चाकुलिया में मना रास-उत्सव, 'जय राधे-जय कृष्ण...' करते श्रद्धालुओं ने किया नगर भ्रमण

गुरु पूर्णिमा काे झारखंड में रास-पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित चाकुलिया प्रखंड के शहरी क्षेत्र में धूमधाम से रास-पूर्णिमा मनाया गया। भक्त-श्रद्धालु जय राधे-जय कृष्ण... भजन गाते हुए पूरे शहर का परिभ्रमण करते रहे।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 04:11 PM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 04:11 PM (IST)
चाकुलिया में मना रास-उत्सव, 'जय राधे-जय कृष्ण...' करते श्रद्धालुओं ने किया नगर भ्रमण
चाकुलिया शहर के राधा कृष्ण मंदिर में पूजा करते भक्त

 चाकुलिया (संवाद सूत्र)। गुरु पूर्णिमा काे झारखंड में रास-पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित चाकुलिया प्रखंड के  शहरी क्षेत्र में धूमधाम से रास-पूर्णिमा मनाया गया। शहर के नामोपाड़ा रास मंच परिसर स्थित राधाकृष्ण मंदिर में सोमवार को विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान हुए। सुबह-सुबह प्रसिद्ध कथावाचक स्वामी हंसानंद गिरि की अगुवाई में भजन-कीर्तन के साथ प्रभातफेरी निकाली गई। इसमें शामिल भक्त-श्रद्धालु 'जय राधे-जय कृष्ण...' भजन गाते हुए पूरे शहर का परिभ्रमण करते रहे। इसके बाद सुबह 11 बजे से राधा-कृष्ण मंदिर परिसर में विधिवत पूजा शुरू हुई, जिसमें काफी संख्या में महिलाओं व पुरुषों ने इसमें भाग लिया। मंदिर परिसर में हरिनाम संकीर्तन का भी आयोजन किया गया। पश्चिम बंगाल से आए कलाकारों ने कीर्तन की प्रस्तुति से माहौल को भक्तिमय बना दिया। शाम में आरती की गई। कार्यक्रम के आयोजन में रास उत्सव समिति के संरक्षक लक्ष्मी नारायण दास, अध्यक्ष पंकज दास, उपाध्यक्ष शंकर दास, सचिव दिलीप दास, कोषाध्यक्ष पशुपति बेरा, चंद्रदेव महतो, पतित दास, कंचन पांडा,  भोलानाथ दास, रंजीत दास, विमल दास, देवदास पांडा आदि की सक्रिय भूमिका रही। इस मौके पर लक्ष्मी नारायण दास ने बताया कि यह कार्यक्रम शहर का सबसे प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान है। ऐसी मान्यता है कि नागा बाबा मंदिर में जो नागा साधु आए थे उन्होंने शालिग्राम व लड्डू गोपाल की मूर्ति नामोपाड़ा निवासी यदु दास को दी थी। उसी मूर्ति को राधा कृष्ण मंदिर में स्थापित किया गया है। यहां भक्त काफी श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं। इस साल कोविड-19 को देखते हुए शारीरिक दूरी के पालन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, इसलिए कोई बड़ा सांस्कृतिक अनुष्ठान नहीं किया जा रहा है। तीन दिवसीय रास उत्सव के दौरान सिर्फ पूजा व आरती ही की जाएगी।

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