महिलाएं न चुराएं पानी इसलिए कुआं पर रख देते हैं हल

चूंकि आदिवासी समाज में मान्यता है कि महिलाएं हल नहीं छूतीं इसलिए पानी की चोरी रोकने वास्ते दोपहर व रात में पुरुष कुआं पर हल रख दिया करते थे।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 21 May 2019 12:24 PM (IST) Updated:Tue, 21 May 2019 12:24 PM (IST)
महिलाएं न चुराएं पानी इसलिए कुआं पर रख देते हैं हल
महिलाएं न चुराएं पानी इसलिए कुआं पर रख देते हैं हल

जमशेदपुर,एम. अखलाक। भीषण गर्मी और आसमान से बरस रहे आग के बीच तापमान जैसे-जैसे परवान चढ़ रहा है, कापरा मुर्मू का कलेजा भी तेजी से धड़क रहा है। वह डरी है कि गांव में जल संकट गहराने पर कुआं पर हल रखने की फिर नौबत नहीं आ पड़े।

बस्ती के पास वाला छोटा-सा तालाब सूख कर अपनी पहचान खो चुका है। चापाकलों ने तो पहले ही दम तोड़ दिया था। जलमीनार पर दबंगों का कब्जा है। पानी भरने वास्ते इस कदर मारपीट हुई थी कि सात परिवारों को छोड़ कर कोई यहां पानी ही नहीं भरता है। गांव में बस एक बूढ़ा कुआं जवान है। दो वर्षों से नहीं सूखा है। वजह, आए दिन शाम होते आंधी-पानी होने से इसे जीवन-दान मिल गया है। इसमें पानी भले ही कम है, पर अभी यही गांव वालों का साथ निभा रहा है।

पानी के लिए जूढ रहा गांव

यह कहानी है पानी के लिए वर्षों से जूझ रहे जोबला गांव की। पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड मुख्यालय से 25 किमी दूर इस गांव में सौ परिवार रहते हैं। पहाड़ और जंगल में बसे होने के कारण चारपहिया वाहन से यहां पहुंचना संभव नहीं। बैसाख की भरी दोपहरी में पानी भर कर लौट रही मायो मुर्मू दो वर्ष पुरानी कहानी सुनाने लगीं। तब इस गांव में कहीं पानी बचा नहीं था। लगा कि कुआं भी सूख जाएगा। गांव ने तय किया कि हर घर को सुबह-शाम सिर्फ दो गगरी पानी बंटेगा। इसी से घर चलना पड़ा था।

ये मान्यता है वजह

चूंकि आदिवासी समाज में मान्यता है कि महिलाएं हल नहीं छूतीं, इसलिए पानी की चोरी रोकने वास्ते दोपहर व रात में पुरुष कुआं पर हल रख दिया करते थे। शुक्र है कि इसबार ऐसी नौबत नहीं आयी है। पर चढ़ते पारा को देख मन में डर बना हुआ है। स्कूल टोला में स्कूल की चारदीवारी टूटी हुई है। चापाकल भी अभी ठीक है। इसलिए चुपके से यहां से भी पानी मिल जाता है। ग्रामीण माधव किस्कू की मानें तो संताल और सबर समुदाय बहुल टोला में विवाह के समय पानी खरीदना पड़ता है। छह सौ रुपये खर्च करने पर एक टैंकर पानी मिल पाता है।

जंगल सिमटने के साथ गहरा रहा जलसंकट

मुखिया कार्तिक हेम्ब्रम कहते हैं कि यह गांव अर्से से जल संकट झेल रहा है। जैसे-जैसे जंगल सिमट रहा है, समस्या भी गहराती जा रही है। गांव में जलमीनार निर्माण के बाद लगा कि यहां से जल संकट दूर हो जाएगा, पर पानी भरने के लिए हुए विवाद के बाद कुछ लोगों ने इस पर ताला जड़ दिया। सुबह-शाम ताला खुलने पर ग्रामीण पानी भरते हैं। वहीं कई परिवारों ने यहां पानी भरना ही छोड़ दिया है। कुआं पर ही निर्भर हैं। समझाने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ।

पड़ोस के गांव की हालत भी समान

खैर, कॉपरा मुर्मू बताती हैं कि पड़ोस का बोदरा टोला भी पानी के लिए पसीना बहा रहा है। यहां करीब दस परिवार रहते हैं। सिर्फ एक चापाकल है। उसकी भी हालत खराब है। कब जवाब दे जाए, ग्रामीण इस आशंका से सहमे रहते हैं। यहां ग्रामीणों ने खेत के किनारे गड्ढा में पानी सहेज रखा है। यही इनके जीवन का आधार है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी