951 बसें हो गई कबाड़, फिर भी ले रहे 500 का झाड़
जमशेदपुर सरकार की ग्रामीण इलाकों में बस संचालन की पिछली योजनाएं धराशाई हो गई।
मुजतबा हैदर रिजवी, जमशेदपुर : सरकार की ग्रामीण इलाकों में बस संचालन की पिछली योजनाएं धराशायी होती रही हैं। 2004 में कल्याण विभाग ने 701 बसें खरीद कर लाभुकों के समूहों को संचालन के लिए दी थीं। इन बसों से न तो समूहों का भला हो सका और ना ही सरकार का। हालात ये रहे कि कल्याण विभाग बसों के रजिस्ट्रेशन का शुल्क और टैक्स की रकम तक अदा नहीं कर पाया। नगर विकास विभाग द्वारा 2010 में खरीदी गई तकरीबन 250 बसों का भी यही हश्र हुआ। ये बसें अभी भी सिदगोड़ा बस टर्मिनल में कबाड़ बनी खड़ी हैं। 951 बसों के कबाड़ होने के बाद अब फिर सरकार 500 बसें खरीदने की तैयारी में है।
परिवहन एवं कल्याण मंत्री चंपई सोरेन ने एलान किया है कि वो प्रदेश में 500 नई बसें चलवाएंगे। जो गांवों को शहर से जोड़ेंगी। जानकारों का मानना है कि सरकार के पास ऐसा कोई विभाग नहीं है जो बसें चलाने का अनुभव रखता हो। 2004 में प्रदेश सरकार के पास पथ परिवहन विभाग था, लेकिन सरकारी लापरवाही के चलते बसों के संचालन का जिम्मा इस विभाग को नहीं दिया गया। जानकारों का मानना है कि बिना ठोस कार्ययोजना तैयार किए बसें खरीदना फिर सरकारी खजाने को चूना लगाने के बराबर होगा।
ग्रामीण बस सेवा भी रही फ्लाप :
रघुवर सरकार की 2016 में लागू ग्रामीण बस सेवा योजना भी फ्लाप रही। पूर्वी सिंहभूम में गांवों को शहरों से जोड़ने के लिए 23 रूट चिन्हित किए गए थे, लेकिन दो साल तक लगातार कोशिश करने के बाद भी जिला परिवहन विभाग को इन रूटों बस चलाने के लिए कोई नहीं मिला। जबकि, सरकार ने मुफ्त परमिट के साथ ही टैक्स माफी और बस खरीद के लिए लोन दिलाने का भी लालच लोगों को दिया। बाद में प्रशासन ने एक लाभुक को तैयार कर किसी तरह योजना की शुरुआत कर दी थी, लेकिन अब योजना बंद है।
सिटी बसें भी नहीं दौड़ा पाई सरकार :
जवाहरलाल नेहरू शहरी पुनरुत्थान मिशन के तहत नगर विकास विभाग ने जमशेदपुर को 50 और धनबाद व रांची को 100-100 बसें दी थीं। ये बसें भी सड़कों पर नहीं दौड़ पाई। जमशेदपुर में तो कभी पांच बसें सड़क पर चलीं तो कभी छह। बाकी बसें सिदगोड़ा स्थित बस टर्मिनल में खड़ी रहीं। इन बसों के संचालन की जिम्मेदारी झारखंड टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (जेटीडीसी)को सौंपी गई थी।
रूट तक नहीं दिला पाया प्रशासन : जमशेदपुर अक्षेस सिटी बसों को रूट तक नहीं दिला पाया। मिनी बसों के मालिकों ने इन बसों को कभी रूट नहीं दिया। जब भी सिटी बसों के चालक सड़कों पर निकले तो मिनी बसों के चालकों ने उनके साथ मारपीट की। कुछ रूट ही थे जिन पर एक्का-दुक्का बसें चलीं। ऐसा तब था जब परिवहन आयुक्त ने आदेश जारी कर शहर में टेंपो के परमिट देना बंद कर दिया था।
'30 से ज्यादा सिटी बसें कबाड़ हो चुकी हैं। ये 10 साल से अधिक समय से खड़ी हैं। अब इन बसों के बनने के चांस कम ही हैं। कुछ बसें ही चल रही हैं।
- कृष्ण कुमार, विशेष अधिकारी जमशेदपुर अक्षेस