खेतों में खुले आसमान के नीचे पड़े प्याज के बोरे

चुनावी मौसम आने के बाद हर जगह चुनावी मुद्दे तैरने लगते हैं। कुछ इसी प्रकार इन दिनों पत्थलगडा में भी लोगों की जुबां पर चुनावी मुद्दे तैयार हो रहे हैं। वैसे तो मुद्दे कई हैं परंतु इस बार यहां कोल्ड स्टोरेज बनाने का मुद्दा जोर शोर से उछलने लगा है। यह मुद्दा यहां के लोगों के

By JagranEdited By: Publish:Thu, 18 Apr 2019 07:13 PM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2019 07:19 PM (IST)
खेतों में खुले आसमान के नीचे पड़े प्याज के बोरे
खेतों में खुले आसमान के नीचे पड़े प्याज के बोरे

पत्थलगडा : चुनावी मौसम आने के बाद हर जगह चुनावी मुद्दे तैरने लगते हैं। कुछ इसी प्रकार इन दिनों पत्थलगडा में भी लोगों की जुबां पर चुनावी मुद्दे तैयार हो रहे हैं। वैसे तो मुद्दे कई हैं परंतु इस बार यहां कोल्ड स्टोरेज बनाने का मुद्दा जोर शोर से उछलने लगा है। यह मुद्दा यहां के लोगों के लिए वर्षों पुरानी मांग है। अब तक जितने भी सांसद और विधायक हुए हैं किसान इन सभी के पास कोल्ड स्टोरेज के लिए अर्जी लगा चुके हैं परंतु अब तक यह मांग पूरी नहीं हुई है। ऐसे में इस बार यह मांग और भी जोर पकड़ रहा है। पत्थलगडा कृषि प्रधान प्रखंड है। यहां 90 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं। यहां के किसान, मटर, आलू, टमाटर, प्याज व अन्य नकदी फसलों की बंपर खेती करते हैं। ऐसे में यहां कोल्ड स्टोरेज नहीं होने से किसान अपने मेहनत का फल औने-पौने दाम में बेचने पर बजबूर होते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी लोगों ने यहां कोल्ड स्टोरेज बनाने की मांग को चुनावी मुद्दा बनाया था। तब सांसद सुनील सिंह ने लोगों से वादा किया था कि पत्थलगडा में कोल्ड स्टोरेज बनाएंगे परंतु उनके वादे भी कोरा साबित हो गए। यहां अब तक कोल्ड स्टोरेज नहीं बना। लिहाजा चुनावी सरगर्मी बढ़ते ही एक बार फिर कोल्ड स्टोरेज बनाने का मुद्दा यहां चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनने लगा है। तेतरिया के किसान उमेश दांगी, लेंबोइया के किसान नागो दांगी, बेलहर के किसान महादेव दांगी, नावाडीह के गणेश दांगी व अन्य ने कहा कि यहां कोल्ड स्टोरेज नहीं बनने से किसानों को औने पौने दाम में सब्जियां बेचनी पड़ती है। यहां आलू, मटर, प्याज, टमाटर व अन्य फसलों की बंपर पैदावार होती है। यहां की सब्जियां बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, नेपाल और बांग्लादेश जाती है। यहां कोल्ड स्टोरेज नहीं होने से किसान अपने फसलों को स्टोर कर के नहीं रख पाते हैं। ऐसे में उन्हें फसलों का उचित दाम नहीं मिलता है।

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