जहां प्रेम है वहां सदा बसंत है, नहीं तो बस अंत है : सुरेश शास्त्री

विश्रामपुर जहां प्रेम है वहां सदा बसंत है नहीं तो बस अंत है। नारी श्रद्धा का रूप है पति श्रद्धा का स्वरूप है श्रद्धा और विश्वास का समन्वय पर ही दाम्पत्य जीवन की धुरी टिकी हुई है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 Feb 2020 06:41 PM (IST) Updated:Fri, 07 Feb 2020 06:41 PM (IST)
जहां प्रेम है वहां सदा बसंत है, नहीं तो बस अंत है  : सुरेश शास्त्री
जहां प्रेम है वहां सदा बसंत है, नहीं तो बस अंत है : सुरेश शास्त्री

संवाद सूत्र, विश्रामपुर : जहां प्रेम है वहां सदा बसंत है नहीं तो बस अंत है। नारी श्रद्धा का रूप है पति श्रद्धा का स्वरूप है श्रद्धा और विश्वास का समन्वय पर ही दांपत्य जीवन की धुरी टिकी हुई है। उक्त बातें बसना मे आयोजित लक्ष्मी नारायण नरसिंह महायज्ञ के चौथे दिन रोहतास से पधारे सुरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा। श्री शास्त्री ने कहा कि श्रद्धा रूपी माता और विश्वास रूपी भगवान शिव का जब मिलन हुआ तो पुरुषार्थ रुपी कार्तिक और विवेक रुपी गणेश जी का जन्म हुआ। जिसके जीवन में श्रद्धा, विश्वास, पुरुषार्थ और विवेक ये चारो हो तो मनुष्य का जीवन हीं सार्थक हो जाता है। हनुमान जी ने लंका मे योगी,भोगी और वियोगी ये तीनों को राम कथा सुनाई। लंका में जहां विभूषण योगी है वहीं रावण भोगी व माता सीता जी वियोगी बनी थी। कहा कि राम कथा भगवान के आचरण से निकली हुई गंगा है जो पुरे विश्व का कल्याण करती है। मां के गर्भ में आचरण और आचार का सीधा समन्वय बच्चे से होता है। चिकित्सक भी सुझाव देते हैं कि उस काल में माता को स्वतंत्र व भय मुक्त जीवन जीना चाहिए। कथावाचक में कहा कि महाभारत में भी कहा गया है कि अभिमन्यु अपने माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की सिख लेते हुए छह दरवाजे को सहज ही भेद डाला। सातवें दरवाजे को नहीं भेद सका । इस कारण है कि उस समय अभिमन्यु की माता को नींद आ गई थी। इसे अपने जीवन में उतारें तो जीवन सार्थक होगा। कथावाचन को आई रूपा पांडेय ने कहा कि सत्संग के बिना विवेक संभव नहीं। विनोद पाठक ने बताया कि भगवान का अवतार जगत कल्याण के लिए होता है। कुमकुम मिश्रा ने कहा कि मनुष्य को सन्मार्ग पर चलना रामायण सिखाता है। मौके पर विनय पांडेय, मिथिलेश पांडेय, दिवाकर पांडेय, प्रवीण पांडेय आदि लोग मौजूद थे।

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