गोशालाओं के लिए समर्पित मारवाड़ी समाज

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : मनुष्य जीवन के तीन प्रमुख पड़ाव हैं। जन्म, वरण और मरण। इन तीनों पड़ावों पर

By Edited By: Publish:Fri, 31 Oct 2014 01:01 AM (IST) Updated:Fri, 31 Oct 2014 01:01 AM (IST)
गोशालाओं के लिए समर्पित मारवाड़ी समाज

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : मनुष्य जीवन के तीन प्रमुख पड़ाव हैं। जन्म, वरण और मरण। इन तीनों पड़ावों पर मारवाड़ी समाज गाय की पूजा करता है और गो माता का आशीर्वाद लेता है। इसके अलावा भी हर रोज गो ग्रास निकालने और गो माता को भागे लगाने की प्रबल परंपरा भी मारवाड़ी समाज में है। यही कारण है कि मारवाड़ी समाज की संस्कृति में गो सेवा रची-बसी है।

शास्त्र मत है कि गाय में 36 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है और इस मत का मारवाड़ी समाज सदियों से पालन करता आ रहा है। मारवाड़ी समाज के बुजुर्गो की माने तो गो सेवा से विपत्तियां दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। दूसरा पहलू यह है कि आज से बहुत पहले मारवाड़ी समाज के लोग राजस्थान से दूसरे क्षेत्रों में व्यापार के लिए निकले तो यह भावना साथ थी कि जहां भी जाएंगे और वहां जो कारोबार करेंगे उसका एक अंश मानव और गो सेवा पर खर्च करेंगे। इसी भावना के तहत मारवाड़ी समाज जहां भी है वहां गोशाला, धर्मशाला, पनशाला और पाठशाला स्थापित कर रखा है। आज जहां मारवाड़ी समाज की नई पीढ़ी अपनी तमाम परंपराओं से विमुख हो रही है, वहीं गो सेवा की परंपरा को नहीं भूली है। बल्कि इसको और भी आगे ले जाने को आतुर है। कोल्हान में स्थापित चार गोशाला से हर महीने पांच हजार लीटर दूध का उत्पादन होता है। इन गोशाला में से एक भी गाय को बूढ़ी होने के कारण बाहर भटकने के लिए नहीं छोड़ा जाता। उनकी हर संभव सेवी की जाती है।

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दान से चलती हैं गोशालाएं

मारवाड़ी समाज द्वारा स्थापित सभी गोशालाएं दान के रूप में मिले धन और आपसी सहयोग से चलती हैं। समाज का हर परिवार अपना परम कर्तव्य मानकर हर साल गोशाला के लिए दान करता है। अब तो दूसरे समाज के लोग भी गोशालाओं के लिए दान करने लगे हैं। कोल्हान में स्थापित सभी गोशालाएं पुरानी हैं और ये दान में मिली जमीन पर स्थापित की गई हैं। एक-दो स्थानों पर जमीन पट्टे पर ली गई है या खरीदी गई है।

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कोल्हान में गोशालाएं

श्री टाटानगर गोशाला। इसकी दो शाखाएं हैं। कलियाडीह और बागबेड़ा। कलियाडीह में 1500 ऐसी गाय हैं जो दूध नहीं देतीं और बहुत बूढ़ी हो चुकी हैं। यहां ऐसी ही गायों की सेवा की जा रही है। बागबेड़ा में केवल बछिया रख जाती है और यहां इस समय 100 बछिया हैं। श्री टाटानगर गोशाला, जुगसलाई में 300 दूध देने वाली गाय की सेवा की जा रही है।

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चाकुलिया गोशाला में बनती है पंचगव्य औषधि

चाकुलिया में स्थापित गोशाला गव्य अनुसंधान केंद्र के रूप में काम करती है। यहां गोमूत्र से लगभग 25 तरह की पंचगव्य औषधि बनती है। गोमूत्र का अर्क भी बनता है जिसके सेवन आदमी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यहां गाय के गोबर से खाद भी बनता है। इस समय यहां कुल 400 गाय हैं। इनमें से 60 गाय ही दूध देती हैं बाकी सभी गाय बूढ़ी हो चुकी हैं और यहां इनकी सेवा की जाती है।

चक्रधरपुर गोशाला : चक्रधरपुर गोशाला में इस समय 72 गाय हैं। इनमें से केवल 16 ही दुधारू गाय हैं बाकी बूढ़ी हो चुकी गायों की सेवा की जाती है।

चाईबासा गोशाला : चाईबासा गोशाला में इस समय 400 गाय हैं। इनमें से 100 गाय ही दूध देती हैं बाकी सभी गया बूढ़ी हो चुकी हैं। यहां इनको रखकर सेवा की जाती है।

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भविष्य की योजनाएं: गोशाला संघ के प्रदेश महामंत्री अनिल मोदी ने बताया कि सरकार के साथ समन्वय बनाकर झारखंड की गोशालाओं का आधुनिकीकरण करने की योजना है। गाय के गोबर से बनने वाली खाद के लिए बाजार विकसित करना, पंचगव्य औषधि निर्माण के लिए सरकार से मान्यता व सहयोग तथा प्रदेश में गोसेवा आयोग के गठन की मांग करना हमारी भविष्य की योजनाओं में शामिल है। गोवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम का झारखंड में कड़ाई से पालन कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाना भी हमारी भावी योजनाओं में शामिल है।

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