यहां मुगलों के काल से निकाली जा रही रथयात्रा

धनबाद से करीब 250 किलोमीटर दूर बसे संताल परगना के पाकुड़ में रथमेला की परंपरा दशकों पुरानी है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 14 Jul 2018 10:42 AM (IST) Updated:Sat, 14 Jul 2018 10:42 AM (IST)
यहां मुगलों के काल से निकाली जा रही रथयात्रा
यहां मुगलों के काल से निकाली जा रही रथयात्रा

जागरण संवाददाता, पाकुड़: धनबाद से करीब 250 किलोमीटर दूर बसे संताल परगना के पाकुड़ में रथमेला की परंपरा दशकों पुरानी है। समय-समय पर आकार बदली लेकिन परंपरा नहीं टूटी। इस बार भी भगवान मदनमोहन रथ पर सवार होकर शनिवार को अपनी मौसी के यहां जाने को तैयार हैं।

पाकुड़ का रथमेला ऐतिहासिक है। मुगलकाल से ही यहां रथयात्रा निकाली जाती है। भगवान मदनमोहन रथयात्रा वर्ष 1697 से शुरू हुई थी। इसका शुभारंभ पाकुड़ राज के तत्कालीन प्रथम राजा पितृ चंद्र शाही ने की थी। पाकुड़ राज के कुलदेवता भगवान मदनमोहन व रुकमणि माता थे। तब जिले का राज स्टेट लिट्टीपाड़ा प्रखंड का कंचनगढ़ हुआ करता था। कंचनगढ़ के राजबाड़ी का खंडहर आज भी मौजूद है। पितृ चंद्र शाही के पुत्र सितेश चंद्र शाही ने पाकुड़ राज के दूसरे राजा के रूप में 1739 में कार्यभार संभाला। अकबर ने दिया था पूर्ण राज्य का दर्जा: बहुत दिनों के बाद पाकुड़ राज को बादशाह अकबर ने 1760 में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया। इसके बाद राजपाठ का सुचारू रूप से संचालन होने लगा। उस समय रथयात्रा में आदिम जनजाति पहाड़िया एवं आदिवासी समुदाय के काफी लोग मेले में शामिल हुआ करते थे। इसलिए कंचनगढ़ के राजा पहाड़िया राजा के रूप में जाने जाते थे। 1802 में पहाडिया समुदाय का विद्रोह शुरू हुआ। इस कारण राजा सितेश चंद्र शाही 1815 में कंचनगढ़ के राजपाठ उठाकर जिले के हिरणपुर प्रखंड के मोहनपुर में आकर बस गए। पूर्व में यह विशाल रथ नीम की लकड़ी का का था। मोहनपुर में रथयात्रा के दौरान भी भव्य मेले का आयोजन किया जाता था। उसके बाद पाकुड़ राज के तृतीय राजा गोपीनाथ पांडेय ने 1826 कार्यभार संभाला और श्रद्धापूर्वक रथयात्रा संपन्न होने लगी। 1856 में तृतीय राजा पाकुड़ में आकर बस गए। तृतीय राजा ने शहर के राजापाड़ा स्थित राजबाड़ी मैदान में भव्य मेले का आयोजन किया था। यह प्रथा आज भी जारी है। इसके बाद चतुर्थ राजा कुमार कालीदास पांडेय ने 1921 में प्रभार ग्रहण किया और वे रथयात्रा को राजशाही रीति-रिवाज से संचालित करने लगे। पहले रथयात्रा राजबाड़ी से निकलकर शहर के मुख्य मार्ग होते हुए रानी ज्योतिर्मय स्टेडियम तक पहुंचती थी और आठ दिनों तक रथ उसी स्थान रखा जाता था, लेकिन प्रशासन द्वारा स्टेडियम की घेराबंदी कर देने से वर्तमान में रथयात्रा भगतपाड़ा बिल्टू स्कूल तक जाकर पुन: वहां से राजबाड़ी पहुंचती है।

चतुर्थ राजा पांडेय के गुजर जाने के बाद 1931 में रानी ज्योतिर्मय देवी ने पीतल से रथ का निर्माण कराया। यह तकरीबन 20 फीट ऊंचा है।

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