दूसरों की आंखों और अपने दम पर पैडल से नापेंगे 7,500 किमी की दूरी
किसी दूसरे की आंख से दुनिया को देखने और समझने वालों के किस्से और कहानियां सुनी होंगी। ऐसे फिल्में भी देखी होगी लेकिन देख पाने में असमर्थ कोई व्यक्ति दूसरों की आंखों से सड़कों को देख और समझ कर उस पर अकेले साइकिल चला कर हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सकता है शायद इस बात पर कोई यकीन नहीं करेगा लेकिन कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कुछ भी संभव है। मुंबई से श्रीनगर तक की दूरी साइकिल से माप कर ऊधमपुर पहुंचे मुंबई निवासी अजय लालवानी भी ऐसे ही शख्स हैं। जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से अपनी शारीरिक अक्षमता पर विजय और अपने लक्ष्य प्राप्त करने की ठान रखी है।
जागरण संवाददाता, ऊधमपुर : किसी दूसरे की आंख से दुनिया को देखने और समझने वालों के किस्से और कहानियां सुनी होंगी। ऐसे फिल्में भी देखी होगी, लेकिन देख पाने में असमर्थ कोई व्यक्ति दूसरों की आंखों से सड़कों को देख और समझ कर उस पर अकेले साइकिल चला कर हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सकता है, शायद इस बात पर कोई यकीन नहीं करेगा, लेकिन कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कुछ भी संभव है। मुंबई से श्रीनगर तक की दूरी साइकिल से माप कर ऊधमपुर पहुंचे मुंबई निवासी अजय लालवानी भी ऐसे ही शख्स हैं। जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से अपनी शारीरिक अक्षमता पर विजय और अपने लक्ष्य प्राप्त करने की ठान रखी है।
विभिन्न विषयों के प्रति जागरूकता के प्रसार के लिए अनेकों लोग साइकिल पर लंबी दूरी के अभियानों पर निकलते हैं। देखने में असमर्थ मुंबई के निवासी अजय लालवानी देश की सड़कों पर दिव्यांगों के लिए सुरक्षित यातायात बनाने का संदेश देने के लिए 7,500 किलोमीटर लंबे साइकिल अभियान पर निकले हैं। वह अपनी टीम की आंखों से सड़कों को देखते और समझते हुए साइकिल चलाते हैं। दिव्यांगों के चलने के लिए सुरक्षित बने सड़क
अजय लालवानी ने बताया कि देश की सड़कें दिव्यांगों के चलने लिए सुरक्षित बने। समाज भी दिव्यांगों की सड़क पर चलते समय सुरक्षा के प्रति जागरूक हो। इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए वह विश्व रिकार्ड बनाने के लिए ब्लाइंड साइक्लिग अभियान 2021 पर निकले हैं। वह मुंबई से श्रीनगर, कन्याकुमारी होते हुए वापस मुंबई तक 7,500 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे। इस दूरी को वह 45 दिनों में पूरा कर विश्व रिकार्ड बनाएंगे। उन्होंने बताया कि 15 नवंबर को उन्होंने सुबह चार बजे मुंबई से अपना अभियान शुरु किया था। श्रीनगर पहुंच कर वहां से कन्याकुमारी की तरफ जा रहे हैं। अभी तक 30 प्रतिशत अभियान पूरा कर चुके हैं। शेष 70 प्रतिशत अभियान भी तय समयावधि में पूरा कर लेंगे।
बेहद खराब हैं सड़कें
अजय लालवानी ने कहा कि आधुनिक भारत के मुताबिक आधुनिक सड़क अभी नहीं है। अभी तक के सफर में सड़कें बेहद खराब मिली हैं। कई हाईवे तो नाम के हाईवे लगे, हाईवे जैसी सड़क महसूस नहीं हुई।
श्रीनगर का अनुभव अच्छा रहा, पर लाल चौक में तिरंगा अंदर रखने की बात अखरी
श्रीनगर के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा श्रीनगर जाते समय काफी अच्छा अनुभव रहा। रास्ते भर में सेना के जवानों ने तिरंगे को सम्मानित दिया और उनसे मुलाकात की, लेकिन जब वह लाल चौक पहुंचे तो साइकिल पर फहरा रहे तिरंगे को उतार कर अंदर रखने को कहा। जिस वजह से वहां पर अच्छा और सुरक्षित महसूस नहीं हुआ। उन्होंने युवाओं से नेत्रहीन व अन्य लोगों की सड़क सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयास से जुड़ कर जागरूकता का प्रसार करने की अपील की।
लंबी दूरी के दो अभियान सफलतापूर्वक कर चुके हैं पूरा
अजय ने बताया कि इससे पहले वह लंबी दूरी के दो अभियान पूरा कर चुके हैं। इनमें वह मुंबई से गोवा और वापस मुंबई तक की 1250 किलोमीटर की दूरी एक सप्ताह में तय कर चुके हैं। इसके अलावा मुंबई से गोंदिया और वापस मुंबई तक 2010 किलोमीटर लंबा साईकिल अभियान को 12 दिन में पूरा कर चुके हैं।
टीम के सदस्यों की आंखों से देखते हैं सब
अजय लालवानी ने बताया कि वह देखने में असमर्थ है। इस अभियान में शामिल टीम के सदस्यों की आंखों से वह सड़क की स्थिति, खतरों और वाहनों को देखते हैं। टीम के सदस्य एक वाहन में उनके आगे चलते हैं। जो वॉकीटॉकी की मदद से उनको लगातार बताते हैं कि उनको किस तरफ चलना है, कितनी गति से चलना है, कब ब्रेक लगानी है, कब मुड़ना है। सड़क कहां पर खराब, कहां स्पीड ब्रेकर है और कहां पर चढ़ाई या उतराई है, हर एक छोटी से छोटी जानकारी देते हैं। उनकी टीम में 15 सदस्य शामिल हैं। कोई शिक्षक, कोई ट्रेनर, मसाजर, खाना बनाने वाले, फोटो ग्राफर की पूरी टीम है। टीम में उनके भाई भी हैं, जो एक मसाजर है। जब वह थक जाते हैं तो भाई मसाज कर उनकी थकान को दूर कर देते हैं। अभियान के दौरान कई बार समस्याएं भी हुई। कई बार वह गिरे भी हैं। मगर कुछ भी मुफ्त या सरलता से नहीं मिलता। हर चीज के लिए मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि अभियान को सिग्नीफाई फिलिप्स इंडिया कंपनी ने प्रायोजित किया है। जिसके बिना वह इस अभियान पर नहीं निकल पाते। परिवार ने भी आर्थिक और मानसिक तौर पर पूरा सहयोग किया है।