कुपोषण के खिलाफ जंग में यह खास पौधा बना हथियार, जानिए अभियान से जुड़ी खासियत

विस्थापित मुक्ति वाहिनी ने झारखंड में कुपोषण के खिलाफ जंग में एक खास पौधे को हथियार बनाया है। इसके फल कुपोषण दूर करने में मददगार बन रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 04 Sep 2019 09:49 AM (IST) Updated:Wed, 04 Sep 2019 09:49 AM (IST)
कुपोषण के खिलाफ जंग में यह खास पौधा बना हथियार, जानिए अभियान से जुड़ी खासियत
कुपोषण के खिलाफ जंग में यह खास पौधा बना हथियार, जानिए अभियान से जुड़ी खासियत

जमशेदपुर,अमित तिवारी। विस्थापित मुक्ति वाहिनी शरीफा के जरिए झारखंड में कुपोषण के खिलाफ पिछले सात साल से जंग छेड़े हुए है। संगठन के अगुवा अरविंद बताते हैं कि शरीफा गुणकारी और पौष्टिक फल है। इसी से कस्टर्ड पाउडर बनता है। दूध में घोलकर बच्चों को पिलाने से कुपोषण पर बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। 

विस्थापित मुक्ति वाहिनी के अगुवा अरविंद अंजुम पूर्वी सिंहभूम जिले में 10,000 से अधिक शरीफा के पौधे रोप चुके हैं। अरविंद अंजुम विस्थापन के संघर्ष के रचनात्मक रूपांतरण में जुटे हैं। 'शिक्षा, माछ, गाछ और चास से होगा विकास' को मूल मंत्र मानकर अरविंद ने इस नये संघर्ष का एलान किया है। मुक्ति वाहिनी के लगभग 15 सक्रिय सदस्यों को लेकर वे अपने इस महाअभियान 'कुपोषण से जंग' और 'पर्यावरण संरक्षण' में जुट गए हैं। वे अपनी टीम के साथ हर साल बरसात में जुलाई से अक्टूबर के बीच पूर्वी सिंहभूम के ग्रामीण इलाकों में 10,000 से अधिक शरीफा के पौधे रोप चुके हैं। 

शरीफा ही क्यों?

शरीफा झारखंड के मौसम और मिट्टी के अनुकूल है। जानवर भी इस पौधे को नहीं खाते। इसके रख-रखाव के लिए अलग से प्रयास की जरूरत नहीं है। हमारी मानसिकता यह है कि हम पौधे लगाते तो हैं पर उसे बचाते नहीं। कम मेहनत में ये पौधे लगेंगे और जीवित भी रहेंगे। तीन से पांच साल में ये पौधे फल देने लगेंगे। बेबाक लहजे में अरविंद कहते हैं 'यह केवल पौधरोपण नहीं है। पेड़ व मनुष्य के बीच प्राकृतिक सामंजस्य व संबंध की संस्कृति विकसित करने का प्रयास है। यह कोशिश है कुपोषण से मुक्ति और पर्यावरण संरक्षण की औपचारिकताओं से आगे जाकर कुछ करने की।'

ये है फंडा 

जिले में तमाम ग्रामीण क्षेत्र में एक परिवार को शरीफा के पांच पौधे दिए गए। विमुवा की टीम के साथ ही ये परिवार पौधों की देखभाल कर रहे हैं। तीन पेड़ों का फल वह परिवार खाएगा और दो पेड़ों का फल गांव समाज के लिए होगा। ताकि इलाके के बच्चे कुपोषण मुक्त हो सकें।

खुद किया खर्च का इंतजाम 

अरविंद की अगुवाई में टीम इन पौधों को रोपने में आने वाले लगभग एक लाख रुपये खर्च का इंतजाम खुद किया। इसके लिए आपस में चंदा भी लगाया।

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