न झाझ न झाल, युवा ठोक रहे वेलेंटाइन की ताल Jamshedpur News

शहर में बसंत के मौसम में प्रेम का पर्व अपने शबाब की ओर अग्रसर है। जुबिली पार्क हो या कोई मॉल या होटल। इन स्थानों पर जुटने वाले युवाओं की टोली से इसकी तस्दीक हो रही है।

By Edited By: Publish:Thu, 13 Feb 2020 07:00 AM (IST) Updated:Thu, 13 Feb 2020 01:23 PM (IST)
न झाझ न झाल, युवा ठोक रहे वेलेंटाइन की ताल Jamshedpur News
न झाझ न झाल, युवा ठोक रहे वेलेंटाइन की ताल Jamshedpur News

जमशेदपुर (राजेश पाण्डेय)। शहर में बसंत के मौसम में प्रेम का पर्व अपने शबाब की ओर अग्रसर है। जुबिली पार्क हो या कोई मॉल या होटल। इन स्थानों पर जुटने वाले युवाओं की टोली से इसकी तस्दीक हो रही है। अलग-अलग तरीके से सप्ताहभर के आयोजन को अंजाम देने की कवायद जारी है।

इसका समापन शुक्रवार को वेलेटाइन डे के साथ संपन्न होगा। बात चाहे साकची, बिष्टुपुर की हो या मानगो, गोलमुरी या फिर टेल्को की, हर इलाके में प्यार की खुमार में डूबे युवा वर्ग के वेलेंटाइन की ताल सुनी जा रही है। लेकिन इन सबके बीच झाझ या झाल बजने की कमी को भी एक बड़ा वर्ग शिद्दत से महसूस कर रहा है। वाकई, बदलते जमाने के साथ प्यार के प्रतीक वसंत के मौसम होने वाले इसके आयोजन के स्वरूप में बदलाव साफ तौर पर देखा जा सकता है, जिसकी ध्वनि बुधवार को दोपहर में जुबिली पार्क में टाटा जी की प्रतिमा के सामने बेंच पर बैठे एक दंपती के वार्तालाप में सुनने को मिली भी।

तब वहां युवाओं की टोली मस्ती की तैयारी में थी। कई तरह के उपहार लेकर पहुंचे थे युवा। आधुनिक मोबाइल फोन पर सेल्फी का भी दौर चल रहा था। काफी देर तक उन्हें निहारने के बाद दंपती के मुंह से सहसा निकल पड़ा- अब बदल गया है 'बसंत' का रंग, न झाझ न झाल, युवा ठोक रहे वेलेंटाइन की ताल।

हग डे पर आलिंगनबद्ध होकर किया प्यार का इजहार

बुधवार को वेलेटाइन सप्ताह का पांचवा दिन था जिसे हग डे के नाम से जाना जाता है। इस दिन पार्क, होटलों व मॉल में युवाओं में खास उत्साह देखा गया। एक दूसरे से आलिंगनबद्ध होकर प्यार का इजहार रहे युवाओं में उत्साह सिर चढ़कर बोल रहा था। मानगो, साकची, बिष्टुपुर के मॉल युवाओं से भरे रहे। जुबिली पार्क, मोदी पार्क, थीम पार्क व डिमना लेक जैसे पर्यटन स्थल भी गुलजार रहे। होटल व रेस्टोरेंटों में चहल-पहल चरम पर रही।

कार्ड व मैसेज भेजकर किया सेलिब्रेट

हग डे पर जोड़ों ने एक-दूजे को गले लगाकर आपने प्यार की मंजिल को पा लिया। प्रेमियों ने कार्ड या मैसेज भेजकर भी इसे सेलिब्रेट किया। जुबिली पार्क में एक प्रेमी जोड़े ने कहा-गले मिलने से एक-दूसरे के बीच प्यार और भरोसा बढ़ता है। इसे जादू की झप्पी भी कहते हैं। साकची के एक रेस्टेरेंट में बैठे युगल ने बताया, आलिंगन में लेने वाले के प्रति भरोसा बढ़ता है।

कमजोर पड़ा फगुआ का स्वर

समूची प्रकृति 'बासंती' बहार में खड़ी है। वसंत का यौवन हर जगह दिख रहा है। अलौकिक मधुरधता सातवें आसमान पर है। मस्ती में युवा डूबे हुए हैं। जो नहीं दिख रहा है, वह है फाल्गुन में गाए जाने वाले गीत। कहीं झाझ-मजीरे और झाल की आवाज सुनाई नहीं दे रही है। कभी वसंत पंचमी के बाद से शहर 'गवनई' से गूंज उठता था, आज यह लुप्तप्राय है। हां, वेलेंटाइन के पुजारी जरूर ताल ठोक रहे हैं।

बचा कौन-कौन डे

आज किस डे : जब - दिल की बात कहने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं तो प्यार भरा एक चुंबन ही काफी होता है। कल वेलेंटाइन डे : इस दिन पार्टनर से कितना प्यार है, का इजहार किया जाता है। अपने पार्टनर के लिए इस दिन समय निकालकर लोग जश्न मनाते हैं। 

21/22 दिसंबर से सूर्य मकर रेखा की तरफ आने लगता है। इस स्थिति में संपूर्ण उत्तरी गोला‌र्द्ध का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। 15 से 20 जनवरी के बाद हाड़ कंपाने वाली ठंड से आहिस्ता-आहिस्ता राहत मिलने लगती है। इस स्थिति में भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान जीवन से लिए सबसे अनुकूल (18 से 23 डिग्री सेल्सियस के बीच) हो जाता है। तब समस्त जीवों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। इससे मानव को अति प्रसन्नता का अनुभव होता है। -डॉ. मोहम्मद रेयाज, भूगोलवेत्ता, प्राचार्य, करीम सिटी कॉलेज, साकची

भगवान भास्कर की अपूर्व छवि वसंत ऋतु के लिए खासकर फाल्गुन में विचित्र गति को देते हुए शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक कार्यो पर शुभ है। वसंत का सबसे महान मास फाल्गुन ही है। इसी के अंत में नए साल शालिवाहन संवत का निर्माण होता है, जो ¨हदुओं के लिए महान समझा जाता है। फाल्गुन में क्रीड़ा का अद्भुत स्वरूप मिलता है। इसी महीने में अनेकों तरह की शारीरिक व मानसिक गतियां आसानी से प्राप्त हो जाती हैं, जिसे शरीर, मन व भाव के लिए सहज समझा जाता है। -धरनीधर मिश्र, आयुर्वेदाचार्य, ज्योतिषाचार्य, वेदांत, लाइन नं. 3, भुइयांडीह।

शीत ऋतु स्थूल है। ठंड की वजह से इसमें एक गति है। जैसे ही यह मौसम ग्रीष्म की ओर बढ़ता है, प्रकृति अपना रंग बदलने लगती है। हरी-हरी पत्तियों और फूलों से प्रकृति की सुंदरता बढ़ जाती है। इस मौसम में जल, थल और नभ हर जगह अद्भुत छटाएं नजर आने लगती हैं। इसका असर जीव-जंतु के साथ ही पेड़-पौधे पर भी होता है। मानव मन गतिशील व तरंगित हो जाता है। प्रकृति के बदलाव का गहरा असर मस्तिष्क पर भी पड़ता है। वसंत में खुशी व उल्लास का वातावरण होता है। डॉ. निधि श्रीवास्तव, मनोवैज्ञानिक, विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल, मानगो।

chat bot
आपका साथी