झारखंड से बाहर न जाए कच्चा लाह तो बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

खूंटी झारखंड के खूंटी जिले में बहुतायत में लाह का उत्पादन होने के बावजूद व्यापक पैमाने पर लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इसकी पड़ताल करने पर पता चला कि यहां से कच्चा लाह बड़ी मात्रा में पश्चिम बंगाल के बलरामपुर तुलिन व झालदा आदि क्षेत्रों में भेजा जाता है। जिले में उत्पादित होने वाले लाह का लगभग 80 प्रतिशत कच्चा लाह बंगाल चला जाता है। महज 20 प्रतिशत लाह की प्रोसेसिग जिले के उद्यमी कर पाते हैं। बंगाल में यहां के लाह से बटन बनाया जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 23 May 2020 06:44 PM (IST) Updated:Sat, 23 May 2020 06:44 PM (IST)
झारखंड से बाहर न जाए कच्चा लाह तो बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
झारखंड से बाहर न जाए कच्चा लाह तो बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

खूंटी : झारखंड के खूंटी जिले में बहुतायत में लाह का उत्पादन होने के बावजूद व्यापक पैमाने पर लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इसकी पड़ताल करने पर पता चला कि यहां से कच्चा लाह बड़ी मात्रा में पश्चिम बंगाल के बलरामपुर, तुलिन व झालदा आदि क्षेत्रों में भेजा जाता है। जिले में उत्पादित होने वाले लाह का लगभग 80 प्रतिशत कच्चा लाह बंगाल चला जाता है। महज 20 प्रतिशत लाह की प्रोसेसिग जिले के उद्यमी कर पाते हैं। बंगाल में यहां के लाह से बटन बनाया जाता है। जगह-जगह लाह के भट्ठे लगाकर घर-घर कुटीर उद्योग के रूप में लाह बटन का निर्माण किया जा रहा है। इसी प्रकार राजस्थान व बिहार में लाह से चूड़ियों का निर्माण किया जा रहा है। यदि जिले में लाह से बटन व चूड़ी बनाने के छोटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित किए जाएं, तो बड़ी मात्रा में लोगों को रोजगार मिलेगा और क्षेत्र से पलायन की समस्या भी बहुत हद तक कम हो जाएगी। वैसे भी झारखंड के कामगारों में हुनर की कमी नहीं है। यहां के कामगार देश के अन्य राज्यों में जाकर वहां अपने हुनर के दम पर काम कर रहे हैं। अगर उन्हें घर में ही काम उपलब्ध हो जाए तो वे पलायन नहीं करेंगे। झारखंड के लिए एक अच्छी बात यह भी है कि यहां विश्व का एकमात्र लाह अनुसंधान केंद्र रांची के नामकुम मे है। इसका लाभ भी यहां के लोगों को उस अनुपात में नहीं मिल पा रहा है। अनुसंधान केंद्र में देश-विदेश से लोग प्रशिक्षण लेने आते हैं लेकिन चिराग तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करते हुए यहां के लोग इस लाभ से वंचित हैं। यहां के लोगों को उचित प्रशिक्षण देकर कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया जाए, तो निश्चित तौर पर आय के स्त्रोत बढ़ेंगे और आर्थिक समृद्धि आएगी।

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लाह के लिए विख्यात खूंटी जिला का यह दुर्भाग्य ही है कि यहां से बड़ी मात्रा में कच्चा लाह पश्चिम बंगाल चला जाता है। यहां के लाह का उपयोग यदि अपने यहां ही लाह के विभिन्न उत्पादों का निर्माण करने में किया जाए तो इस व्यवसाय से जुड़े किसानों, व्यापारियों व उद्यमियों को लाभ होगा। साथ ही रोजगार के अनेक अवसर सृजित होंगे। यहां के लाह से बंगाल में बटन का और राजस्थान व बिहार में चूड़ी का कुटीर उद्योग फल-फूल रहा है। ऐसा अपने यहां भी संभव है। सरकार को चाहिए कि वह यहां से कच्चे लाह को दूसरे राज्यों में भेजने पर पूरी तरह से रोक लगा दे और यहां पर लाह उत्पादों के कुटीर उद्योगों का जाल बिछा दे। साह ही लाह अनुसंधान केंद्र के माध्यम से किसानों और युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें स्वावलंबी बनाए, इससे घर-घर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। साथ ही सरकार को लाह उत्पादन के विकास पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। पहले इस क्षेत्र से 22-23 हजार टन लाह का उत्पादन होता था, जो घटकर अब महज 10-12 हजार टन ही रह गया है। लाह का उत्पादन अधिक हो इसके लिए गांवों की खाली जमीन पर अकसिया, कुसुम व बेर आदि के पेड़ बहुतायत में लगाए जाने चाहिए।

