खुश रहने के लिए नकारात्मक सोच बदलना होगा
जिस क्षण से मनुष्य मां की कोख से जन्म लेता है उसी क्षण से वह सुख को तलाश करता है। जिस सुख क
जिस क्षण से मनुष्य मां की कोख से जन्म लेता है उसी क्षण से वह सुख को तलाश करता है। जिस सुख की वो तलाश करता है वही उसे खुश रख सकता है। मगर पूरा जीवन वह इसी में व्यतीत कर देता है कि अगर सुख कहां है। बालवस्था में मां की गोद युवा में मित्रों की संगत में, पत्नी में, धन और वैभव में, नानी पोतों में अंतत: सुख की वास्तिवक तलाश जिससे खुशी मिले व तलाशता हुआ शरीर ही त्याग देता है। इस संसार में जो भी सुख है वह न तो निश्चित है और न स्थिर, जिसके पास संतान है वह संतान से दुखी, जिसके पास नही है वह संतान के लिए दुखी, जिसके पास धन नही है वह धन से दुखी है, जिसके पास है वह गंवाने के डर में। किसी महात्मा ने कहा है धन की दो लत हैं आवत अंधा कर, जावत करे अधीन, किसी को जीवन की तलाश है तो काई जीवनसाथी से परेशान है। मगर अगर इंसान सबकुछ अपना करने की भावना को त्याग दें तो बहुत हद तक खुश रहना सीख सकते हैं। मगर इसके लिए नकारात्मक सोच को बदलना होगा। अपने कर्मो व इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होगा। और एक सच्चे गुरु की तलाश कर उनके अनुगमण में रह कर उस परमात्मा को भक्ति करनी होगी। परमात्मा की भक्ति का यह अर्थ नहीं बाल बच्चें को त्यागना है या अपनी शिक्षा नही ग्रहण करने या नौकरी नही करना। सबकुछ करना है लेकिन ईश्वर की दी हुई जिम्मेवारी का हम पालन कर रहे हैं। ऐसा करके इस लोक में भी सुखी रह सकेंगे।
एके देव, वरीय शिक्षक, अचिवर्स क्लासेस हजारीबाग