दशकों बाद सिल्क फैक्टरी की चिमनियों से धुआं निकलता देख झुकी कमर में भी आई जान

तीन दशक से विरान पड़ी सिल्क फैक्टरी की चिमनियों से धुआं निकलते देख मीरगुंड के गुलाम मोहम्मद अब्बास की झु़की कमर में फिर जान आ गई है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Fri, 27 Jul 2018 02:03 PM (IST) Updated:Fri, 27 Jul 2018 03:53 PM (IST)
दशकों बाद सिल्क फैक्टरी की चिमनियों से धुआं निकलता देख झुकी कमर में भी आई जान
दशकों बाद सिल्क फैक्टरी की चिमनियों से धुआं निकलता देख झुकी कमर में भी आई जान

श्रीनगर, नवीन नवाज कश्मीर की पहचान लाल चौक से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित सोलिना में तीन दशक से वीरान पड़ी सिल्क फैक्टरी की चिमनियों से धुआं निकलते देख मीरगुंड के गुलाम मोहम्मद अब्बास की झु़की कमर में फिर जान आ गई है। जीवन के 70 वसंत पार कर चुके गुलाम मोहम्मद अब्बास कहते हैं कि आप नहीं जानते कि यह रेशम का कीड़ा और सोलिना की सिल्क फैक्टरी हमारे लिए क्या अहमियत रखती है। मैं छोटा था, तब पिता के साथ कोकून लेकर वहां जाता था, क्या मुलायम और महीन रेशम बनता था। अंग्रेज बड़ी दाद देते थे। यह बंद क्या हुई बहुत से लोगों के घर का चूल्हा बुझ गया। कई ने तो काम धंधा ही बदल लिया।

सोलिना स्थित सिल्क फैक्टरी देश की एतिहासिक सिल्क फैक्टरी है। यह 1989 में घटते उत्पादन और वादी में आतंकवाद के पैर पसारने के साथ बंद हो गई थी। वादी में करीब 40 हजार परिवार रेशम के कीड़े पालते थे। इसी से वे घर चलाते थे। करीब एक सप्ताह से फैक्टरी फिर चालू हो गई है। रेशम के कीड़े पालने वाले किसानों के साथ रेशम से बना सामान बेचने वाले दुकानदारों और निर्यातकों की बांछे खिल गई हैं।

फिर सांस लेने लगी मरी फैक्टरी: गुलाम मुहम्मद

फैक्टरी के फिलेचर प्रभारी गुलाम मोहम्मद बट कहते हैं, जब से यह फैक्टरी बंद हुई है, मैं ही इसकी देखभाल कर रहा हूं। उम्मीद नहीं थी कि यह दोबारा चालू होगी। लेकिन यह मरी हुई फैक्टरी आज फिर सांस लेने लगी है। इसके तीन फिलेचर पर 580 बेसिन में कोकून को प्रोसेस किया जाता था लेकिन घटते उत्पादन और बढ़ते घाटे से यह बंद हो गई। वर्ष 1980-81 में यहां 57000 किलो उत्पादन था जो 1989-90 में 16 हजार किलो पहुंच गया था।

मैनेजिंग डायरेक्टर इंडस्ट्रीज लिमिटेड जावेद इकबाल ने बताया कि 30 बेसिनों पर आधारित पांच मशीनों पर रीलिंग शुरू की है। ये फिलेचर 1999 में स्थापित किए जाने के बाद इस्तेमाल नहीं हुए थे। अब 5.67 करोड़ की लागत से तीन और मशीनें लगाने की योजना पर है।

फैक्टरी शुरू करने के लिए बंगाल से लाए श्रमिक

सिल्क फैक्टरी को चालू करने के लिए पश्चिम बंगाल से 10 श्रमिक लाए गए हैं। जावेद इकबाल ने बताया कि एक सप्ताह में करीब 200 किलो कोमून पैदा किया जा चुका है। बंगाल से लाए श्रमिक 20 स्थानीय श्रमिकों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। प्रयास है कि धीरे-धीरे यहां सारा काम स्थानीय श्रमिक और कारीगर करें।

स्थानीय रेशम पालकों को होगा फायदा

करीब 40 हजार परिवार इस फैक्टरी के चालू होने से प्रत्यक्ष तौर पर लाभान्वित होंगे। सिल्क फैक्टरी बंद होने के कारण ये लोग मालदा से आने वाले व्यापारियों पर निर्भर थे और औने-पौने दाम पर कोकून बेच देते थे। अब उन्हें कोकून की कीमत उसकी गुणवत्ता के आधार पर मिलेगी। सरकार जम्मू में भी 6.64 करोड़ की लागत से फिलेचर स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। इससे 240 टन कोकून को रील कर 80 टन कच्चा रेशम पैदा किया जा सकेगा।

