सड़क हादसे में घायल महिला को बचाने के लिए सिख युवक ने उतारी पगड़ी

Sikh youth. सिख युवक ने हाईवे पर हादसे के बाद तड़प रही महिला को पगड़ी लपेटकर खून बहने से रोका और तुरंत अस्पताल पहुंचाया।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Sun, 06 Jan 2019 10:57 AM (IST) Updated:Sun, 06 Jan 2019 04:47 PM (IST)
सड़क हादसे में घायल महिला को बचाने के लिए सिख युवक ने उतारी पगड़ी
सड़क हादसे में घायल महिला को बचाने के लिए सिख युवक ने उतारी पगड़ी

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। पगड़ी किसी भी सिख के लिए धार्मिक आस्था और आत्मसम्मान का प्रतीक है। पर दक्षिण कश्मीर में जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अवंतीपोर में यह पगड़ी एक घायल महिला के लिए जीवनदान बन गई। साथ ही सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल भी।

अवंतीपोर में तेजगति से आ रहे ट्रक ने एक महिला को टक्कर मार दी। महिला खून से लथपथ होकर सड़क पर गिर पड़ी। ट्रक चालक वाहन समेत मौके से फरार हो गया। सड़क पर तमाशबीनों की भीड़ जुट गई। महिला के शरीर से लगातार खून बह रहा था और कोई मदद के लिए आगे नहीं बढ़ रहा था। इसी दौरान भीड़ में से एक 20 वर्षीय सिख युवक मंजीत सिंह निकला। उसने तुरंत अपनी पगड़ी उतारी और बिना देर किए महिला के घावों पर बांधना शुरू कर दिया, ताकि किसी तरह से रक्‍तस्राव रोका जा सके।

उसने पगड़ी को पट्टी की तरह महिला के जख्मों पर लपेटकर बहते खून को रोका और फिर अन्य लोगों को मदद के लिए तैयार कर महिला को अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने कहा कि अगर समय रहते महिला के बहते खून का बहाव न रोका जाता तो शायद उसे बचाना संभव नहीं हो पाता। फिलहाल, महिला अस्पताल में उपचाराधीन है और उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है।

देवर (त्राल) के रहने वाले मंजीत सिंह ने कहा कि मैंने जब भीड़ देखी तो रुक गया। वहां महिला की हालत देखकर मुझसे रहा नहीं गया। पगड़ी हम सिखों की आस्था और शान है। लेकिन अगर महिला यूं सड़क पर मर जाती तो फिर यह शान और आस्था कहां रहती। वैसे भी हमें जरूरतमंदों के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने की शिक्षा हमारे गुरुओं ने दी है।

मंजीत सिंह की इस भावना की सभी सराहना कर रहे हैं। मंजीत सिंह खुद भी कई दिक्कतों का सामना कर रहा है। जनवरी 2018 में उसके पिता करनैल सिंह जो शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय में डेलीवेजर थे, एक सड़क हादसे में मारे गए थे। उसे उसके पिता के स्थान पर ही डेलीवेजर की नौकरी कृषि विश्वविद्यालय में मिली है। वह अपने परिवार मे अकेला कमाने वाला है। घर में उसकी दिव्यांग मां, बहन और एक भाई है। मंजीत ने कहा कि मेरे पिता 25 साल तक शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय श्रीनगर में डेलीवेजर रहे। खैर, वाहे गुरु हैं सब देख रहे हैं।

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