खत्म हुईं चौपाल की बैठकें, लोग नहीं ले रहे रुचि

खत्म हुई गांवों में चौपाल की बैठकें गढ़वा : चौपाल में होती थी गांव के विकास पर चर्चा, छोटे-मोटे विवादों का चुटकी बजाते ही हो जाता था समाधान। कुछ बुजुर्ग लोगों के संस्मरण के साथ। गढ़वा से दीपक की रिपोर्ट, 5 बजे, शब्द।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 22 Oct 2018 05:33 PM (IST) Updated:Mon, 22 Oct 2018 05:33 PM (IST)
खत्म हुईं चौपाल की बैठकें, लोग नहीं ले रहे रुचि
खत्म हुईं चौपाल की बैठकें, लोग नहीं ले रहे रुचि

गढ़वा: गांवों में आयोजित चौपाल की बैठकें बीते समय की बात बनकर रह गई है। पहले चौपाल में ग्रामीण बैठक कर गांव के विकास पर चर्चा कर इस पर आवश्यक कार्य किया करते थे। साथ ही यहां छोटे-मोटे विवादों को ग्रामीणों द्वारा चुटकी बजाते ही समाधान कर लिया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया चौपाल पर आयोजित बैठकें बीते दिनों की बात बनकर रह गई। सही मायने में कहा जाए तो वर्तमान के भागमभाग भरी ¨जदगी में लोग चौपाल के महत्व को भुलते जा रहे हैं। लिहाजा गांवों में बने चौपाल आज विरान दिखने लगे हैं। जानकार लोगों का कहना है कि पहले प्रतिदिन ग्रामीण चौपाल पर एक साथ बैठते थे। यहां गांव-घर की समस्याओं पर लोग खुलकर चर्चा किया करते थे। साथ ही ग्रामीणों की आम सहमति से इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास किया जाता था। साथ ही ग्रामीणों द्वारा गांव-घर के छोटे-मोटे विवाद को भी चौपाल में आपसी सहमति के माध्यम से चुटकी बजाते ही सुलझा लिया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे चौपाल लगने की व्यवस्था दम तोड़ते जा रही है। अब बुजूर्ग भी चौपाल के प्रति पहले की तरह रुचि नहीं दिखा रहे हैं। - जब से मोबाइल फोन आया तब से लोग एक दूसरे से कटते जा रहे हैं। लोग चौपाल की महत्ता को अब नहीं समझ रहे हैं। इसका नतीजा है कि गांवों के चौपाल विरान होते जा रहे हैं। गांव-घर की समस्याओं के निराकरण के प्रति किसी का ध्यान नहीं है। यह हम सबों के लिए ¨चता का विषय है। चौपाल में बैठक होने से न केवल एक दूसरे का हालचाल होता था। बल्कि लोग एक दूसरे के सुख-दुख में भी भागीदार बनते थे। लोगों को चौपाल के प्रति रुचि लेने की जरूरत है।

फोटो - 26 - नकु पाल, महुपी, गढ़वा। - चौपाल बीते दिनों की बात बन चुकी है। नई पीढ़ी के लोग चौपाल की जरूरत को नहीं समझ रहे हैं। यह सभी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। जरूरत है कि पंचायत प्रतिनिधि चौपाल की महत्ता को खुद समझते हुए नियमित रूप से चौपाल की बैठकें आयोजित कराने की दिशा में ठोस रूप से पहल करें। हालांकि अभी भी कई गांवों में चौपाल का आयोजन पूर्व की भांति नियमित रूप से की जा रही है। हमें भी चौपाल के महत्व को समझते हुए इसे नियमित रूप से प्रभावी बनाने के प्रति पहल करनी चाहिए।

फोटो - 27 - अखिलानंद चौबे, हूर, गढ़वा।

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