एमजीएम में जन्म के 24 घंटे के भीतर 62 फीसद नवजात बच्चों की मौत

एमजीएम अस्पताल में 24 घटे के अंदर 62 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। इसका खुलासा राज्य सरकार द्वारा कराई गई जाच रिपोर्ट में हुआ है।

By Edited By: Publish:Sat, 03 Nov 2018 08:30 PM (IST) Updated:Sun, 04 Nov 2018 01:18 PM (IST)
एमजीएम में जन्म के 24 घंटे के भीतर 62 फीसद नवजात बच्चों की मौत
एमजीएम में जन्म के 24 घंटे के भीतर 62 फीसद नवजात बच्चों की मौत

जमशेदपुर (जासं)।  कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गाधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 24 घटे के अंदर 62 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। इसका खुलासा राज्य सरकार द्वारा कराई गई जाच रिपोर्ट में हुआ है। दैनिक जागरण ने बीते साल चार माह में 164 बच्चों की मौत की खुलासा किया था। इसके बाद झारखंड ह्यूंमन राइट्स कांफ्रेंस (जेएचआरसी) ने इस मामले की शिकायत लोकायुक्त से की थी और जांच की मांग की थी।

लोकायुक्त ने इसे गंभीरता से लेते हुए जांच का आदेश दिया था। इसके बाद राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय टीम गठित की थी। इसमें स्वास्थ्य सेवाएं के निदेशक प्रमुख डॉ. राजेंद्र पासवान, चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. लक्ष्मण लाल व कोल्हान के क्षेत्रीय उप निदेशक डॉ. सुरेश कुमार शामिल थे। इनके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि 164 बच्चों की मौत कई कारणों से हुई है। 24 घंटे के अंदर 62 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। वहीं जन्म के 12 दिन के अंदर 22 फीसद, तीन साल तक नौ फीसद व पांच साल तक उम्र में चार फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। शिशुओं की मौत का मुख्य कारण कम वजन, संक्रमण, समय से पूर्व जन्म व श्वास में कठिनाई बताया गया है।

 महिलाओं को नहीं मिल रहा पौष्टिक आहार

रिपोर्ट में बताया गया है कि जो बच्चे कम वजन के जन्म लिये हैं उनकी मां भी शारीरिक रूप से काफी कमजोर हैं। वहीं गर्भावस्था के दौरान उनमें पोषण की कमी रही। साथ ही प्रसव पूर्व जांच की कमी है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इस तरह के कमजोर बच्चों के लिए एक विशेष यूनिट होनी चाहिए। जिससे उनका समुचित देखभाल की सके। एमजीएम अस्पताल के नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआइसीयू) में 30 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है, जो दो गुना अधिक है। 10 फीसद तक की मौत को सामान्य माना जाता है।

जननी सुरक्षा योजना के तहत नहीं मिलता फंड

एमजीएम अस्पताल में जननी सुरक्षा योजना के तहत फंड नहीं मिलता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि फंड नहीं मिलने के कारण जच्चा-बच्चा को बेहतर सुविधाएं देने में दिक्कत होती है। एमजीएम में हर माह 600 महिलाओं का प्रसव होता है। लेकिन प्रोत्साहन राशि एक को भी नहीं मिलती। जबकि योजना के तहत संस्थागत प्रसव कराने वाली शहरी महिलाओं को 1000 व ग्रामीण महिलाओं को 1400 रुपये बतौर प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है।

रिपोर्ट में यह खामियां भी दर्ज

- नियमानुसार एनआइसीयू में 12 स्टाफ नर्स की आवश्यकता है, यहां मात्र दो नर्से ही हैं।

- वर्तमान में एनआइसीयू छह बेड का हैं जिस पर 24 से 30 शिशु मरीज भर्ती हैं, जो सामान्य से अधिक है। इससे संक्रमण फैलने का भी संभावना रहती है। छह बेड पर छह मरीज ही भर्ती हो सकते हैं।

- चिकित्सा संस्थान में दवा, ऑक्सीजन पूर्ण आपूर्ति ठीक मिली है। मानव संसाधन में कमी पायी गई। - एनआइसीयू में शिशु बहुत बुरी हालत में दूसरे अस्पतालों से आते हैं, जो मृत्यु बढ़ने का एक कारण है।

- एनआइसीयू का द्वार अत्यंत संकरे रास्ते से होकर जाता है। यहां पर स्वच्छता की कमी है।

- एनआइसीयू में पानी की सुविधा नहीं है।

- टीम ने वर्तमान एनआइसीयू को किसी बड़े स्थान में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है।

chat bot
आपका साथी