कृष्ण-बर्बरीक संवाद से श्रोता हुए मुग्ध

ातपेीदं कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Nov 2019 09:13 PM (IST) Updated:Wed, 13 Nov 2019 06:16 AM (IST)
कृष्ण-बर्बरीक  संवाद  से श्रोता हुए मुग्ध
कृष्ण-बर्बरीक संवाद से श्रोता हुए मुग्ध

-- स्थानीय श्रीश्याम मंदिर में व्यास उमेश शास्त्री ने प्रस्तुत किया कृष्ण-बर्बरीक का रोचक संवाद

संवाद सहयोगी, जामताड़ा : बर्बरीक बाल्यकाल से ही वे वीर और महान योद्धा थे। वे अपनी मां से युद्ध-कला की शिक्षा ली थी। माता दुर्गा की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेद्य बाण प्राप्त किये और 'तीन बाणधारी' का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे। मंगलवार को मिहिजाम रोड स्थित श्रीश्याम मंदिर में सखी सहेली के सौजन्य से चल रहे दो दिवसीय कथा के अंतिम दिन राजस्थान वाले व्यास उमेश शास्त्री ने श्याम कथा प्रवचन करते हुए उक्त बातें कही। प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए शास्त्री जी ने कहा कि महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था। इसलिए यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुआ तो उनका भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी मां से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तो मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले घोड़े, जिसका रंग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए। सर्वव्यापी श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकस में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी कि इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेदकर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। तीर ने क्षण भर में पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्रीकृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था। बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वरना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। श्रीकृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी मां को दिये वचन दोहराया कि वह युद्ध में उस ओर से भाग लेगा जिस ओर की सेना निर्बल हो और हार की ओर अग्रसर हो। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा। ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। श्रीकृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिए चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की ²ढ़ता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया। उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए एक वीरवर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतएव उनका शीश दान में मांगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपना शीश दान दिया। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।

chat bot
आपका साथी