आइआइटी में जुड़वा भाइयों की सफलता की अजब दास्तान

पांच साल में यहां चार जुड़वा बच्‍चों ने साथ-साथ आइआइटी की परीक्षा में सफलता का परचम लहराया है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Thu, 04 Oct 2018 07:30 PM (IST) Updated:Thu, 04 Oct 2018 07:46 PM (IST)
आइआइटी में जुड़वा भाइयों की सफलता की अजब दास्तान
आइआइटी में जुड़वा भाइयों की सफलता की अजब दास्तान

हजारीबाग, विकास कुमार। जुड़वा भाइयों से जुड़ी अनेक कहानी हमलोगों ने सुनी हैं। कई फिल्में भी आई हैं जिनमें दिखाया जाता है कि कैसे एक भाई को चोट लगे तो दूसरे को भी दर्द होता है। हालांकि रील लाइफ से इतर रीयल लाइफ में ऐसा चमत्‍कार नहीं दिखता। हां, हजारीबाग के एक संस्‍थान में जरूर जुड़वा बच्‍चों की सफलता की एक अलग कहानी लिखी जाती है। यहां एडमिशन लेने वाले जुड़वा बच्‍चों में से एक ने अगर आइआइटी की परीक्षा पास की तो दूसरे की भी कामयाबी तय है। संस्‍थान के आंकड़े इसके गवाह हैं। पांच साल में यहां आए चार जुड़वा बच्‍चों ने साथ-साथ आइआइटी की परीक्षा में सफलता का परचम लहराया है। यानी अगर आपके बच्‍चे जुड़वा हैं और आप भी उन्‍हें आइआइटी भेजना चाहते हैं तो हजारीबाग का अचिवर्स क्‍लासेस आपके सपनों को पूरा करने का एक अच्‍छा प्‍लेटफार्म साबित हाे सकता है।

हजारीबाग के ही नवोदय विद्यालय से पढ़ने वाले अभिषेक और अमितेष ने यहां से सबसे पहले सफलता पाई। 2013 में आइआइटी में दोनों भाइयों ने एक साथ सफलता का परचम लहराया। आज जहां अभिषेक आइआइटी कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं तो अमितेष ने आइआइटी खड़गपुर से आइआइटी कंप्लीट कर ली है। भुरकुंडा रामगढ़ के रहने वाले राम और श्याम की जोड़ी ने 2015 आइआइटी में सफलता पाई। इन दोनों भाइयों ने भी बचपन से लेकर आइआइटी में सफल होने तक साथ-साथ पढ़ाई की। वर्ष 2018 में हजारीबाग डीएवी के छात्र रहे हजारीबाग निवासी विशाल कुमार व आकाश कुमार ने सफलता पाई। इन्होंने बचपन से ही साथ-साथ पढ़ाई की। तैयारी के लिए अचिवर्स क्लासेस में दाखिला लिया और फिर सफलता हासिल की। वहीं, 2016 में पवन और राजेश की जुड़वा भाइयों की जोड़ी भी सफल हुई।

सहयोग के साथ प्रतियोगिता की भी भावना 

करीब एक दशक से अधिक समय से अचिवर्स कोचिंग का संचालन कर रहे निदेशक अजय ठाकुर व अजय ठाकुर बताते हैं कि पांच साल में चार जुड़वा भाइयों ने यहां से सफलता की दास्तान लिखी है। बताते हैं कि जुड़वा भाइयों में सहयोग और प्रतियोगिता दोनों भावनाएं साथ-साथ चलती हैं। पढ़ाई के दौरान यही दिखा। जब कोई कमजोर पड़ता था तो दूसरा उनका सहयोग करता था। वहीं, जब कोई भाई अच्छा करता था तो दूसरे भाई में प्रतियोगिता की भावना जागृत होती थी।

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