Jammu And Kashmir: बम धमाकों का पर्याय बन चुकी Kashmir वादी में तनाव के बावजूद पसरी है शांति

kashmir situationदो माह में वादी में बहुत बदलाव माथे पर नहीं लगा लहु का दाग। बम धमाकों का पर्याय बन चुकी वादी में तनाव के बावजूद पसरी शांति अब कंधे पर अर्थी नहींस्कूली बस्तें

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 08 Oct 2019 08:38 AM (IST) Updated:Tue, 08 Oct 2019 02:33 PM (IST)
Jammu And Kashmir: बम धमाकों का पर्याय बन चुकी Kashmir वादी में तनाव के बावजूद पसरी है शांति
Jammu And Kashmir: बम धमाकों का पर्याय बन चुकी Kashmir वादी में तनाव के बावजूद पसरी है शांति

श्रीनगर, नवीन नवाज। Jammu kashmir situation वादी में ठंड ने दस्तक देना शुरू कर दी है। चिनार के पत्ते लाल हो रहे हैं, लेकिन इस बार इन पत्तों की तरह वादी की जमीन पर लाल नहीं हुई। किसी जगह बम धमाकों की गूंज से आसमां में काला धुआं और उसके साथ जलते इंसानी गोश्त की दुर्गंध नहीं। अलगाववादी दबाव से दिन में दुकानें बंद हैं, लेकिन वादी को किसी तरह का रंजो-गम नहीं। वादी सड़क पर आम लोगों की बढ़ती आवाजाही और वादी बज रही स्कूली घंटियों की आवाज से खुश है कि अब किसी कंधे पर किसी किशोर की अर्थी नहीं, बल्कि किशोरों के कंधे पर स्कूली बस्ता है।

बम धमाकों और गोलियों के गूंज व पत्थरबाजी का पर्याय बन चुकी वादी में दो माह से तनाव के बावजूद पसरी शांति की उम्मीद नहीं थी। अब वादी के राजनीतिक-आर्थिक समीकरण बदल चुके हैं। जिहादी एजेंडा ही नहीं, सियासत में अलगाववाद और आतंकवाद को पोषित करने वाले ऑटोनामी, सेल्फरूल व अचीवेबल नेशनहुड जैसे नारे भी प्रासंगिकता गंवा चुके हैं।

पांच अगस्त से पूर्व सिर्फ अलगाववादी और आतंकी ही नहीं कश्मीर केंद्रित सियासी दलों में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स कांफ्रेंस और अवामी इत्तेहाद पार्टी के नेता कहते थे कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधानों को समाप्त नहीं किया जा सकता। अगर किसी ने किया तो कश्मीर जल उठेगा, हर गली-चौराहे पर हंगामा होगा।

तिरंगा उठाने के लिए कोई कंधा नहीं मिलेगा और हिंदुस्तान तबाही की कगार पर चल पड़ेगा। इन धमकियों और आशंकाओंं के बावजूद केंद्र सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई। न सिर्फ विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान समाप्त किए बल्कि इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी विभाजित कर दिया। एहतियात के तौर पर पूरे जम्मू कश्मीर में प्रशासनिक पाबंदियां लगा दीं थीं। सभी प्रमुख राजनेताओं और शरारती तत्वों को एहतियातन हिरासत में लिया था। अब कश्मीर में सब कुछ बदल चुका है। हायर सैकेंडरी स्तर तक अकादमिक गतिविधियां बहाल हैं। राज्य प्रशासन इसी सप्ताह कॉलेजों को खोलने की तैयारी में है। सरकारी कार्यालयों और बैंकों में कामकाज 12 अगस्त के बाद से ही लगभग सामान्य है। लैंडलाइन फोन सेवाएं पूरी वादी में बहाल हैं और करीब आठ हजार मोबाइल फोन भी वादी में क्रियाशील हैं, सिर्फ मोबाइल इंटरनेट बंद है।

