को देख उन्होंने सोचा मैं भी बेटों को इंजीनियर बनाउंगा। आरिफ जिस समुदाय से आते हैं उसमें शिक्षा का स्तर काफी निम्न है, खासकर उच्च शिक्षा का ख्वाब तो दूर की कौड़ी है।

जमीन बेचनी पड़ी, बीबी के गहने भी बेचे

आरिफ जिस आर्थिक हैसियत में थे उसमें तो एक बेटे को भी इंजीनियर की पढ़ाई कराना बेहद मुश्किल काम था। इतने पैसे कमाने के लिए आरिफ ने खुद को काम में झोंक दिया। आरिफ बताते हैं कि वे दिन में 16 से 18 घंटे टैक्सी चलाते। सोने के नाम पर कुछ घंटों की झपकी भर लेते थे। इस पर भी जब बेटों की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं पूरे हुए तो अपनी इरबा स्थित जमीन बेची। यहां तक की बीबी के गहने भी बेचने पड़े।

कई बार ईद में नए कपड़े भी नहीं जुटा पाए

आरिफ कहते हैं चार बच्चों के परिवार के राशन-पानी और पढ़ाई का खर्चा निकालना काफी मुश्किल था। कई बार टैक्सी में डीजल भरवाने के पैसे बमुश्किल जुटते थे। हमारे सबसे बड़े त्योहार ईद में किसी तरह बच्चों के लिए तो नए कपड़े खरीद लेता था लेकिन खुद पुराने कपड़ों से ही काम चला लेता था।

आखिरकार सपने होने लगे साकार

करीब 20 वर्ष तक चली आरिफ की जद्दोजहद रंग दिखाने लगी। उनके बेटों की मेहनत और प्रतिभा ने अब्बा के सपनों में रंग भरने शुरू कर दिए। बड़े बेटे मो.शहबाज अली (27) ने संत फ्रांसिस स्कूल, हरमू से मैट्रिक और डीएवी कपिलदेव से 12वीं पास की। इसके बाद संत थॉमस इंजीनिय¨रग कॉलेज, कोलकाता से 2014 में आइटी में इंजीनिय¨रग की पढ़ाई पूरी की। अभी वो बेंग्लौर में यूएस बेस्ड कॉगनिजेंट (सीटीएस) में नौकरी कर रहे हैं।

शहनाज को मिला सुपर 30 का जंपिंग पैड

दूसरे बेटे मो. शहनाज (25) ने भी संत फ्रांसिस से मैट्रिक पास की। इसके बाद वह पटना के मशहूर इंजीनिय¨रग कोचिंग सुपर 30 (अभ्यानंद,आइपीएस) में चुना गया। बीआइटी, देवघर सेंटर से इंजीनिय¨रग(2015 बैच)पास की। शहनवाज आज पुणे की प्रमुख आइटी कंपनी सवेज में काम कर रहा है। वहीं तीसरा बेटा मो. सलमान अली न्यूटन टीटोरियल्स से कोचिंग करने के बाद अभी आइआइईएसटी, शिवपुर(पश्चिम बंगाल) में इंजीनिय¨रग के फाइनल इयर में है। वहीं चौथा बेटा इंजीनिय¨रग के लिए कोचिंग कर रहा है। आरिफ के हौसले को देख उनके परिचित ने भी सहायता की।

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