जानिए, इस नक्सल प्रभावित इलाके में जवानों ने किसके लिए हाथों से छोड़ रखी इंसास राइफल

पिछले 14 दिन से जिले के 2766 पारा शिक्षक हड़ताल पर हैं। नक्सल प्रभावित टुंडी प्रखंड भी इससे अछूता नहीं है।

By mritunjayEdited By: Publish:Sat, 01 Dec 2018 10:53 AM (IST) Updated:Sat, 01 Dec 2018 10:53 AM (IST)
जानिए, इस नक्सल प्रभावित इलाके में जवानों ने किसके लिए हाथों से छोड़ रखी इंसास राइफल
जानिए, इस नक्सल प्रभावित इलाके में जवानों ने किसके लिए हाथों से छोड़ रखी इंसास राइफल

धनबाद, आशीष सिंह, दिनेश महथा। एलएमजी और इंसास राइफल पर ट्रिगर दबाने वाली उंगलियां पिछले एक सप्ताह से नक्सल प्रभावित टुंडी के मनियाडीह में ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को गुणा-भाग करना सिखा रही हैं। देश की आंतरिक सुरक्षा में तैनात जवान हाथों में किताब थामे बच्चों का भविष्य गढऩे में लगे हुए हैं।

दरअसल, पिछले 14 दिन से जिले के 2766 पारा शिक्षक हड़ताल पर हैं। नक्सल प्रभावित टुंडी प्रखंड भी इससे अछूता नहीं है। यहां 62 स्कूलों में पढ़ाई बाधित है। नक्सल प्रभावित टुंडी के मनियाडीह में सीआरपीएफ की 154वीं बटालियन तैनात है। यहां के आठ जवान पिछले दस दिन से दो मध्य विद्यालयों मध्य विद्यालय मनियाडीह और उत्क्रमित मध्य विद्यालय कुदाटांड़ में पढ़ा रहे हैं। यह तब है जब अक्सर जवानों पर आरोप लगते रहते हैं कि जवान स्कूलों को पुलिस पिकेट के तौर पर कब्जा कर लेते हैं। सबसे बड़ी बात है कि इनमें अधिकतर जवान जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से हैं। पढ़ाने का उद्देश्य जब जाना गया तो जवानों ने कहा, दो-तीन दिन तक हम लोगों ने देखा कि बच्चे लगातार स्कूल आते और चले जाते। रहा नहीं गया तो कारण जानने का प्रयास किया, जब पता चला कि स्कूल में शिक्षक ही नहीं है तो बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। इन दो स्कूलों को मिलाकर लगभग 800 बच्चों को सीआरपीएफ के ये आठ जवान शिक्षित करने में जुटे हैं। 

ये जवान बच्चों को कर रहे शिक्षित

- पुलिस निरीक्षक वासुदेव कुमार, जयपुर राजस्थान।

- उपनिरीक्षक केके राम, बिहार।

- योगेश कुमार, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

- जीएस राठौर, मध्य प्रदेश।

- रमेश सिंह करकी, राजस्थान।

- आशिक हुसैन खान, जम्मू-कश्मीर।

- दीपक कुमार देसवा, पश्चिम बंगाल।

- वृंदावन सिंह, मध्य प्रदेश।

हमारे घर में भी बच्चे हैं। यहां जब बच्चों को बिना पढ़े घर जाते हुए स्कूल के बाहर घूमते देखा तो रहा नहीं गया। अपने साथियों से बात करके इन्हें पढ़ाने की जिम्मा उठाया। अपनी ड्यूटी के साथ अगर कुछ घंटे इन बच्चों के भविष्य के लिए हम लोग दे भी रहे हैं तो बड़ी बात नहीं है। कम से बिना पढ़े ये बच्चे अपने घर तो नहीं जाएंगे। वैसे भी बंदूक और गोलियों के बीच किताब-कलम पकडऩा काफी सुखद अनुभूति भरा रहा। जब तक यहां शिक्षक नहीं आ जाते, तब तक हम लोग पढ़ाते रहेंगे। टुंडी नक्सल प्रभावित और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, इस लिहाज से भी यहां बेहतर शिक्षा जरूरी है। 

- केके राम, उपनिरीक्षक सीआरपीएफ 154वीं बटालियन

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