नक्सली क्षेत्रों में सरपट दौड़ रहीं गाड़ियां

जिस रास्ते से कभी दिन के उजाले में भी नक्सलियों के भय से गुजरने में सिहरन होती थी, अब उस रास्ते पर सरपट गाड़ियां दौड़ रही है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Aug 2018 02:30 PM (IST) Updated:Mon, 13 Aug 2018 02:30 PM (IST)
नक्सली क्षेत्रों में सरपट दौड़ रहीं गाड़ियां
नक्सली क्षेत्रों में सरपट दौड़ रहीं गाड़ियां

जागरण संवाददाता, धनबाद: जिस रास्ते से कभी दिन के उजाले में भी नक्सलियों के भय से गुजरने में सिहरन होती थी, अब उस रास्ते पर सरपट गाड़ियां दौड़ रही है। चारों तरफ घना जंगल, पहाड़ से गिरता झरना पानी के बीच से चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर गाड़ियों से सैर करना अब लोगों को खूब भा रहा है। सरकार ने इस क्षेत्र के दर्जनों गांवों को विकास से जोड़ने के लिए नक्सलियों की मांद में सड़कों का जाल बिछाने का काम शुरू कर दिया है। ग्रामीण सड़कों को भी मुख्य सड़कों से जोड़ा जा रहा है। ग्रामीण विकास के फंड से ग्रामीण सड़कों का पक्कीकरण किया जा रहा है। जबकि मुख्य सड़क का काम पथ निर्माण विभाग के जरिए काम हो रहा है।

झारखंड आंदोलन के जनक शिबू सोरेन के मनियाडीह पिकेट को जोड़ते हुए एक दर्जन गावों को सीधे मुख्यालय से जोड़ने की कवायद हो रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो स्थित राजगंज के डोमनपुर से कोल्हर मोड़ को सीधे जोड़ दिया गया है। गोविंदपुर-टुंडी मुख्य मार्ग में टुंडी के आगे कोल्हर मोड़ पड़ता है।

राजगंज से गिरिडीह की घट गई 10 किमी दूरी: राजगंज के डोमनपुर मोड़ से मनियाडीह होते हुए कोल्हर मोड़ तक करीब 29 किमी सड़क नवीकरण काम लगभग पूरा कर लिया गया है। कागजी तौर पर हैंडओवर करना ही बाकी है। सड़क निर्माण होने से दर्जनों गांवों का सीधा संपर्क राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो व टुंडी-गिरिडीह मुख्य राज्य मार्ग से हो गया है। 5.5 मीटर सड़क की चौड़ाई है।

ग्रामीण उठा रहे गुणवत्ता व मुआवजा भुगतान की मांग: डोमनपुर से कोल्हर तक आजादी के बाद यही एक सड़क बनी। इसके पूर्व यह मार्ग काफी जर्जर था। कहना गलत नहीं होगा कि गढ्डे में चार इंच सड़क नजर आती थी। सड़क लोगो के लिए लाइफ लाइन साबित हो रहा है। ग्रामीण सड़क की गुणवत्ता व मुआवजा भुगतान की मांग उठा रहे हैं।

उनका कहना है कि दशकों बाद सड़क बनी। आम जनता को राहत मिली, लेकिन ठेकेदार ने लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया। सड़क की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया।

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''सड़क निर्माण से दर्जनों गांवों में सीधा संपर्क स्थापित हो गया है। ग्रामीणों को सुविधा जरूर मिली लेकिन गुणवत्ता ठीक नहीं है। इस पर ध्यान देना चाहिए।''

- जयप्रकाश पाडेय, बिराजपुर

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''लंबे समय से इस क्षेत्र के विकास को आवाज उठ रही थी, सड़क निर्माण बहुत जरूरी था। निर्माण होने के बाद सफर में राहत मिली। छात्र-छात्राओं के साथ-साथ ग्रामीणों को कई तरह की लाभ पहुंचेगा।''

- शिव शकर महतो शिक्षक, साधोबाद

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''सड़क निर्माण में निजी जमीन ली गई, लेकिन मुआवजा नहीं मिला। दशकों बाद इस उपलब्धि के कारण ग्रामीण इस मामले में चुप रहे। ठेकेदार ने ग्रामीणों की जरूरत का इस्तेमाल कर गुणवत्ता को दरकिनार कर दिया।''

- अभय कुमार चौधरी, छात्र, चुटियारो

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''विकास की सबसे बड़ी बाधा दूर हो गई। सड़क नहीं रहने के कारण पैदल ही यात्रा करना पड़ता है। सड़क निर्माण को एक साल में ही दरारें पड़ गई है। पुल भी कई जगह से दरक गए हैं।''

सोमर महतो किसान, साधोबाद

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