 अभिभावक एजेंड से दूर रख रहे अपने बच्चे

दो माह के दौरान वादी के कुछ इलाकों में नाममात्र प्रदर्शन हुए। पत्थरबाजी की गिनी चुनी घटनाएं भी हुई हैं। मगर ऑटोनॉमी और सेल्फरूल के नाम पर सियासत करने वालों के समर्थक कहीं नजर नहीं आ रहे। कई इलाकों में तो पत्थरबाजी से बच्चों को दूर रखने के लिए परिजन उन्हें खुद ही थाने तक पहुंचा रहे हैं या फिर कश्मीर से बाहर भेज रहे हैं। दूसरी तरफ पत्थरबाजी में पकड़े युवकों को परिजन व मोहल्ले वाले जमानत पर घर ले जा रहे हैं। यकीनी बना रहे हैं कि वह किसी भी तरह से जिहादी या अलगाववादी एजेंडे का हिस्सा न बनें।

रात 11 बजे तक खुल रही हैं दुकानें

आतंकी लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए धमकियों व गोलियों का सहारा ले रहे हैं। बावजूद इसके कोई उनके फरमान को मानने को राजी नहीं है। अलगाववादियों और आतंकियों के जबरन बंद से तंग व्यापारी और दुकानदार अब सुबह-शाम दुकानें खोल रहे हैं। पहले यह दुकानें सुबह आठ बजे तक खुल रही थीं अब तो कई जगह सुबह 11 बजे तक खुली हैं। शाम चार बजे फिर दुकानों के शटर उठ रहे हैं, जो 11 बजे तक खुले रह रहे हैं। सेब व्यापारी भी अब फसल नैफेड को बेचने के अलावा अपने स्तर पर देश की विभिन्न मंडियों में भेजने लगे हैं।

घाटी में अलगाववादी खेमा भी शांत

पाकिस्तान की शह पर नाचने और आजादी का नारा देने वाला अलगाववादी खेमा पूरी तरह शांत है। हैरानी की बात है कि कई अलगाववादी नेताओं को प्रशासन ने दो माह के दौरान एक बार भी एहतियातन हिरासत में नहीं लिया। समर्थक भी बदलाव को गले लगा कह रहे हैं कि पाक की बजाय अब दिल्ली की तरफ देखना बेहतर है। मुख्यधारा की सियासत भी ब्लॉक विकास परिषदों के चुनावों के जरिए फिर से जोर पकड़ रही है। इसमें शामिल होने वाले ही नहीं इससे दूर रहने का संकेत देने वाले भी बदलाव को प्रत्यक्ष-परोक्ष तरीके से अपना रहे हैं। कोई ऐसी बात नहीं कर रहे जिससे माहौल बिगड़े या अलगाववादियों को शह मिले। हालांकि जिहादी तत्व अभी भी सक्रिय हैं। अगस्त माह से छह अक्टूबर की शाम तक चार आतंकी भी मारे गए। आतंकियों ने दो ग्रेनेड हमले किए और एक पंच को भी निशाना बनाया। उनकी गतिविधियां बता रही हैं कि आतंकवाद का दीपक बुझने से पहले फड़फड़ा रहा है। 

कारोबार का नुकसान हुआ, मगर कई अमूल्य जानें बचीं : सलीम रेशी

कश्मीर मामलों के जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी कहते हैं, 'दो माह में जो हुआ, उसपर बहुत कुछ कहा और लिखा गया है। कारोबार का नुकसान हुआ है। इसमें कोई दोराय नहीं है, लेकिन कई अमूल्य जानें बची हैं। सुबह-शाम खुल रही दुकानों का समय बढ़ रहा है। कई जगह दुकानदार खुद सुरक्षा एजेंसियों के पास जाकर दुकानें खुलवाने के लिए सहयोग मांग रहे हैं। यह बहुत बड़ा बदलाव है। हालात में सुधार है, इसलिए अब डल में विदेशी पर्यटक नजर आ रहे हैं। हालात में सुधार है, इसलिए कई पंच-सरपंच बीडीसी चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। किसी पंच-सरंपच ने इस्तीफा दिया है? क्या कश्मीर के नाम पर सियासत करने वाले किसी राजनीतिक दल के सांसद ने इस्तीफा दिया है? नहीं दिया। अलगाववादियों की तरफ से भी कोई बयान नहीं आया है। यह बातें अपने आप में बहुत कुछ कहती हैं। आज किशोरों के जनाजे किसी कंधे पर नहीं हैं बल्कि किशोरों के कंधे पर जिंदगी संवारने का बस्ता है। 

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