कोई बड़ी वारदात अंजाम दिए बिना सबसे ज्यादा खतरनाक है मूसा

कश्मीर में अल-कायदा की आवाज बने जाकिर मूसा के पास कैडर और हथियार दोनों की भारी किल्लत हो चुकी है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 25 Dec 2018 09:47 AM (IST) Updated:Tue, 25 Dec 2018 09:47 AM (IST)
कोई बड़ी वारदात अंजाम दिए बिना सबसे ज्यादा खतरनाक है मूसा
कोई बड़ी वारदात अंजाम दिए बिना सबसे ज्यादा खतरनाक है मूसा

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। कश्मीर में खिलाफत और शरिया बहाली के लिए अल-कायदा की आवाज बने अंसार उल गजवा ए हिंद (एजीएएच) के गत शनिवार को छह आतंकियों के मारे जाने के बाद जाकिर मूसा के पास कैडर और हथियार दोनों की भारी किल्लत हो चुकी है।

सूत्रों की मानें तो उसके साथियों की तादाद चार से सात तक सिमट गई है। कुछ लोगों का दावा है कि उसके संगठन में अभी भी करीब एक दर्जन आतंकी हैं। इसके बावजूद सुरक्षा एजेंसियां उसे हल्के में लेने को तैयार नहीं हैं। वह उसे बुरहान की तरह ही खतरनाक मानती हैं।

राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जाकिर मूसा के गुट में कभी भी दो दर्जन से ज्यादा सक्रिय आतंकी नहीं रहे हैं और न उसके पास हथियारों का बड़ा जखीरा है। उसके ओवरग्राउंड नेटवर्क के ज्यादातर सदस्य पकड़े जा चुके हैं और रही सही कसर गत शनिवार को सोलेह अहमद अखून समेत उसके छह साथियों की मौत ने पूरी कर दी है।

सोलेह से पूर्व उसका एक अन्य साथी शाकिर डार गत नवंबर में सुरक्षाबलों के साथ मारा गया था जबकि एजीएएच के तीन अन्य आतंकी जाहिद अहमद बट, इसहाक अहमद और मोहम्मद अशरफ गत मई के दौरान त्राल में मारे गए थे। मूसा के दो साथी उवैस नबी डार और शब्बीर अहमद श्रीनगर के बलहामा में मारे गए थे, जबकि दुजाना व दो अन्य आतंकी बीते साल ही सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए थे।

उन्होंने बताया कि जाकिर मूसा के साथ इस समय चार ही आतंकी हैं, जो अवंतीपोरा व त्राल के रहने वाले हैं। कुछ और भी हो सकते हैं, लेकिन वह उसके साथ नजर नहीं आ रहे हैं। वह पुलवामा, शोपियां और श्रीनगर में हो सकते हैं। इसके अलावा मूसा के साथियों के पास हथियार और पैसे की भी कमी है। यही कारण है कि वह अपने ठिकाने से ज्यादा देर तक न बाहर निकले रहे हैं और न मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

मूसा के लिए सोलेह अखून बहुत अहम था, क्योंकि एजीएएच में पुराने और प्रशिक्षित आतंकियों में वही एक था। इसके अलावा वह उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में ही नहीं एलओसी पार भी अच्छे संपर्क रखता था। लश्कर और हिज्ब के प्रतिरोध के बावजूद सरहद पार से कुपवाड़ा के रास्ते हथियार मंगवा रहा था। कुपवाड़ा में उसके दो ओवरग्राउंड वर्कर भी पकड़े गए थे, जिन्होंने पूछताछ में बताया था कि वह एलओसी पार से हथियारों की खेप सोलेह अखून को पहुंचा चुके हैं।उन्होंने बताया कि कैडर, पैसे और हथियारों की किल्लत ही जाकिर मूसा को कोई बड़ी वारदात अंजाम देने से रोके हुए है।

यही कारण है कि वह बीते दो वर्षो में कश्मीर में कोई बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम नहीं दे पाया है, लेकिन जिस तरह से उसने पंजाब में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया है, वह उसके खतरनाक इरादों को ही दर्शाती है। इसके अलावा जिस तरह से कई नए और वह भी पढ़े लिखे लड़के उसके साथी बने हैं, उसे आप कश्मीर में बीते तीन सालों से आतंकी सगठनों में स्थानी युवकों की भर्ती के साथ जोड़कर नहीं देख सकते। उसके साथ जाने वाले आतंकी कश्मीर में आजादी के नारे पर नहीं बल्कि कश्मीर में शरिया और खिलाफत के लिए गए हैं।

एक बात सभी जो मानते हैं,वह यह कि उसने कश्मीर को वैश्विक आतंकवाद का हिस्सा बना दिया है। उसकी मौत पर बेशक कश्मीर में जुलाई 2016 में मारे गए आतंकी बुरहान की मौत की तरह कोई बड़ा हंगामा न हो, लेकिन गली-बाजारों में जरा सी बात पर होने वाले प्रदर्शनों में मूसा-मूसा की गूंज बताती है कि वह कश्मीर में एक स्लोगन बन चुका है जो सबसे खतरनाक है। 

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