-प्रभाष जायसवाल, उद्यमी

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लाह की अधिकांश खपत विदेशों में है। अपने देश में तो महज 25 प्रतिशत खपत है, जबकि विदेशों में खपत 75 प्रतिशत है। अपने यहां की लाह विश्व में सर्वाेच्च कोटि की मानी जाती है। आजादी से पूर्व लाह के क्षेत्र में हमारा एकाधिकार था। सर्वाधिक उत्पादन हमारे देश में ही होता था। इसमें भी अकेले झारखंड से 60-70 प्रतिशत उत्पादन होता था। विदेशों में लाह की उपयोगिता को देखकर अब थाईलैंड सहित कई अन्य देशों में भी लाह का उत्पादन किया जाने लगा है। थाईलैंड में सालोंभर ठंड नहीं होती है। अमूमन 30-35 डिग्री तापमान पूरे साल रहता है। ऐसे में वहां का लाह गहरे रंग का होता है, जिसका उपयोग मात्र औद्योगिक क्षेत्र में ही किया जाता है। वहीं अपने यहां के लाह का उपयोग उद्योग, दवा व खाद्य पदार्थ आदि सभी क्षेत्रों में किया जाता है। अभी भी जर्मनी व अमेरिका समेत अन्य देशों में हमारे यहां के लाह की अच्छी खासी मांग है। लाह का उत्पादन कैसे बढ़े, इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। मांग के अनुरूप अच्छी गुणवत्ता के लाह की उपज बड़े पैमाने पर हो तो किसानों में समृद्धि आ सकती है। लाह के अन्य उत्पादों के छोटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित करने की दिशा में सरकार को पहल करनी चाहिए। थाइलैंड समेत अन्य देशों की अपेक्षा हमारे यहां कम कीमत पर कुशल श्रमिक मिल जाते हैं। अगर सरकार इस दिशा में प्रयास करे तो क्षेत्र के लोगों को रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा।

-रोशनलाल शर्मा, उद्यमी

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किसानों को लाह की खेती आधुनिक ढंग से करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। वैसे तो बीच-बीच में लाह अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जाती रही है, लेकिन लाह का उत्पादन अपेक्षाकृत बढ़ नहीं रहा है। अत: किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। साथ ही समय पर लाह के बीज उपलब्ध हो, इसकी भी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। वर्तमान में बेर व पलाश के पेड़ में लगने वाले बैसाखी लाह का उत्पादन नगण्य हो गया है। ऐसा बीज की कमी से हो रहा है। कुसुमी लाह का बीज तो बेर के पेड़ में लग जाता है लेकिन दो वर्षों तक उत्पादन ठीक होने के बाद बेर का पेड़ कमजोर हो जाता है, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है।

-भोंज नाग, किसान, मारंगहादा, खूंटी

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लाह का उत्पादन कैसे बढ़े, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। विगत चार-पांच वर्षों से बेर व पलाश के पेड़ में लगने वाले बैसाखी लाह का उत्पादन न के बराबर हो रहा है। इससे किसानों को परेशानी के साथ आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ रही है। किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य मिले इस पर सरकार को ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह जिले के लाह उत्पादक क्षेत्रों में सेंटर बनाकर लाह की खरीदारी करे। साथ ही लाह का समर्थन मूल्य ीज्ञी निर्धारित करे। बैसाखी लाह के लिए बीज की व्यवस्था समय पर की जानी चाहिए, जिससे किसान बेर के पेड़ में लाह के कीट लगा सकें और उत्पादन को पूर्व की तरह बढ़ा सकें।

-घासीराय मुंडा, किसान, गुटूहातु, मारंगहादा, खूंटी

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कोई भी आदमी घर छोड़कर परदेश नौकरी करने नहीं जाना चाहता है, लेकिन पेट की भूख व परिवार के पालन-पोषण के लिए घर छोड़ना पड़ता है। हम भी इसीलिए घर से तेलंगाना गए थे। लॉकडाउन होने पर वहां काम-धंधा तो बंद हुआ ही साथ ही धीरे-धीरे जमा पूंजी भी खर्च हो गयी। अंतत: मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा। यदि यहीं पर कोई रोजगार मिल जाए तो कभी भी परदेश नहीं जाऊंगा।

-सनिका मुंडा, जरियागढ़, कर्रा, खूंटी

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सोचा था कि घर छोड़कर परदेश जाऊंगा तो वहां जो कमाई होगी उससे अपने परिवार का अच्छे से भरण-पोषण करूंगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका। बड़े शहरों में यदि पैसा अधिक मिलता है, तो खर्च भी अधिक होता है। ऐसे में पैसा जमा नहीं हो पाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। यदि अपने राज्य में ही अच्छा काम मिल जाए तो फिर कभी परदेश जाने के बारे में सोचूंगा भी नहीं। यहां परिवार के बीच रहकर काम भी करूंगा और पैसा भी जमा कर सकूंगा।

-देवदत्त सिंह, जरियागढ़, कर्रा, खूंटी

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अपने दो बच्चों का भविष्य बनाने के उद्देश्य से मैं मुंबई काम करने गया था। लॉकडाउन हो जाने के कारण वहां से वापस आना पड़ा। अब मैं कभी दोबारा मुंबई नहीं जाऊंगा। गांव में ही रहकर काम करूंगा। यदि सरकार यहीं पर स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध करा दे तो खटाल खोलकर यहीं रोजगार करूंगा। वैसे भी गौ सेवा हमारा पुश्तैनी धंधा है।

-रोहित मांझी, विरमकेल, मुरहू, खूंटी

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यहां कोई धंधा रोजगार न होने के कारण मैं मजबूरी में महाराष्ट्र के नासिक काम करने गया था। सोचा था कि कुछ वर्ष काम करने पर जब कुछ धन कमा लूंगा तो वापस आकर यहीं काम-धंधा करूंगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लॉकडाउन के दौरान वहां तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था और इसके चलते मुझे वापस आना पड़ गया। लेकिन, अब यह तय कर लिया है कि कुछ भी हो दोबारा घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। यदि सरकार यहीं पर कुछ रोजगार की व्यवस्था कर दे तो बहुत अच्छा होगा।

-ललित यादव, तोकेन, रनिया, खूंटी

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