भीख मांगने वाले हाथों ने भी उठाया छठ मैया का दउरा
छठ से कुछ दिन पहले हाथ में सूप लिए कुछ लोगों ने आपको सरेराह रोका होगा। हाथ फैलाकर कुछ मांगा भी होगा किसी ने दिया तो किसी ने आगे बढ़ जाने की बात कही होगी।
आशीष सिंह, धनबाद : छठ से कुछ दिन पहले हाथ में सूप लिए कुछ लोगों ने आपको सरेराह रोका होगा। हाथ फैलाकर कुछ मांगा भी होगा, किसी ने दिया तो किसी ने आगे बढ़ जाने की बात कही होगी। ये लोग आपको सिटी सेंटर, कोर्ट मोड़, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और भीड़ भाड़ वाली जगह मिल जाएंगे। यह है गुलगुलिया समुदाय। शुक्रवार और शनिवार इनके लिए भी खास था। इन्होंने भी पूरे मनोयोग और विधिविधान से छठ पूजा की। व्रत रखा, पहले और दूसरे दोनों अर्घ्य भगवान भास्कर को समर्पित किया। जितनी जमापूंजी इनके पास थी, उसमें खरना और छठ का प्रसाद बनाया और बांटा भी। छठ को लेकर इस समुदाय की प्रगाढ़ आस्था देखते बन रही थी। भूदा गुलगुलिया बस्ती बरमसिया और मुरली नगर सरायढेला में रहने वाले गुलगुलिया समुदाय के लोगों ने छठ पूजा की। यहां के अलावा गोधर, झरिया, पाथरडीह, निरसा, पांड्रा, एग्यारकुंड, कुका, पांडेयडीह, नाधानगर, मुकुंदा में गुलगुलिया समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इस समय ये सात से नौ हजार तक सिमट गए हैं।
बंजारा समुदाय की 18 प्रजातियों में से एक गुलगुलिया : जिले में गुलगुलिया जाति की एक दर्जन से अधिक बस्तियां हैं। बंजारा समुदाय की 18 प्रजातियों में से एक गुलगुलिया प्रजाति भी है। इस समुदाय के जानकार अनिल पांडे बताते हैं कि 350 वर्ष पहले राजस्थान से झारखंड ( छोटानागपुर) आए थे। उस समय बिहार, बंगाल, ओडिशा सम्मिलित था। इन राज्यों के विभिन्न स्थानों में फैल गए। धनबाद में 150 वर्ष से गुलगुलिया निवास कर रहे हैं। गुलगुलिया शुरू से ही निरक्षर रहते हैं और बच्चे, महिलाएं भीख मांगते हैं। गुलगुलिया हिदू देवी-देवता को मानते हैं। छठ पूरी आस्था और शुद्धता से करते हैं। मांसाहारी हैं, लेकिन छठ पर्व के दिनों में प्याज-लहसुन भी नहीं खाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक समाज के संपूर्ण सहयोग से छठ का आयोजन करते थे। इधर के वर्षों में मानसिक स्तर पर विकसित हो रहे हैं और आर्थिक स्तर पर आत्मनिर्भर। भूदा गुलगुलिया बस्ती एक आदर्श उदाहरण है। यहां के नागरिकों ने अपनी आय से ही छठ पूजा की। सभी पुरुष रिक्शा-ठेला चालक हैं। कैटरिग एवं सहायक का काम करते हैं। इनकी प्रगति में अनिल पांडेय और समर्पण फाउंडेशन का भी योगदान है।
छठ के दिन तक घर के सदस्य चलाते रहे रिक्शा : छठ व्रतियों रेशमा, ललिया, एतवरिया, चंद्रमुखी, मुंगरी ने बताया कि हमारे घर के पुरुष छठ के दिन तक रिक्शा चलाते रहे, ताकि उनके परिवार के सदस्यों को छठ व्रत करने में आर्थिक अवरोध दिक्कत न हो। कुछ रुपये मांग कर जमा कर रखे थे। सब छठी मैया की कृपा है, अच्छे से सब हो गया। घर की महिला सदस्यों के साथ-साथ पुरुष सदस्य लल्लन, मदन और सोरेन ने छठ व्रत किया। इससे यही सीख मिलती है कि समाज से कटे इस समुदाय के बीच जाने की जरूरत है। उनकी बस्तियों में जाएं। उनसे बातें करें। समझने की कोशिश करें कि उनकी मदद कैसे की जाए, ताकि वे साक्षर और आत्मनिर्भर हो सकें।