Lok Sabha Polls 2019: आखिर कब तक प्रकृति के भरोसे अपनी प्यास बुझाते रहेंगे यहां के ग्रामीण
Lok Sabha Polls 2019. लोहरदगा की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। लेकिन ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराने की च्यादातर योजनाएं खुद पानी मांग रही है।
लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। लोहरदगा जिला पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों से घिरा हुआ क्षेत्र है। यहां की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक लोहरदगा जिले के 66 पंचायत और 353 गांव के अलावा एक नगर परिषद क्षेत्र में कुल 4,62,790 की आबादी है।
यदि हम शहरी क्षेत्र की आबादी की बात करें तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां पर 57 हजार लोग निवास करते हैं। यानी कि चार लाख से ज्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था की स्थिति पर भी गौर कर लें। लोहरदगा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 62 सौ हैंडपंप, सार्वजनिक कुआं और नदी-नालों के भरोसे पेयजल की व्यवस्था है।
लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं के माध्यम से ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराने की ज्यादातर योजनाएं खुद पानी मांग रही है। ऐसे में ग्रामीणों को पानी के लिए आज भी प्रकृति पर रहना पड़ता है। प्रकृति के भरोसे ही ग्रामीण क्षेत्रों की प्यास बुझती है। गर्मी आते-आते हैंडपंप और सार्वजनिक कुएं सूख जाते हैं। बरसात के समय में गंदा पानी पीना इनकी मजबूरी है।
चार लाख की आबादी के लिए 62 सौ हैंडपंप पर्याप्त नहीं हैं। ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति की बड़ी योजनाएं के क्रियान्वयन की जरूरत है ताकि इस समस्या को हल किया जा सके। चुनाव आते ही नेता ग्रामीणों के घर पहुंच कर उनसे वोट तो जरूर मांगते हैं, पर पेयजल की समस्या को लेकर वे कोई जवाब नहीं देते। आज तक चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की।
लोहरदगा के ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में हैंडपंप भी नसीब नहीं होता। इस वजह से इन इलाकों में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। लोहरदगा में पेयजल के इतनी बड़ी समस्या होने के बावजूद इसके निराकरण के प्रति कोई पहल नहीं होना राजनीतिक दलों की उदासीनता को दर्शाता है। आम लोगों के मन में बस यही सवाल हमेशा उठता है कि पेयजल आखिर कब बड़ा मुद्दा माना जाएगा।