यहां बच्चों का बदलता नाम, कोई अमरूद कोई आम

धनबाद : ये स्कूल निराला है। यहां जन्मदिन पर बच्चों के नाम बदल जाते हैं। उनके नाम पेड़ पौधों पर रखे जा

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Jun 2018 10:21 AM (IST) Updated:Tue, 19 Jun 2018 10:21 AM (IST)
यहां बच्चों का बदलता नाम, कोई अमरूद कोई आम
यहां बच्चों का बदलता नाम, कोई अमरूद कोई आम

धनबाद : ये स्कूल निराला है। यहां जन्मदिन पर बच्चों के नाम बदल जाते हैं। उनके नाम पेड़ पौधों पर रखे जाते हैं। मसलन आम, अमरूद, बरगद। रद्दी कागज से ग्रीटिंग कार्ड व फाइलें बनाई जाती हैं। इसके लिए बाकायदा विद्यालय में मशीन लगी है। बच्चों को उनके जन्मदिन पर रद्दी कागज से बने शानदार ग्रीटिंग कार्ड दिए जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह शानदार प्रयास हो रहा है बोकारो के दिल्ली पब्लिक स्कूल में। मकसद यही कि बच्चे जीवन भर पेड़ पौधों को सहेजने की मुहिम चलाएं। ताकि हवाओं में प्राणों का स्पंदन जारी रहे।

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पेपर री-साइकिल यूनिट

वर्ष 2001 में बोकारो के दिल्ली पब्लिक स्कूल में पेपर री-साइकिल यूनिट शुरू की गई। जिन कागजों का उपयोग न होने के कारण बच्चे फेंकते थे, वही उनके जन्म दिन के तोहफे के तौर पर ग्रीटिंग बन उनके पास होते हैं। बच्चे भी पर्यावरण का महत्व समझ गए हैं। 90 हजार की कीमत की मशीन यहां रद्दी से फाइल, फोल्डर और बधाई कार्ड बना रही है।

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दस वर्ष से चल रही पर्यावरण संरक्षण की मुहिम

स्कूल की प्राचार्य डॉ. हेमलता एस मोहन ने बताया कि रद्दी कागजों को बच्चे फेंकते थे। तब करीब दस वर्ष पहले इनको री-साइकिल कर उपयोग की बात मन में आई। मशीन खरीदी। रद्दी कागज इस मशीन में डालकर बर्थ-डे ग्रीटिंग, फाइल आदि बनने लगीं। बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का महत्व बताने के लिए स्कूल में एक और बड़ा काम किया गया है। प्रत्येक कक्षा के बच्चे के जन्मदिन के दिन उसका नाम बदलकर पेड़ पौधों के नाम पर रखते हैं। मान लीजिए किसी का नाम आम रख दिया तो पूरे दिन उसकी कक्षा के शिक्षक, बच्चे व अन्य लोग इसी नाम से पुकारेंगे। यह पहल इसलिए है कि, छात्र महसूस करें कि पेड़ जीवन में कितने अहम हैं। कागज का उपयोग भी कम करें। क्योंकि कागज भी पेड़ से ही बनता है। कक्षा सात की छात्रा आकांक्षा ने बताया कि पेड़ से बच्चे का नाम जुड़ने पर उसका आत्मिक रूप से भी पेड़ पौधों से लगाव बढ़ जाता है। हमें महसूस होता है कि ये जिंदा रहेंगे तभी हमारी सांसे चलेंगी। ये तो हमारी जिंदगी हैं।

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स्कूल की कैंटीन में

नहीं बिकता फास्ट फूड

बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति भी विद्यालय सजग है। स्कूल की कैंटीन में फास्ट फूड की बिक्री नहीं होती। केवल टॉफी, समोसा ही बेचे जाते हैं।

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बुधवार को बच्चे करते

पौधों की विशेष सेवा

स्कूल केपाचवी कक्षा व उसके बाद के सभी छात्र स्कूल के किसी पेड़ या पौधे को गोद लेते हैं। बुधवार को वह छात्र गोद लिए पौधे की विशेष देखरेख करता है। पानी डालने के साथ निकाई, गुड़ाई के काम करते हैं। उस दिन बच्चे के पास उस पौधे का आइकार्ड होगा। उसमें पौधे की तस्वीर होगी। बच्चे ने जो पौधा गोद लिया है उसके महत्व व गुण के बारे में शिक्षक उसे सारी जानकारी देते हैं। ताकि बच्चे पेड़ और इंसान के रिश्ते को समझ सकें।

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पौधा हुआ बीमार तो

बच्चे बनते तीमारदार

यदि पौधा किसी कारणवश सूखने लगता है तो बच्चे उस बारे में तत्काल स्कूल के बागवानी प्रभारी को सूचना देते हैं। वह पौधे की देखभाल कर रहे बच्चे को पौधे के सूखने का कारण बताते हैं। साथ ही पौधे को बचाने को हर उपाय करते हैं। बच्चों की मेहनत और तीमारदारी का नतीजा है कि स्कूल में हर ओर हरियाली है। फूलों के रंगीन दलपुंज, पेड़ों पर लगे आम मन को सुवासित करते हैं।

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अभिभावकों को भी जिम्मेदारी

स्कूल के बच्चों के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अभिभावकों को भी जागरूक किया जाता है। बच्चों के माध्यम से उनको संदेश दिया जाता है कि घर में पौधे लगाएं। हर वर्ष विद्यालय प्रबंधन प्रदर्शनी का आयोजन करता है। उसमें बच्चों के अभिभावकों की ओर से लाए गए पौधे रखे जाते हैं। इनको पुरस्कार दिया जाता है।

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कोट

पर्यावरण संरक्षण के लिए रद्दी कागजात को री-साइ¨क्लग करने की प्रक्रिया की जाती है। इससे विद्यालय कचरा मुक्त है, बच्चे इस बात को समझते हैं कि कागज का दुरुपयोग उनके लिए महंगा पड़ सकता है। इसी प्रकार जन्मदिन के मौके पर बच्चों का नाम किसी फल या फूल के नाम पर दिया गया है, ताकि वे उससे अपने को जोड़कर देख सकें और उस पौधे का संरक्षण कर सकें।

डॉ. हेमलता एस मोहन, निदेशक सह प्राचार्य दिल्ली पब्लिक स्कूल, बोकारो

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