निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को पढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे डॉ. उमेश

छह दिन की भूख हड़ताल प्रारंभ की। इसके बाद झारखंड सरकार ने भी अपना नियम बदला।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 07:01 AM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 07:01 AM (IST)
निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को पढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे डॉ. उमेश
निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को पढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे डॉ. उमेश

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शहर के निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के नामांकन या पढ़ाई को लेकर डॉ. उमेश कुमार वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं, ताकि गरीब बच्चों को भी समान रूप से शिक्षा मिल सके। संविधान में सभी को समान रूप से शिक्षा का अधिकार प्राप्त है और डॉ. उमेश पिछले 15 साल से निजी स्कूलों में बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) कोटे में गरीब बच्चों को नामी-गिरामी निजी स्कूलों में नामांकन कराने को लेकर संघर्षरत हैं।

सभी स्कूलों में आरक्षित वर्ग में कुल सीट का 25 प्रतिशत नामांकन लेना है, लेकिन निजी स्कूल तरह-तरह का बहाना बनाकर बच्चों को दाखिला नहीं करते हैं। इन बच्चों को स्कूलों में एडमिशन दिलाने के लिए कदमा के डॉ. उमेश हमेशा मुखर रहते हैं। उपायुक्त से लेकर मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग से पत्राचार करते रहते हैं। अभिभावकों के बीच जाकर स्कूलों में एडमिशन के प्रेरित करते हैं। डॉ. उमेश के इस प्रयास के कारण ही बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों में हो रहा है।

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छह दिनों की भूख हड़ताल के बाद झारखंड में संशोधित हुआ आरटीई

भारत में निश्शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम 2009 से लागू हुआ। झारखंड में यह वर्ष 2011 में लागू हुआ। उस समय गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों को लेना था, लेकिन इसमें बच्चे नहीं मिल पा रहे थे। जमशेदपुर अभिभावक संघ के अध्यक्ष डॉ. उमेश ने साकची, कदमा, सोनारी, बिष्टुपुर, मानगो के कई क्षेत्रों में गरीब बच्चों के अभिभावकों को निजी स्कूलों में नामांकन के लिए प्रेरित किया। लेकिन, कई अभिभावकों के पास लाल कार्ड नहीं था। इस कारण डॉ. उमेश ने दिल्ली सरकार का आय प्रमाण पत्र वाला नियम झारखंड में लागू करने के लिए जमशेदपुर में वर्ष 2016 में उपायुक्त कार्यालय के पास छह दिन की भूख हड़ताल प्रारंभ की। इसके बाद झारखंड सरकार ने भी अपना नियम बदला। झारखंड सरकार ने 72 हजार से नीचे वार्षिक आय वाले लोगों को बीपीएल घोषित किया। इसके बाद निजी स्कूलों में एडमिशन के लिए अभिभावकों को घर-घर जाकर प्रेरित किया। आज कम से कम अभिभावक आवेदन करने लगे हैं। एडमिशन नहीं लेने पर उनका मार्गदर्शन लेने हर साल दो सौ से अधिक लोग आते हैं। वे इन अभिभावकों को एडमिशन की सारी प्रक्रियाओं की जानकारी देते हैं।

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अभी निजी स्कूलों की मंशा नहीं बदली

जमशेदपुर अभिभावक संघ के अध्यक्ष डॉ. उमेश ने बताया कि गरीब बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों में कराने को लेकर लगातार आंदोलन हो रहा है। कई निजी स्कूल तो इन बच्चों का नामांकन ले रहे हैं, लेकिन बेवजह अभिभावकों को दौड़ाते रहते हैं। ये स्कूल आरटीई मामले में शिक्षा विभाग की भी बात नहीं सुनते हैं। ऐसे स्कूलों को नियम कानून के दायरे में लाने के लिए संघ को आंदोलन करना पड़ता है।

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