मधुमक्खी के हमले से दो दर्जन श्रद्धालु जख्मी

संवाद सूत्र मिहिजाम (जामताड़ा) शहर के कालीतल्ला स्थित काली मंदिर में शनिवार को मां रक्षा

By JagranEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 08:48 PM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 08:48 PM (IST)
मधुमक्खी के हमले से दो दर्जन श्रद्धालु जख्मी
मधुमक्खी के हमले से दो दर्जन श्रद्धालु जख्मी

संवाद सूत्र, मिहिजाम (जामताड़ा) : शहर के कालीतल्ला स्थित काली मंदिर में शनिवार को मां रक्षाकाली की पूजा की गई। हालांकि पूजा के दौरान मंदिर परिसर में लगे पीपल के वृक्ष पर पहले से मौजूद मधुमक्खियों का झुंड पूजा करने पहुंचे श्रद्धालुओं पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों से हमले से वहां अफरातफरी मच गई। मधुमक्खियों के काटने से दो दर्जन महिला, पुरुष व बच्चे जख्मी हो गए। काफी देर तक लोग मधुमक्खियों के भय से गली, कोने में छुपकर पूजा के लिए इंतजार करते रहे। कुछ लोगों ने तो मंदिर परिसर से काफी दूर रहकर ही मां की पूजा संपन्न होने तक इंतजार करने में भलाई समझी।

इधर, पूजा करा रहे पंडित ने किसी तरह हवन का धुआं कर मधुमक्खियों को शांत किया। समाजसेवी काजू शर्मा ने बताया कि मां रक्षा काली की पूजा को 105 वर्ष पूर्ण हुआ है। पूजा के उपरांत 43 पाठा की बलि दी गई। गौरतलब हो कि वर्ष 1916 में रक्षा काली की स्थापना बढ़ई समाज व स्थानीय लोगों ने की थी।

---इसलिए की जाती पूजा : अंग्रेजों के शासनकाल के समय वर्ष 1916 में मिहिजाम क्षेत्र के कुछ इलाकों में एक जैसी बीमारी पांव पसार रही थी। डॉक्टर इलाज करने में सक्षम नहीं थे। लोग भगवान की शरण में गए। इसी दौरान मिहिजाम निवासी जग्गू मिस्त्री को स्वप्न में मां काली दिखी। मां ने कहा कि कालीतल्ला स्थित महुआ के पेड़ के नीचे मेरी पूजा करो। सभी कष्ट दूर हो जाएंगें। जग्गू मिस्त्री ने दूसरे दिन समाज के लोगों को यह जानकारी दी। उसके बाद से उस स्थान पर पूजा-पाठ आरंभ किया गया। मां की पूजा नियमित होते ही चेचक जैसी महामारी कुछ ही महीनों में समाप्त हो गई। धीरे-धीरे स्थानीय लोग व बढ़ई समाज के लोग महुआ पेड़ के नीचे झोपड़ीनुमा मंदिर बनाकर नियमित पूजा करने लगे। तब से आज तक महामारी इस इलाके में नहीं आई।

chat bot
आपका साथी