कश्मीर और रेशम का सदियों पुराना संबंध

कश्मीर का रेशम सदियों से ही यूरोप से लेकर चीन तक विशिष्ट पहचान और मांग रखता है। कल्हण द्वारा रचित राजतरंगनी में भी कश्मीरी रेशम का जिक्र है। सातवीं सदी में कश्मीर आए चीनी यात्री हुनसेंग ने भी कश्मीरी रेशम की गुणवत्ता और यहां रेशम पर होने वाले काम का जिक्र किया है। गुणवत्ता के आधार पर कश्मीर में पैदा होने वाले रेशम को चार प्रमुख वर्गों लोटस, आइरिस, टयूलिप और नील में बांटा जाता रहा है।

कई बार तबाही झेल चुका है कश्मीर का रेशम उद्योग

कश्मीर का रेशम उद्योग जितना पुराना है, उतना ही पुराना इसका तबाह होकर फिर खड़े होने का इतिहास भी है। यह पहली बार 1870 में पूरी तरह तबाह हो गया, क्योंंकि यूरोप से जो रेशम के कीड़ों में बीमारी थी। इससे पूरी फसल तबाह हो गई। वर्ष 1881 में तत्कालीन डोगरा शासकों ने इसे दोबारा जिंदा करने की योजना बनाई और जापान से रेशम कीट व उनके अंडे मंगवाए। लेकिन कोई नीति नहीं बनाई और 1882 से 1890 तक उन्होंने रेशम कीट पालने वाले किसानों और संबंधित व्यापारियों पर ही सब कुछ छोड़ दिया था। नतीजा, रेशम का बीज ही लगभग खत्म हो गया। शहतूत के पेड़ भी बहुत सी जगह से कट गए।

1897 में बनी फैक्टरी

राज्य में रेशम उद्योग को संगठित रूप से विकसित करने की दिशा में काम 1897 में शुरू हुआ। सोलिना में सिल्क फैक्टरी की स्थापना सिल्क एसोसिएशन ऑफ ग्रेट ब्रिटेन के तत्कालीन अध्यक्ष सर थामस वार्डले की मदद से की गई थी। वह कश्मीरी रेशम की गुणवत्ता से बहुत प्रभावित हुए थे। 1897 में ही राज्य में रेशन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए रेशम निदेशालय बना था। पहले निदेशक सीडब्लूय वॉल्टन थे जो सेरीकल्चर में विशेषज्ञ थे। इ्टली से रेशम के कीड़े मंगवाए गए और किसानों को बांटे गए। कोकून को रीलिंग के लिए इंग्लैंड भेजा गया। शु़रू में यह फैक्टरी 250 कनाल से ज्यादा जमीन में फैली थी। पहला फिलेचर 1916 में ,दूसरा फिलेचर 1917 में और तीसरा 1939 में लगाया गया था।

कश्मीर में बनेगा सिल्क म्यूजियम

सोलिना सिल्क फैक्टरी के चालू होने के बाद राज्य सरकार सिल्क म्यूजियम बनाने की योजना पर काम कर रही है। सचिवायुक्त उद्योग एवं वाणिज्य विभाग शैलेंद्र कुमार ने कहा कि अब हम यहां सिल्क म्यूजियम स्थापित करने जा रहे हैं। यह 108 कनाल में फैली सिल्क फैक्टरी परिसर में ही बनेगा। फिलहाल इसकी डीपीआर पर काम हो रहा है। दुनिया में अभी तक सिर्फ तीन विश्वस्तरीय सिल्क म्यूजियम हैं। एक इटली में और दो चीन में। चौथा म्यूजियम कश्मीर में बनेगा। इसमें रेशम के तैयार होने की पूरी प्रक्रिया और कश्मीर मं रेशन के इतिहास से जुड़ी हर चीज नजर आएगा।

साल के अंत तक 3.5 लाख मीटर सिल्क तैयार होगा

सचिवायुक्त शैलेंद्र कुमार ने बताया कि रेशम उद्योग से जुड़ा हर काम यही राज्य में करेंगे। अब हम यहां कोकून भी खरीद रहे हैं और सोलिना में उसका धागा तैयार कर रहे हैं। इसके बाद राजबाग और जम्मू स्थित फैक्टरी में उसका कपड़ा बुन रहे हैं। इस साल के अंत तक हमने 3.5 लाख रेशमी कपड़ा तैयार करने का लक्ष्य तय किया है। फैक्टरी शुरू होने से यहां लोगों को फायदा होगा। रियासत में 900 मीट्रिक टन कोकून पैदा होता है और सिर्फ 150 मीट्रिक टन ही राज्य में लगता है, शेष अन्य राज्यों के व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता है। 

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